मऊ का स्थापना दिवस : जानिए 'मऊनाथ भंजन' से मऊ बनने की पूरी कहानी
मऊ जिले का स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। प्राचीन काल में इसे 'मऊनाथ भंजन' के नाम से जाना जाता था। इस शहर का इतिहास रामायण, महाभारत, मौर्य, गुप्त और ब्रिटिश काल से जुड़ा है। स्थानीय लोगों के अनुसार, इसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। ब्रिटिश शासन के दौरान मऊ एक महत्वपूर्ण केंद्र था।

मान्यता है कि त्रेता युग में महाराज दशरथ के शासनकाल में यह क्षेत्र ऋषियों की तपोभूमि था।
जागरण संवाददाता, मऊ। उत्तर प्रदेश का मऊ जिला एक समृद्ध इतिहास और पौराणिकता का संगम है। यह जनपद रामायण और महाभारत काल की स्मृतियों से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि त्रेता युग में महाराज दशरथ के शासनकाल में यह क्षेत्र ऋषियों की तपोभूमि था।
मऊ का ज्ञात अभिलेखीय इतिहास लगभग 1,500 वर्ष पुराना है। कभी घने जंगलों में निवास करने वाले नट समुदाय के प्रभाव क्षेत्र के रूप में विकसित मऊ ने समय के अनगिनत परिवर्तन देखे हैं। आज मऊ अपनी सशक्त पहचान के साथ आगे बढ़ रहा है। 19 नवंबर को मऊ जिला अपनी स्थापना का उत्सव मनाने जा रहा है।
उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल अपने प्राचीन गौरव, समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं और प्राकृतिक विरासत के कारण लंबे समय से पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। मऊ में वनदेवी मंदिर, शीतला माता मंदिर, रोज गार्डन, मुक्तिधाम दोहरीघाट और फंटासिया वाटर पार्क एंड रिजॉर्ट जैसे प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। इसके अलावा, जिले में कई अल्पज्ञात धरोहरें और प्राकृतिक स्थल भी हैं, जिन्हें उपयुक्त पर्यटक सुविधाओं के विकास के साथ एक सशक्त और आधुनिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की दिशा में तेजी से प्रयास किए जा रहे हैं।
मऊ का नाम 'मऊनाथ भंजन' से लिया गया है। मऊ जिले में लंबे समय तक नट शासन रहा था। 1028 के करीब बाबा मलिक ताहिर और उनके भाई मलिक कासिम ने यहां आकर क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए मऊ नटों के साथ भीषण युद्ध किया। इस संघर्ष में मऊ नट का भंजन हुआ, जिसके कारण क्षेत्र को 'मऊ नट भंजन' कहा जाने लगा।
कालांतर में यह नाम 'मऊनाथ भंजन' में परिवर्तित हो गया। 1801 में आज़मगढ़ और मऊनाथ भंजन ईस्ट इंडिया कंपनी को मिले और यह क्षेत्र गोरखपुर जनपद में शामिल कर लिया गया। अंततः 1988 में मऊ को आजमगढ़ से अलग कर एक नया जिला घोषित किया गया।
मऊ की पहचान केवल धार्मिक या पौराणिक कहानियों से नहीं जुड़ी है, बल्कि यह एक ऐसा प्राचीन नगर है जहां मौर्य, गुप्त और मुगल काल के शासकों ने अपनी छाप छोड़ी। कहा जाता है कि मुगल शासक शाहजहां ने इस हिस्से को अपनी बेटी जहांआरा को जागीर के रूप में दिया था।
पर्यटन विकास के लिए उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग ने कई योजनाएं स्वीकृत की हैं। मुख्यमंत्री पर्यटन स्थलों के विकास मद से 3.75 करोड़ रुपए की चार महत्वपूर्ण परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई है। इनमें लक्ष्मण मंदिर, देवलास बाबा स्थान, सीता कुंड और शिव मंदिर के पर्यटन विकास के लिए धनराशि शामिल है।
मऊ जिला पर्यटन के लिहाज से पूर्वांचल का उभरता हुआ जिला है। यहां रामायण और महाभारत काल से जुड़ी मान्यताओं वाले कई अल्पज्ञात पर्यटन स्थल हैं। बेहतर रेल और सड़क कनेक्टिविटी ने जिले में पर्यटन विकास को नया आयाम दिया है। वर्ष 2024 में मऊ आने वाले पर्यटकों की संख्या 6,87,193 रही, जबकि 2025 के पहले छह महीनों में यह संख्या 3,90,933 रही।
उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने कहा कि "मऊ केवल पूर्वांचल का एक जिला नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की पुरातन सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत अध्याय है। मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में स्वीकृत नई पर्यटन परियोजनाएं न केवल इन धरोहरों को संरक्षित करेंगी, बल्कि मऊ को एक समृद्ध, आधुनिक और आकर्षक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने का मार्ग भी प्रशस्त करेंगी।" मऊ का पर्यटन विकास न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी प्रदान करेगा।

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