बीमार गोवंशियों को राजकीय पशु चिकित्सालय में रखकर इलाज करने की व्यवस्था नहीं, महापौर ने जताई थी नाराजगी
मेरठ में गोवंशियों के इलाज के लिए उचित व्यवस्था नहीं है। सूरजकुंड में पशु चिकित्सालय होने के बावजूद बीमार गोवंशियों के लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं है। नगर निगम के सूरजकुंड वाहन डिपो में एक अस्थायी ट्रामा सेंटर खोला गया है लेकिन वहां भी पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। जिले में कई पशु चिकित्सालय और गोशालाएं हैं फिर भी एक सुविधायुक्त पशु ट्रामा सेंटर की कमी है।

जागरण संवाददाता, मेरठ । परतापुर स्थित कान्हा उपवन में गोवंशियों की मौत के मामले में भी बीमार गोवंशियों के उपचार को लेकर सवाल उठे थे। उस वक्त भी यह बात सामने आई थी कि सूरजकुंड में पशु चिकित्सा एवं पशु पालन विभाग का राजकीय पशु चिकित्सालय है, लेकिन यहां पर बीमार गोवंशियों को रखकर इलाज करने की व्यवस्था नहीं है।
महापौर हरिकांत अहलूवालिया ने गोवंशियों के उपचार की अव्यवस्था को लेकर मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डा. संदीप शर्मा से नाराजगी जताई थी। इस अव्यवस्था से कमिश्नर और डीएम को भी अवगत कराया था। मांग की थी कि सूरजकुंड स्थित राजकीय पशु चिकित्सालय में ही बीमार, घायल गोवंशियों को रखकर इनकी जांच और उपचार की व्यवस्था बनाई जाए। ताकि गोवंशियों को समुचित उपचार सुलभ हो सके।
लेकिन चिकित्सीय सुविधाओं से युक्त पशु ट्रामा सेंटर की व्यवस्था बनाने के बजाए पशु चिकित्सा एवं पशु पालन विभाग की ओर से गंभीर बीमार और घायल गोवंशियों के उपचार के लिए नगर निगम स्थित सूरजकुंड वाहन डिपो में एक कमरे को अस्थायी पशु ट्रामा सेंटर का नाम दे दिया गया। इस कमरे में न तो पशु चिकित्सक के बैठने और न दवाओं को रखने की व्यवस्था है। अधिकांश समय इस कमरे में ताला लगा रहता है।
10 हजार से ज्यादा निराश्रित गोवंशियों के संरक्षण के दावे
ऐसी व्यवस्था के बीच पशु चिकित्सा और पशु पालन विभाग गंभीर बीमार और घायल गोवंशियों के बेहतर उपचार की कल्पना कर रहा है। हैरानी की बात यह है कि जनपद में 31 पशु चिकित्सालय, 18 गोशाला, एक कान्हा उपवन और 10 कांजी हाउस का संचालन हो रहा है। जनपद में करीब 10 हजार से ज्यादा निराश्रित गोवंशियों के संरक्षण के दावे किए जाते हैं। लेकिन पशु चिकित्सा एवं पशु पालन विभाग का अपना एक भी चिकित्सीय सुविधाओं से युक्त पशु ट्रामा सेंटर नहीं है।
जिला प्रशासन की ओर से भी इसकी जरुरत महसूस नहीं की जा रही है। जबकि आए दिन गोवंशियोें की मौत के मामले सामने आ रहे हैं। अस्थाई तौर पर हर गोशाला में पशु ट्रामा सेंटर संचालित करना संभव नहीं है। क्योंकि इसके लिए न तो इतने पशु चिकित्सक हैं और न देखरेख के लिए अन्य स्टाफ।
यह जानकार भी हैरानी होगी कि पशु चिकित्सा एवं पशु पालन विभाग में 31 पशु चिकित्सकों के स्वीकृत पदों के सापेक्ष सिर्फ 16 पशु चिकित्सक ही तैनात हैं। जिनके ऊपर सभी पशु चिकित्सालयों के संचालन के साथ गोशालाओं में बीमार, सड़क पर घायल गोवंशियों के उपचार की जिम्मेदारी है। ऐसी आधी-अधूरी व्यवस्थाओं के बीच निराश्रित गोवंशियों के संरक्षण के दावे खोखले साबित हो रहे हैं।
निराश्रित गोवंशी होते हैं कमजोर, इलाज पहली जरूरत
पशु चिकित्सक भी यह मानते हैं कि सड़क पर घूमने वाले निराश्रित गोवंशी जो कान्हा उपवन या गोशाला में लाए जाते हैं। वह शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं। उनमें न्यूट्रीशन डिफीसिएंसी होती है। एना प्लाज्मोसिस, थैलेरिया, निगेटिव एनर्जी बैलेंस जैसी समस्याओं से घिरे होते हैं।
कैल्शियम सहित अन्य पोषक तत्वों की कमी से बीमार पड़ते हैं। इसके अलावा रोड एक्सीडेंट से गोवंशी बड़ी संख्या में घायल होते हैं। जिन्हें त्वरित ट्रामा सेंटर के उपचार की जरूरत होती है। लेकिन यह सुविधा नहीं होने से गोवंशियों को उपचार नहीं सुलभ हो पा रहा है।
राजकीय पशु चिकित्सालय में पशु ट्रामा सेंटर नहीं है। इसलिए निगम के सूरजकुंड वाहन डिपो में अस्थायी तौर पर पशु ट्रामा सेंटर संचालित किया जा रहा है। पशु चिकित्सकों के पद भी खाली पड़े हैं। शासन को मांग पत्र भेजा गया है। -डा. संदीप शर्मा, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी, मेरठ।
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