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    चुनार के दीयों से जगमगाएगा अयोध्या का दीपोत्सव, 15 लाख दीयों की पूरी होगी मांग

    By Abhishek sharmaEdited By: Abhishek sharma
    Updated: Tue, 14 Oct 2025 02:05 PM (IST)

    चुनार की मिट्टी से बने 15 लाख दीये अयोध्या के दीपोत्सव को रोशन करेंगे। इन दीयों में चुनार की मिट्टी कला और महिला शक्ति का श्रम शामिल है। आधुनिकता के दौर में कारीगरों ने मिट्टी की पहचान को जीवित रखा है। नवचेतना एफपीओ ग्रामीण महिलाओं को रोजगार देकर स्वावलंबी बना रहा है। ये दीपक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी उपलब्ध हैं।

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    श्रीराम की अवधपुरी को अपनी स्वर्णमयी रश्मियों से आलोकित करेंगे चुनार के दीये।

    जागरण संवाददाता, चुनार (मीरजापुर)। अंधकार पर प्रकाश और अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक, दीपावली इस बार स्वदेशी चेतना के संदेश के साथ चुनार की माटी से बने दीपकों की आभा से जगमगाएगी। अयोध्या में आयोजित भव्य दीपोत्सव में जलने वाले लाखों दीपकों में से करीब 15 लाख मिट्टी के दीये इसी ऐतिहासिक भूमि पर तैयार किए जा रहे हैं, जिनमें परिश्रम, परंपरा और स्वदेशी सृजन की झलक साफ झलकती है।

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    बदलते आधुनिक दौर में जब बिजली से चलने वाली झालरें और मोमबत्तियां पारंपरिक दीयों की जगह लेने लगी थीं, तब चुनार के कारीगरों ने अपनी माटी की पहचान को फिर से जीवित करने की ठानी। चुनार के समसपुर गांव स्थित पाटरी टेराकोटा क्लस्टर दिया घर में इन दिनों दीपावली की हलचल अपने चरम पर है।

    नवचेतना एफपीओ और गाइडिंग सोल्स ट्रस्ट के मार्गदर्शन में यहां पारंपरिक मिट्टी के दीपकों के साथ-साथ रंग-बिरंगे सजावटी दीयों का निर्माण बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। बीते वर्ष यहां से साढ़े आठ लाख दीये अयोध्या भेजे गए थे, जबकि इस बार संख्या करीब दोगुनी है। अभी तक करीब 10 लाख दीयों की खेप चुनार से अवधपुरी पहुंच भी चुकी है।

    दिया घर के अधिष्ठाता चंद्रमौली पांडेय बताते हैं कि इस पहल का उद्देश्य केवल उत्पादन नहीं, बल्कि ग्रामीण महिलाओं को रोजगार देकर स्वावलंबी बनाना भी है। कारखाने में 38 महिला शिल्पकार अपने हुनर से माटी को आकार देकर आकर्षक डिजाइन के दीपक बना रही हैं। पारंपरिक चाक के साथ अब इलेक्ट्रिक चाक और प्रेस डाई मशीन की मदद से उत्पादन में तेजी आई है। प्रत्येक शिल्पी औसतन प्रतिदिन दो हजार दीपक तैयार करती है, जिन्हें बाद में विभिन्न रंगों से सजाया जाता है।

    पिछले वर्ष यहां से बने 40 लाख दीपक उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और नेपाल तक भेजे गए थे। इस बार 60 लाख दीपक बनाने का लक्ष्य रखा गया है, जिनमें से 45 लाख से अधिक दीपक बन चुके हैं। अकेले अयोध्या के लिए 15 लाख दीयों का ऑर्डर मिला है। सबसे अधिक मांग रंगीन और आकर्षक सीता दीये की है, जिसकी कीमत मात्र ढाई रुपये है।

    वहीं नेपाल के व्यापारी मुकेश को भी दीपावली और देव दीपावली के लिए 10 लाख दीयों की आपूर्ति की जा रही है। अयोध्या के व्यापारी राजेश जायसवाल, विकास सिंह, प्रशांत कुमार, उर्मिला गुप्ता, उमेश प्रजापति ने इस आर करीब 15 लाख दीपकों का आर्डर दिया है।

    चंद्रमौली पांडेय ने बताया कि कि अब चुनार के ये स्वदेशी दीपक अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे ऑनलाइन प्लेटफार्म पर भी उपलब्ध हैं। नवचेतना एफपीओ की अर्पणा श्रीवास्तव और सौरभ पांडेय के मार्गदर्शन में यहां पारंपरिक कारीगरी को नई तकनीक से जोड़ते हुए ग्रामीण परिवारों के लिए रोजगार के अवसर सृजित किए जा रहे हैं। दीयों के निर्माण में गुणवत्ता, डिज़ाइन और आकर्षण को बनाए रखने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

    स्व. रामदुलारे प्रजापति के निर्देशन में शिल्पकारों को आधुनिक तकनीकों का प्रशिक्षण दिया गया था, जिसके बाद अब ‘दिया घर’ की पहचान देशभर में स्थापित हो चुकी है। आज चुनार की माटी का हर दीप न सिर्फ घरों को रोशन कर रहा है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की भावना को भी नई दिशा दे रहा है।

    अयोध्या के दीपोत्सव में जब चुनार की माटी से बने ये लाखों दीये एक साथ जलेंगे, तो वह केवल रोशनी नहीं होगी। वह होगी उस मिट्टी की महक, जिसने परंपरा को आधुनिकता के संग जोड़ा और श्रम, स्वाभिमान तथा स्वदेशी कौशल से राष्ट्र को उजाला देने की मिसाल कायम की।