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    पत्नी-बेटी को देना ही होगा गुजारा भत्ता, आदेश पर हाई कोर्ट ने हस्तक्षेप से किया इनकार, पति की याचिका खारिज

    Updated: Sat, 11 Oct 2025 05:54 AM (IST)

    उच्च न्यायालय ने पत्नी और बेटी को गुजारा भत्ता देने के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। अदालत ने पति की याचिका खारिज करते हुए कहा कि उसे अपनी पत्नी और बेटी का भरण-पोषण करना होगा। न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश को सही ठहराया और पति की आर्थिक स्थिति को देखते हुए गुजारा भत्ता देने की क्षमता को स्वीकार किया। यह फैसला महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है।

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    विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कानपुर निवासी गौरव गुप्ता की उस आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें परिवार अदालत द्वारा पत्नी रितिका गुप्ता और बेटी को कुल 40 हजार रुपया प्रति माह गुजारा भत्ता देने संबंधी आदेश को चुनौती दी गई थी। यह आदेश न्यायमूर्ति मदन पाल सिंह की एकल पीठ ने दिया है।

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    कानपुर नगर के अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश ने आठ अक्टूबर 2024 को पारित आदेश में याची को निर्देश दिया था कि वह पत्नी और बेटी, दोनों को 20 -20 हजार रुपया प्रति माह (कुल 40 हजार रुपए ) भरण-पोषण के रूप में दे। इस आदेश को यह कहते हुए हाई कोर्ट में चुनौती दी गई कि भरण-पोषण की कुल राशि बहुत अधिक है।

    याची कंपनी में निदेशक है लेकिन नुकसान होने के कारण मात्र 2,40,000 प्रति वर्ष (यानी 20 हजार रुपया प्रति माह) कमा पाता है। पत्नी पढ़ी लिखी है। उसके पास इंटीरियर डिजाइनिंग की डिग्री है। शादी से पहले वह कमाती थी। इसलिए भत्ता राशि कम की जाए। पत्नी की तरफ से कहा गया कि वह स्वयं और अपनी बेटी का भरण-पोषण करने में असमर्थ है।

    सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा, ‘केवल इसलिए कि पत्नी शिक्षित है और कुछ कमा सकती है, यह उसके भरण-पोषण के दावे को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता।’

    कोर्ट ने माना कि पति के पास पत्नी और बच्चे के भरण-पोषण के पर्याप्त साधन हैं। उसने जानबूझकर अपनी वास्तविक आय छिपाने का प्रयास किया। सवाल उठाया कि अगर कंपनी को नुकसान हुआ तो उसके पिता और माता (निदेशकों) का वेतन कैसे बढ़ गया?

    न्यायालय ने इसे भरण-पोषण देने से बचने का जानबूझकर किया गया कृत्य माना। कोर्ट ने कहा, एक सक्षम और स्वस्थ युवा व्यक्ति को अपनी पत्नी और बच्चों के लिए पर्याप्त कमाई करने में सक्षम माना जाता है। कोर्ट ने परिवार अदालत का फैसले बरकरार रखते हुए अर्जी खारिज कर दी।