नोएडा और ग्रेटर नोएडा में हजारों फ्लैट बायर्स से ठगी, CBI जांच में खुलेगा बिल्डर प्रोजेक्ट्स का घोटाला
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बिल्डरों ने सरकार से मिलकर हजारों फ्लैट खरीदारों को धोखा दिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई जांच का दायरा बढ़ने से 2007-2017 के बीच नियमों में हुए बदलावों की जांच होगी जिसमें बिल्डरों को गलत तरीके से फायदा पहुंचाया गया। नोएडा बिल्डर्स प्रोजेक्ट में नियमों को बदलकर और कम धनराशि पर जमीन आवंटित की गई।

धर्मेंद्र चंदेल, नोएडा। नोएडा, ग्रेटर नोएडा में बिल्डरों ने बैंकों के साथ गठजोड़ के अलावा तत्कालीन प्रदेश सरकार से भी मिलीभगत कर फ्लैट खरीदारों को ठगने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डर और बैंकों के गठजोड़ की जांच के आदेश दिए हैं। जांच का दायरा बढ़ा तो उन मामलों की भी जांच हो सकती है, जिनमें बिल्डरों को नियम विरुद्ध छूट दी गई।
दोनों प्राधिकरणों में बदले गए सबसे ज्यादा नियम
2007 से 2012 के बीच दोनों प्राधिकरणों में नियमों में सर्वाधिक बदलाव किया गया। बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए प्राधिकरण ने ग्रेटर नोएडा वेस्ट के जमीन के मास्टर प्लान को ही बदल दिया। औद्योगिक विकास के लिए आरक्षित जमीन को एनसीआर प्लानिंग बोर्ड की मंजूरी के बिना ही ग्रुप हाउसिंग कर दिया गया। तत्कालीन प्रदेश सरकार ने इसे मंजूरी भी दे दी।
खरीदारों को भुगतना पड़ा खामियाजा
ग्रुप हाउसिंग सोसायटी के लिए जमीन आवंटित करते समय 30 प्रतिशत राशि लेने के प्रविधान में बदलाव कर इसे मात्र 10 प्रतिशत कर दिया। आवंटन शर्त भी हल्की कर दी गई। इससे जमीन की खूब बंदरबांट हुई।
अकेले ग्रेटर नोएडा वेस्ट में इन पांच वर्षों में 203 बिल्डरों को 2600 एकड़ जमीन आवंटित की गई। बाकी सेक्टरों में करीब 600 एकड़ जमीन बिल्डरों को बेची गई।
बिल्डरों पर खूब मेहरबान रही बसपा सरकार
नोएडा में भी दो हजार एकड़ से अधिक जमीन बिल्डरों को आवंटित की गई। नोएडा में 47 व ग्रेटर नोएडा में 95 बिल्डर परियोजना तो अभी भी ऐसी हैं, जिनमें फ्लैटों का निर्माण कार्य शुरू अथवा पूरा नहीं हुआ है। इनमें अर्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर, आम्रपाली, यूनिटेक, अंसल, जेपी, पार्श्वनाथ आदि प्रमुख हैं। बसपा सरकार बिल्डरों पर खूब मेहरबान रही। बिल्डरों की निर्माण व रजिस्ट्री पेनाल्टी माफ की गई।
बिल्डरों ने प्राधिकरण और प्रदेश सरकार से मिलीभगत कर निवेशकों को सुपर एरिया के नाम पर भी खूब लूटा। पहले बैंकों से साठगांठ कर ईएमआइ के ब्याज चुकाने के नाम पर निवेशकों को ठगा। बुकिंग करते समय सिर्फ कवर्ड एरिया के साथ बालकानी के पैसे लेने का ही एग्रीमेंट किया गया, लेकिन बाद में सीढ़ी व अन्य सुपर एरिया का पैसा भी निवेशकों से वसूला जाने लगा।
जिन्हें अनुभव नहीं था, उन्हें आवंटित किए ग्रुप हाउसिंग के प्लॉट
ऐसे लोगों को ग्रुप हाउसिंग के प्लॉट आवंटित कर दिए गए, जिन्हें अनुभव नहीं था। वह शहर में ठेकेदारी करते थे। ठेकेदार से बिल्डर बने लोग फ्लैटों की बुकिंग के नाम पर खरीदारों को ठगते रहे। आश्चर्य की बात यह है कि बिल्डरों के कई प्रोजेक्ट ऐसे थे, जिनके मानचित्र भी स्वीकृत नहीं हुए थे। बिल्डर बुकिंग के नाम पर निवेशकों को ठगते रहे, लेकिन प्राधिकरण और तत्कालीन प्रदेश सरकार आंख मूंदे बैठी रही।
निर्माणाधीन परियोजनाओं को पूरा कराने के लिए 2015-16 में नोएडा, ग्रेटर नोएडा के तत्कालीन सीईओ दीपक अग्रवाल ने एस्क्रो अकाउंट खुलवाने का प्रविधान किया। इसमें निवेशकों से आने वाली किश्त का अधिकांश पैसा निर्माण पर खर्च करने का प्रविधान किया गया। बिल्डर को सिर्फ जमीन की किश्त अदा करने के लिए भी धनराशि मिलनी थी। दीपक अग्रवाल का तबादला होते ही एस्क्रो अकांउट को तिलांजलि दे दी गई।
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