आधुनिकता का हाथ थाम मिट्टी में तरासती जिंदगी, कामन फैसिलिटी सेंटर से जुड़े हैं करीब 135 हस्तशिल्पी
प्रयागराज के जैतवारडीह में स्थित एक हस्तशिल्प केंद्र स्थानीय कुम्हारों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला रहा है। लगभग 135 शिल्पकार इस केंद्र से जुड़े हैं। यहां वे आधुनिक मशीनों का उपयोग करके मिट्टी के बर्तन बनाते हैं और अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहे हैं। यह केंद्र सरकार के राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम का हिस्सा है।

जागरण संवाददाता, प्रयागराज। वैसे तो कुम्हार मिट्टी को तरास कर उसे जीवन देता है, लेकिन यहां मिट्टी लोगों की जिंदगी तरास रही है। पड़ीला के जैतवारडीह पड़ीला में संचालित कामन फैसिलटी सेंटर से लगभग 135 हस्तशिल्पी जुड़े हैं। आधुनिक मशीनों से लैस इस प्लांट ने कुम्हारों की उन दिक्कतों को दूर कर दिया, जो परंपरागत तरीके से व्यवसाय में आती थीं। जो हस्तशिल्पी मजदूरी के लिए मजबूर थे, अब वह इस सेंटर से जुड़कर आर्थिक मजबूती पा रहे हैं।
केंद्र सरकार के नेशनल हैंडीक्राफ्ट डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत लगभग तीन करोड़ रुपये से पिछले साल सितंबर में इस सेंटर की स्थापना हुई थी। इसका संचालन मानव कल्याण सेवा समिति कर रही है। यहां मिट्टी के बर्तन बनाने की सात से आठ मशीनें लगी हैं। यहां सिर्फ मिट्टी के उत्पाद ही नहीं बनते, बल्कि इसका हुनर भी सिखाया जाता है।
समिति के प्रबंध निदेशक अशोक कुमार सिंह बताते हैं कि सेंटर से लगभग 450 लोग पंजीकृत हैं, लेकिन इनमें से 135 ही सक्रिय रहते हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं भी इनमें शामिल हैं। इनमें से कुछ ऐसे हैं जो प्लांट से तैयार मिट्टी ले जाकर अपने घर पर बर्तन बनाते हैं। फिर उन्हें लाकर यहां दे देते हैं। वहीं कुछ प्लांट में ही आकर अपने बर्तन तैयार कर लेते हैं।
18 से 20 हस्तशिल्पी यहां नियमित काम करते हैं। नियमित काम करने वाले शिल्पकार आठ से नौ हजार रुपये प्रतिमाह कमा लेते हैं। दूसरे शिल्पकारों को उनके काम के हिसाब से भुगतान होता है। मार्केटिंग की चिंता भी शिल्पकारों को नहीं होती। सेंटर खुद उनसे उत्पाद खरीद लेता है।
इन्होंने क्या कहा
जमीन है नहीं। पति भी बीमार रहते हैं। दो बच्चों की परवरिश व घर चलाना मुश्किल था। दूसरों के यहां मजदूरी करते थे। इस सेंटर से जुड़नेे के बाद मजदूर से शिल्पकार बन गई। यहां से मिलने वाले वेतन से घर-गृहस्थी की गाड़ी कुछ पटरी पर आ गई है।
- प्रीती
कुम्हारी का पुश्तैनी काम है, लेकिन अब पहले जैसी बिक्री नहीं हो पाती थी। परिवार का पालन-पोषण मुश्किल हो रहा था। जमीन भी नहीं है कि खेती कर लें। जब से सेंटर पर काम शुरू किया है, तब से आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार आया है।
- आरती प्रजापति
कई जनपदों में होती है आपूर्ति
इस प्लांट में प्रतिदिन कुल्हड़, गिलास, प्लेट, कटोरी, सुराही, मटकी, गमला आदि मिलाकर करीब 15 से 16 हजार मिट्टी के बर्तन तैयार किए जाते हैं। प्रयागराज की अलग-अलग बाजारों के अलावा भदोही, जौनपुर, प्रतापगढ़ और मध्य प्रदेश के रीवां तक इनकी आपूर्ति होती है।
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