आरोपित के भी घायल होने पर शिकायतकर्ता के बयान को सर्वोच्च महत्व नहीं : हाई कोर्ट
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि किसी मामले में आरोपित भी घायल है, तो केवल शिकायतकर्ता के बयान को सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं दी जा सकती। न्यायालय ने एक आपराधिक मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। न्यायालय ने कहा कि साक्ष्यों का समग्र मूल्यांकन किया जाना चाहिए और केवल एक पक्ष के बयान पर निर्भर रहना उचित नहीं है।

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि यदि घटना में आरोपित भी घायल हो, तो शिकायतकर्ता पक्ष के घायल गवाह का बयान तब तक निर्णायक नहीं माना जा सकता, जब तक वह अन्य साक्ष्यों और चिकित्सकीय रिपोर्ट से मेल न खाए। इसी आधार पर न्यायालय ने आगरा के ताजगंज थाना क्षेत्र में हत्या के प्रयास, जान से मारने की धमकी और चाकू से हमले के मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए आरोपियों को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा।
यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव मिश्र और न्यायमूर्ति डा. अजय कुमार द्वितीय की खंडपीठ ने शिकायतकर्ता संजय कुमार की अपील खारिज करते हुए दिया।अपीलार्थी संजय कुमार ने आरोप लगाया था कि 28 मई 2018 को आनंद कुमार और उसके दो साथियों ने उसे रोककर चाकू से हमला किया तथा जान से मारने की धमकी दी।
'पुलिस ने रिपोर्ट नहीं की दर्ज'
इस हमले में उसके बाएं हाथ में चोट आई, लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की। बाद में उसने न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष अर्जी देकर एफआइआर दर्ज कराई। ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों के आधार पर आरोपियों को बरी कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा कि पीड़ित द्वारा तीन अंगुलियां कटने का दावा मेडिकल रिपोर्ट से मेल नहीं खाता, जिसमें केवल एक अंगुली पर तेज धार वाले हथियार का घाव पाया गया। साथ ही घटना के लगभग 14 दिन बाद मजिस्ट्रेट के माध्यम से प्राथमिकी दर्ज की गई और कोई स्वतंत्र गवाह भी पेश नहीं किया गया। इन तथ्यों को देखते हुए अपील को खारिज कर दिया गया।

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