एनपीके खाद के दाम में बढ़ोतरी, मुरादाबाद के किसानों पर 430 रुपये का बोझ, निजी कंपनियों की मनमानी जारी
मुरादाबाद में रबी सीजन के दौरान एनपीके खाद की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है, जिससे किसानों की चिंता बढ़ गई है। सरकारी सब्सिडी के बावजूद, निजी कंपनियां ...और पढ़ें
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जागरण संवाददाता, मुरादाबाद। जनपद में रबी सीजन चल रहा है, लेकिन किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस बार खाद की बढ़ती कीमतें हैं। गेहूं, गन्ना और दलहन जैसी फसलों की बुवाई शुरू होते ही एनपीके खाद की कीमत में बढ़ोतरी ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। सरकारी सब्सिडी के बावजूद निजी कंपनियां बाजार में मनमानी कीमत ले रही हैं। एक साल पहले जो एनपीके खाद की बोरी 1470 में मिलती थी, वही अब 1900 में बिक रही है।
किसानों की लागत एक साल में 430 रुपये प्रति बोरी बढ़ गई है। सबसे ज्यादा कीमत में एनपीके निजी कंपनियों का है। ओसवाल कंपनी की एपीके ब्रांड खाद को लेकर आ रही हैं, जो 1950 रुपये प्रति बोरी में बिक रही है जबकि बाकी कंपनियों की बोरी 1900 के करीब है। कृषि विभाग के अनुसार, एनपीके खाद पर सरकार की ओर से 850 रुपये प्रति बोरी की सब्सिडी दी जा रही है। इसके बावजूद, मुरादाबाद के बाजार में एनपीके का रेट लगातार बढ़ता जा रहा है।
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि निजी कंपनियां परिवहन, वितरण और पैकिंग चार्ज के नाम पर अतिरिक्त राशि जोड़कर दाम बढ़ा रही हैं। खाद की कीमतों में उछाल से किसानों की खेती लागत 15 से 20 प्रतिशत तक बढ़ गई है। जहां पहले गेहूं की बुवाई के लिए किसान तीन बोरी एनपीके खरीदते थे, अब उतनी ही मात्रा लेने में 1300-1500 अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है। उनका मानना है कि यदि यही प्रवृत्ति रही तो आगामी सीजन में खेती का रकबा घट सकता है या किसान कम खाद डालने को मजबूर होंगे जिससे उत्पादकता पर असर पड़ेगा।
एनपीके की कीमतों में यह उछाल केवल बाजार की चाल नहीं, बल्कि वितरण व्यवस्था में असंतुलन का नतीजा है। यदि प्रशासन ने अब सख्ती नहीं बरती तो रबी सीजन के दौरान खाद संकट और मुनाफाखोरी की दोहरी मार से किसानों की स्थिति और खराब हो सकती है। मुरादाबाद के किसान अब उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार बाजार नियंत्रण और सब्सिडी पारदर्शिता के जरिए राहत दिलाने के ठोस कदम उठाए।
एक साल में ऐसे बढ़ी एनपीके की कीमतें
| समय अवधि | एनपीके 12:32:16 (50 किलो बोरी) की कीमत |
|---|---|
| रबी सीजन 2024 | 1470 रुपये |
| मार्च 2025 | 1720 रुपये |
| जून 2025 | 1850 रुपये |
| नवंबर 2025 | 1900 रुपये |
| ओसवाल कंपनी (वर्तमान) | 1950 रुपये |
| कुल बढ़ोतरी | 430 रुपये प्रति बोरी |
मुरादाबाद की मिट्टी में एनपीके की जरूरत सबसे ज्यादा
मुरादाबाद की कृषि भूमि में फास्फोरस और पोटाश की कमी पाई जाती है, जिसके कारण यहां एनपीके खाद की खपत अन्य जिलों से अधिक है। खासकर गन्ना, गेहूं और दाल जैसी फसलों में एनपीके 12:32:16 सबसे ज्यादा उपयोगी साबित होती है। भोजपुर के किसान राजकुमार का कहना है कि सरकारी गोदामों में स्टॉक खत्म होते ही निजी दुकानों से महंगे दामों पर खाद खरीदनी पड़ती है।
सरकारी केंद्रों पर खाद खत्म हो जाती है और दुकानदार कहते हैं कि माल बाहर से आ रहा है। मजबूरी में ओसवाल कंपनी की बोरी 1950 में लेनी पड़ती है। डिलारी के जगदीश सिंह पहले 1500 में बोरी मिल जाती थी, अब 1900 रुपये दे रहे हैं। खेत तैयार करने से पहले ही जेब खाली हो रही है।
कुंदरकी के कृषक इबाहीम हुसैन ने बताया कि ओसवाल का माल ही सबसे ज्यादा उपलब्ध है, लेकिन रेट हमेशा सरकारी रेट से 50-70 ज्यादा होता है। ठाकुरद्वारा के राजवीर का कहना है कि कृषि केंद्रों पर लंबी कतारें हैं। जो खाद वहां से नहीं मिलती, वही बाजार में 200 तक महंगी मिल जाती है।
मुख्य बातें
-एनपीके खाद की कीमत में एक साल में 430 की बढ़ोतरी हुई |
-निजी कंपनियां सरकारी दर से 50–70 अधिक मूल्य वसूल रही हैं। |
-सरकारी केंद्रों पर सीमित स्टॉक और निजी विक्रेताओं की मनमानी से किसान मजबूर। |
-मुरादाबाद की मिट्टी में एनपीके की अधिक जरूरत होने के कारण मांग ऊंची, आपूर्ति सीमित। |
| -कृषि विभाग की निगरानी तंत्र कमजोर, बाजार में नियंत्रण की कमी। |

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