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    दुष्कर्म पीड़िता से शादी पर पॉक्सो केस रद, हाई कोर्ट ने कहा- धुल चुका अपराध

    Updated: Sat, 22 Nov 2025 09:29 AM (IST)

    इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि दुष्कर्म पीड़िता अगर अपनी मर्जी से आरोपी से शादी करती है, तो पॉक्सो एक्ट का मामला रद्द हो सकता है। कोर्ट के अनुसार, शादी से अपराध धुल जाता है, क्योंकि इसका मकसद पीड़िता का पुनर्वास और सम्मान सुनिश्चित करना है। कोर्ट ने पीड़िता के हित को सर्वोपरि माना।

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    तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतीकरण के लिए किया गया है। जागरण

    विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वर्ष 2016 में पॉक्सो अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत दर्ज दुष्कर्म मामले में आपराधिक केस कार्रवाई यह कहते हुए रद कर दिया है कि अभियुक्त ने पीड़िता से ‘बहुत पहले’ शादी कर ली थी। यह देखते हुए कि दंपती बच्चे के साथ सुखी वैवाहिक जीवन जी रहे हैं, न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह की पीठ ने कहा कि ‘यदि कोई आपराधिक कृत्य था...तो वह अब धुल चुका है।’

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    अपीलार्थी के खिलाफ संत कबीर नगर के थाना बखिरा में आइपीसी की कई धारा के साथ पाक्सो अधिनियम की धारा 7/8 के तहत आरोप था। पीड़िता के पिता ने जनवरी 2017 में एफआइआर दर्ज कराई थी। आरोप लगाया था कि अपीलार्थी उसकी नाबालिग बेटी को बहला-फुसलाकर भगा ले गया।

    पीड़िता ने बरामदगी के बाद सीआरपीसी की धारा 161 के तहत अपने बयान में कहा कि वह अपनी मर्जी से गई थी, क्योंकि वह बालिग थी। उसने अपीलार्थी संग निकाह की भी इच्छा जताई। अदालत ने दर्ज किया कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी की फरवरी 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, घटना के समय पीड़िता की उम्र लगभग 18 वर्ष थी। इसके बाद आरोप पत्र दाखिल किया गया और मजिस्ट्रेट ने अपराधों का संज्ञान लिया।

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    मुकदमा लंबित रहने के दौरान, अपीलार्थी व पीड़िता ने शादी कर ली और एक ही छत के नीचे रहने लगे। अगस्त 2018 में पुत्र पैदा हुआ। यह मामला उच्च न्यायालय के मध्यस्थता और सुलह केंद्र में भेजे जाने पर वादी सहित सभी पक्षों के बीच अक्टूबर में समझौता हो गया।

    वादी का कहना था कि उसे किसी भी तरह से कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि दंपती शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन जी रहे थे। वैसे राज्य सरकार की ओर से एजीए ने रामजी लाल बैरवा बनाम राजस्थान राज्य में सर्वोच्च न्यायालय के 2024 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि पाक्सो एक्ट मामले में कोई समझौता नहीं हो सकता क्योंकि यह अपराध समाज के विरुद्ध है। बचाव पक्ष की ओर से श्रीराम उरांव बनाम छत्तीसगढ़ राज्य 2025 और महेश मुकुंद पटेल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का भी हवाला दिया गया।