नसबंदी के बाद भी पैदा हुई बच्ची, नाराज महिला ने किया केस; अब सरकार को भरण-पोषण का आदेश
प्रयागराज की स्थायी लोक अदालत ने नसबंदी विफल होने पर सरकार को बच्ची के भरण-पोषण का खर्च उठाने का आदेश दिया। अदालत ने डॉक्टरों की लापरवाही मानते हुए मह ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, प्रयागराज। एक महिला की नसबंदी होने के बावजूद बच्ची पैदा होने के मामले में स्थायी लोक अदालत ने बड़ा फैसला सुनाया है। लोक अदालत ने डॉक्टरों की गंभीर चूक माना और सरकार को बच्ची के भरण-पोषण का आदेश दिया है। इसके साथ ही बच्ची की मां को भी 20 हजार रुपये मुआवजा देने के लिए सरकार को कहा गया है।
बताया गया है कि याची अनीता देवी ने स्थायी लोक अदालत में अर्जी दाखिल करते हुए नसबंदी में विफलता को को लेकर शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें कहा गया था कि डॉक्टरों की गलती के कारण बच्ची का जन्म हुआ है। ऐसे में उन्हें मुआवजा मिलना चाहिए।
महिला ने अपनी अर्जी में यह भी बताया कि वह एक गरीब महिला है और पहले से उसके दो बच्चे हैं। उसने मऊआइमा के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डाक्टर नीलिमा से नसबंदी कराई थी। बताया गया था कि उसकी नसबंदी सफल हो गई है और उसे अब आगे बच्चा पैदा नहीं होगा।
ऑपरेशन के कुछ दिनों बाद याची महिला को परेशानी हुई तो उसने अल्ट्रासाउंड कराया। इसके बाद 31 जनवरी 2014 को पता चला कि उसके पेट में 16 सप्ताह छह दिन का बच्चा है। उसे लड़की पैदा हुई।
अनचाही संतान से दुखी याची ने सीएमओ को पक्षकार बनाते हुए स्थाई लोक अदालत में वाद दायर किया था। डाक्टरों की इस गंभीर चूक के लिए मुआवजे की मांग भी की थी। मामले में स्थायी लोक अदालत के चेयरमैन विकार अहमद अंसारी, सदस्य डा. रिचा पाठक व सत्येन्द्र मिश्रा ने सुनवाई करते हुए बच्ची के भरण-भोषण का आदेश सरकार को दिया।
लोक अदालत ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह याची के अनचाही संतान बच्ची के पोषण के लिए दो लाख रुपये, उसकी शिक्षा, रखरखाव आदि के लिए पांच हजार रुपये और प्रतिमाह बच्ची की 18 वर्ष की आयु तक अथवा उसके ग्रेजुएशन की डिग्री लेने तक, जो भी पहले हो भुगतान करें।
यही नहीं स्थायी लोक अदालत ने मां को भी नसबंदी विफल होने के कारण हुई मानसिक और शारीरिक पीड़ा के लिए 20 हजार रुपये का मुआवजा देने का सरकार को निर्देश दिया है।

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