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    आजाद हिन्द फौज सेनानी परमात्मा राय का निधन, क्रान्तिकारी साहित्य के साथ हुई थी पहली गिरफ्तारी

    By Abhishek sharmaEdited By: Abhishek sharma
    Updated: Mon, 08 Dec 2025 04:15 PM (IST)

    आजाद हिन्द फौज के सेनानी परमात्मा राय, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में क्रान्तिकारी साहित्य के साथ अपनी पहली गिरफ्तारी दी, का निधन हो गया। नेताजी सुभ ...और पढ़ें

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    परमात्मा राय का निधन 96 वर्ष की आयु में लंबी बीमारी के बाद उनके पैतृक गांव धनौली में हुआ।

    जागरण संवाददाता, दोहरीघाट (मऊ)। सोमवार को धनौली रामपुर गांव के निवासी प्रवासी भारतीय परमात्मा राय का निधन 96 वर्ष की आयु में लंबी बीमारी के बाद उनके पैतृक गांव धनौली में हुआ। उनके निधन की खबर से क्षेत्र में शोक की लहर फैल गई है।

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    परमात्मा राय जी सिंगापुर आर्य समाज संगठन के पूर्व मंत्री और वर्तमान में अध्यक्ष थे। इसके साथ ही, वह DAV कॉलेज सिंगापुर के प्रबंधक भी थे। उन्होंने दोहरीघाट मुक्ति धाम सेवा संस्थान के निर्माण के लिए अपनी जमीन दान देकर और आर्थिक सहयोग देकर इस संस्थान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

    परमात्मा राय जी का कहना था, "मैं मरूं तो मेरे वतन की मिट्टी नसीब हो।" उन्होंने 76 वर्ष तक सिंगापुर में रहकर भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया और तीन महीने पहले अपने घर लौटे। वह प्रतिदिन घर के बाहर बैठकर लोगों को पाश्चात्य संस्कृति से दूर रहकर अपनी सनातन संस्कृति को अपनाने के लिए प्रेरित करते रहे। आजाद हिन्द फौज के सिपाही के रूप में उन्होंने आजादी की लड़ाई में अपनी सहभागिता सुनिश्चित की और आजादी के सिपाही के रूप में किसी भी प्रकार की सुविधा स्वीकार किए बिना जीवन यापन किया। वह इस सदी के महानायक थे।

    जब देश गुलामी के दौर में था, तब परमात्मा राय जी सिंगापुर से पानी वाली जहाज से कोलकाता बंदरगाह पर यात्रा कर रहे थे। सिंगापुर पहुंचते ही चेकिंग के दौरान उनके पास से देश के क्रांतिकारियों से जुड़े साहित्य मिलने के कारण उन्हें सिंगापुर पुलिस ने बंदरगाह पर गिरफ्तार कर लिया।

    उनकी गिरफ्तारी 1952 में हुई, और वे सिंगापुर जेल में रहते हुए देशभक्ति का पाठ कैदियों को पढ़ाते रहे। उन्होंने कहा कि सिंगापुर और मलेशिया, जो 1965 में आजाद हुए, ये भारत की भूमि हैं। यहां की नदियां देवताओं और ऋषि-महर्षियों द्वारा स्नान की गई हैं। यह भारत देव भूमि है, और मैं सिंगापुर में गर्व से कहता था कि मैं भारतीय हूं।

    परमात्मा राय जी पांच भाई थे और सिंगापुर में रहते हुए अपने सभी भाइयों और उनके परिवार का विशेष ख्याल रखते थे। मृत्यु से तीन महीने पूर्व, उन्होंने अपने बच्चों को सिंगापुर छोड़कर अपनी जन्मभूमि पर लौटने का निर्णय लिया।

    उनके परिवार के सदस्य उनके आगमन से बहुत खुश थे और उनकी सेवा-सत्कार में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते थे। वह प्रतिदिन प्रवचन देते थे और कहते थे कि यदि माता-पिता को दुख दिया, तो निश्चित रूप से दुख पाओगे। तुम्हारे बच्चे उसी प्रकार तुम्हें दुख देंगे, जैसे तुमने अपने माता-पिता को दिया था।

    उनकी अंतिम यात्रा में दोहरीघाट मुक्ति धाम पर क्षेत्र के लोग भारी संख्या में पहुंचे और भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। शव को मुखाग्नि उनके छोटे पुत्र अजीत कुमार राय ने दी। इस क्रम में भाजपा जिला उपाध्यक्ष संतोष राय ने कहा कि परमात्मा चाचा का विराट व्यक्तित्व था। कांग्रेस नेता अरविंद राय ने कहा कि उनकी वाणी का मैं कायल था, क्योंकि इतना सरल स्वभाव के लोग विरले ही होते हैं।

    उनके भतीजे विवेकानंद राय ने कहा कि घर में करीब पचास लोगों की संख्या है, और चाचा सिंगापुर में रहते हुए भी पूरे परिवार का ख्याल रखते थे। किसान नेता श्री प्रकाश राय ने कहा कि राय साहब क्रान्तिदूत थे, उनका कोई सानी नहीं था।

    उनकी शव यात्रा में अपार भीड़ रही, जिसमें राम सकल पटेल, पूर्व चेयरमैन गुलाब गुप्ता, सच्चिदानंद, राजेश गुप्ता, व्यापार मंडल अध्यक्ष शिवकुमार जयसवाल, लाल बाबू सोनकर, चण्टू स्वामी, जगदीश राय, दुर्गा राय, राजेश राय, अरुण राय, अखिलेश राय, अरविंद राय समेत अनेक लोग शामिल थे।