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    अब दिल्ली एम्स के नहीं काटने होंगे चक्कर, नोएडा के चाइल्ड PGI में मिलेगी बड़ी सुविधा

    Updated: Sun, 17 Aug 2025 10:25 AM (IST)

    नोएडा के चाइल्ड पीजीआई में अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शिशुओं की गंभीर बीमारियों की जांच हो सकेगी। इसके लिए चाइल्ड पीजीआई सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों से अनुबंध करेगा। आधुनिक मशीन से थायराइड लंबाई और वजन न बढ़ने जैसी बीमारियों का पता चलेगा। अब लोगों को इलाज के लिए दिल्ली एम्स के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। यह सुविधा सितंबर से शुरू होगी।

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    पीजीआई नोएडा में देशभर के नवजात शिशुओं के खून की बूंद से पांच बीमारियां स्कैन होंगी ।

    सुमित शिशौदिया, नोएडा। शिशुओं में जन्म से थायराइड, लंबाई और वजन न बढ़ना, फिनाइनल किट व मूत्र संबंधित गंभीर बीमारियों पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों को नोएडा के चाइल्ड पीजीआई में सितंबर से बड़ी सुविधा मिलेगी। पीजीआई में ही पश्चिमी उप्र की पहली स्क्रीनिंग लैब बन रही है।

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    ऐसे में अब स्वजन को शिशु के इलाज के लिए लखनऊ के एसजीपीजीआई या फिर दिल्ली में एम्स के चक्कर काटकर मोटा खर्चा नहीं झेलना पड़ेगा।। एक महीने में प्रबंधन के अधिकारी आधुनिक मशीन को विशेषज्ञों की मदद से इंस्टाल कराकर मरीजों के लिए व्यवस्था शुरू कर देंगे।

    लखनऊ के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में नवजात शिशुओं की स्क्रीनिंग की सुविधा नहीं है। ऐसे में शिशु में बन रही विभिन्न तरह की बीमारियों का मां व अन्य स्वजन को पता नहीं चल पाता है।

    उनका इलाज करने मेें दिक्कत होती है। मगर अब चाइल्ड पीजीआइ में बन रही स्क्रीनिंग लैब में शिशु के अंदर लंबाई न बढ़ाने वाले हार्मोन्स की कमी , थायराइड, वजन घटना, यूरिन से फिनाइल की तरह बदबू आना व अन्य गंभीर बीमारियों का पता लगा सकेंगे।

    बायो-कैमिस्ट्री विभाग की हेड डा ऊषा बिंदल का कहना है कि जन्म लेने के समय नवजात की नसें काफी पतली होती हैं। इसके लिए उनकी एडी से खून की एक बूंद लेकर पांचों बीमारियों का आसानी से पता लगाया जा सकेगा।

    इस लैब के बनने से नोएडा, गाजियाबाद, हापुड़ और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रहने वाले लोगों को बड़ी राहत मिलेगी। खास बात है कि चिकित्सक, खून की बूंद से अधिकतम छह घंटे में बीमारियां पता कर लेंगे। इसके बाद स्वजन को रिपोर्ट बताकर उनका इलाज करने में भी आसानी होगी।

    उनका दावा है कि जन्म के समय इन बीमारियों का पता नहीं चलने से शिशु को बढ़ती उम्र में कई तरह की गंभीर दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इससे उसकी जान भी खतरे में बनी रहती है। बताया कि आधुनिक मशीन की लागत 60 से 80 लाख के बीच है।

    मशीन शुरू होते ही तय होंगी जांच दरें 

    संस्थान के निदेशक प्रो. डॉ. अरूण कुमार सिंह का कहना है कि स्क्रीनिंग जांच के लिए दरें अभी तय नहीं हुई हैं। हालांकि, यह दरें लखनऊ के एसजीपीजीआइ से थोड़ी कम हो सकती हैं। प्रबंधन ने लखनऊ के उच्च अधिकारियों से बीमारियों की जांच दरें की सूची मांगी है। उधर, स्क्रीनिंग लैब में एक चिकित्सक, दो टेक्नीशियन समेत पांच स्टाफ की जरूरत है। लैब शुरू होने से पहले स्टाफ को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।