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    कथावाचक आचार्य शांतनु महाराज ने प्रयागराज में कहा- धर्म के प्रति कट्टर बनें सनातनी, धर्मविहीन व्यक्ति पशु के समान होता है

    By SHARAD DWIVEDIEdited By: Brijesh Srivastava
    Updated: Mon, 10 Nov 2025 12:54 PM (IST)

    कथावाचक आचार्य शांतनु जी महाराज ने कहा कि धर्म हमारा आधार है और धर्मविहीन व्यक्ति पशु के समान होता है। उन्होंने सनातनी धर्मावलंबियों को धर्म के प्रति कट्टर होने की बात कही। श्रीराम कथा के दौरान उन्होंने भरत जी के त्याग और तपस्या का वर्णन किया, जिससे श्रोता भावविह्वल हो गए। कथा में उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति समेत कई विशिष्टजन उपस्थित थे।

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    प्रयागराज में कथावाचक आचार्य शांतनु जी महाराज को स्मति चिह्न भेंट करते अतिथि। जागरण

    जागरण संवाददाता, प्रयागराज। धर्म ही हमारा आधार है। धर्म से जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। परोपकार, संस्कार, सेवा और समर्पण की सीख हमें धर्म से मिलती है। धर्मविहीन व्यक्ति पशु के समान होता है। उक्त बातें कथावाचक आचार्य शांतनु जी महाराज ने कही।

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    श्रीराम कथा में भक्तों पर की ज्ञान वर्षा 

    शहर के सलोरी काटजूबाग कालोनी स्थित दुर्गा पूजा पार्क में भइया जी का दाल भात परिवार और श्री सुमंगलम सेवा न्यास की ओर से आयोजित श्रीराम कथा में भक्तों पर ज्ञान की वर्षा करते हुए बोले सनातन धर्मावलंबी जरूरत से अधिक उदार होते हैं, जबकि उन्हें धर्म के प्रति कट्टर होना चाहिए। अगर हमारे धर्म और आराध्य के प्रति कोई गलत बातें कहे तो उसका विरोध करना चाहिए। जबकि हम ऐसा नहीं करते। प्रभु श्रीराम से बड़ा दूसरा कोई परोपकारी नहीं था, लेकिन धर्म और मानवता पर आंच आयी तो पराक्रम दिखाकर शत्रुओं को परास्त किया।

    मानस में भरत जी का अनेक लोगों ने महिमा मंडित किया

    आचार्य शांतनु ने कहा कि जग जप राम राम जप जेहि, अर्थात भगवान स्वयम भरत जी का स्मरण करते हैं मानस में भरत जी को अनेक लोगों ने महिमा मंडित किया है। तीर्थराज प्रयाग ने कहा कि भरत सब विधि साधु हैं। भगवान ने स्वयं कहा कि लखन भरत जैसा पवित्र भाई संसार में नहीं मिल सकता। जनक जी ने सुनयना से कहा कि रानी भरत की महिमा राम जानते तो हैं परंतु वह भी बता नही सकते।

    पूरी प्रजा भरत जी के साथ भगवान से मिलने चित्रकूट चली

    भरत जी की साधना को बताते हुए महाराज जी ने कहा कि उनकी कठिन साधना को देखकर बड़े-बड़े साधु संत भी उनके पास जाने में घबराते थे। स्वयं वसिष्ठ जी भी जाने से कतराते थे। पिता की मृत्यु अवाम भगवान के वन गमन का समाचार मिलने पर भरत जी विह्वल हो गए और विलाप करने लगे माता कैकेई को बहुत बुरा भला कहा है। सारी सभा को फटकार लगाई है कौशल्या जी के समझाने पर भरत जी शांत हुए हैं और सबको आश्वासन दिया है कि हम सबको भगवान से मिलाने ले चलेंगे और पूरी प्रजा भरत जी के साथ भगवान से मिलने चित्रकूट चली।

    कारुणिक प्रसंग को सुनकर श्रोता भावविह्वल 

    भगवान से मिलन हुआ है भगवान के आदेश से उनकी पादुका सिरोधार्य कर भरत जी अयोध्या वापस आए हैं। उसी पादुका को सिंहासन पर रखकर अयोध्या के राजकाज को संभाला। इस कारुणिक प्रसंग को सुनकर श्रोता भावविह्वल हो गया। सबकी अश्रु धार फूट पड़ी एवं सम्पूर्ण वातावरण भक्तिमय हो गया।

    हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति समेत अनेक विशिष्टजन जुटे

    कथा के दौरान उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान, जिला न्यायाधीश मऊ डा बालमुकुंद चौरसिया, अपर महाधिवक्ता अशोक मेहता, सत्य विजय सिंह, सांसद उज्जवल रमण सिंह, अपर पुलिस आयुक्त डॉ अजय पाल शर्मा, वरिष्ठ भाजपा नेता सुबोध सिंह, अशोक कुमार सिंह, पूर्व महापौर अभिलाषा गुप्ता नंदी, अधिवक्ता विनय सिंह, जिला पंचायत सदस्य कुलदीप त्रिपाठी, विधि प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक अरविंद सिंह, कैट बार के पूर्व अध्यक्ष अनिल सिंह, शैलेन्द्र मौर्या, दीपू सिंह, राकेश पाण्डेय, कमलेश पाठक, शिव यादव, प्रभाकर सिंह, अमित प्रताप सिंह, रामू योगी, राजीव कुमार सिंह, शैलेश सिंह आदि उपस्थित रहे।

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