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    Photography Passion in Prayagraj : प्रयागराज के छुपे रुस्तम ये पेशेवर, फोटोग्राफी के भी उस्ताद, फोटो में देखें इनकी कलाकारी

    Updated: Sun, 17 Aug 2025 04:37 PM (IST)

    प्रयागराज में कई ऐसे लोग हैं जो अपने पेशे के साथ ही फोटोग्राफी में भी माहिर हैं। इनमें डाक्टर एनके पांडेय कैमरे के अपर्चर की रफ्तार भी समझते हैं। जिला खाद्य विपणन अधिकारी विवेक सिंह बनारस के घाटों की तस्वीरें लेते हैं। कला शिक्षक इरशाद अहमद ने महाकुंभ की तस्वीरें खींची हैं। कंप्यूटर इंजीनियर वैभव मैनी धरोहरों को कैमरे में कैद की।

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    प्रयागराज के डाक्टर, शिक्षक और इंजीनियर भी फोटोग्राफी के शौकीन हैं।

    जागरण संवाददाता, प्रयागराज। हर किसी के अंतर्मन में कोई न कोई सुखद स्मृति अवश्य होती है। समय आने पर लोग उसे साझा करते हैं। कभी विचार के स्वरूप में तो कभी घटनाक्रम के वृत्तांत स्वरूप। बहुत से लोग इनका दस्तावेजीकरण करते हैं। वह डायरी लिखने से लेकर तस्वीर संग्रह जैसी विधा हो सकती है। कला की कोई भी विधा हो सकती है।

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    19 अगस्त को हम विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाने जा रहे हैं। इसी आलोक में कुछ ऐसे चेहरों पर हम कैमरे का फ्लैश चमका रहे हैं जो दूसरे पेशे में रहकर भी मझे हुए छायाकार सी आभा बिखेर रहे हैं। उनकी खींची तस्वीरें स्मृतियों की वह पोटली हैं जो दस्तावेज बनने के साथ अतीत व वर्तमान का सेतु हैं। उनमें गौरव भान, सनातनी परंपरा व जीव दर्शन होता है। फोटोग्राफी की विधा भी समृद्ध होती दिखाई देती है।

    प्रकृति ने कहा- तू खीच मेरी फोटो...

    संगम नगरी के आदर्शनगर निवासी डा. एनके पांडेय मरीजों की नब्ज टटोलने के साथ कैमरे के अपर्चर की रफ्तार को भी बखूबी समझा। वर्ष 1999 में अंतर्मन के तार झंकृत हो उठे, फिर क्या था। हाथ में कैमरा थाम लिया। लेंस के सहारे किसी फ्रेम में चीजों को एडजेस्ट करने की ओर बढ़ने लगे। पहली बार जिम कार्बेट पार्क गए। वहां की हरियाली और वन्यजीवों ने मानो अपने आवरण में ले लिया। रील वाले कैमरे में रियल लाइफ को उतारने लगे, हालांकि वास्तविक जीवन में सफेद कोट पहनकर कंधे पर स्टेथोस्कोप लटकाए हुए थे। 

    कभी हाथियों के झुंड तो कभी भागते दौड़ते हिरण अपनी तस्वीरें में कैद किए। दूर आसमान में उड़ती चिड़िया या पेड़ की शाख पर बैठे पंक्षियों को भी अपने छायाचित्र में उतारा। वर्तमान में चंद्रशेखर सिंह आयुर्वेदिक पीजी कालेज में शिक्षण करते हुए भी छायाचित्रों का अलग संसार बना रखा है। वन्य जीवों की फोटोग्राफी के साथ कभी फैशन तो कभी यात्रा वृत्तांत कहने वाले छायाकार के रूप में खुद को लोगों के सामने रखा।

    इनकी प्रतिभा को देखना है तो फेसबुक पर फोटो वर्ड नाम से बने ग्रुप को जरूर देखें। इसमें करीब दो हजार लोग जुड़े हैं, ये वो लोग हैं जो छायाचित्रों में रुचि रखते हैं। उन्हें समय समय पर अच्छी तस्वीरों के लिए गुर भी सिखाते रहते हैं। डा. पांडेय अब तक 400 से अधिक पुरस्कार फोटोग्राफी के क्षेत्र में प्राप्त कर चुके हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी फोटो की प्रदर्शनी लगा चुके हैं।

    पिता से गुर सीखा और बनारस के घाटों ने वातावरण दिया

    चर्चलेन निवासी विवेक सिंह, महराजगंज में जिला खाद्य विपणन अधिकारी हैं। फोटोग्राफी की दुनिया में करीब 18 वर्ष से हैं। कभी वन्य जीवों की तस्वीरों को विषयवस्तु बनाया तो कभी गंगा, यमुना सरस्वती के तट से सनातनी आभा के रंग को और चटख किया। टेक्सास और न्यूयार्क में भी अपनी तस्वीरों की प्रदर्शनी लगा चुके हैं। 2019 के कुंभ को दिखाने वाली चित्र आधारित पुस्तक सेलीब्रेटिंग फेथ ने सनातनी आभा को बिखेरने के साथ फोटाग्राफी के भी नए आयाम गढ़े हैं।

    वर्ष 2025 के कुंभ को कैमरे में खूब कैद किया। उन चित्रों की पुस्तक लाने के लिए भी प्रयासरत हैं। छयाचित्रों की दुनिया में कैसे आए? इस बात का जवाब देते हुए कहते हैं कि पिता स्व. शत्रुघन सिंह इस विधा के पहले गुरु थे। वह फोटोग्राफी में खूब रुचि रखते थे। उन्हीं से कैमरा पकड़ना सीखा। तब बनारस में रहना होता था। वहां के घाटों ने मानो इस शौक को और भी बढ़ा दिया। पढ़ाई पूरी करने के साथ यूपी पीसीएस की परीक्षा पास की। सामाजिक और घरेलू दायित्वों को पूरा करने के साथ अपने शौक को भी जिंदा रखा। इसके लिए कभी बांधवगढ़ गए तो कभी कान्हा नेशनल पार्क।

    चित्रकला पढ़ाते हुए छायाचित्रों की दुनिया बनाई

    एमआर शेरवानी इंटर कालेज में कला शिक्षक इरशाद अहमद ने भी छायाचित्रों की दुनिया बना रखी है। मास्टर आफ फाइन आर्ट की पढ़ाई करते हुए स्केच खूब बनाए। अब बच्चों को भी उसी विधा में प्रशिक्षण दे रहे हैं लेकिन कैमरे से तस्वीरे खींचने का भी शौक है। करीब दस वर्ष से शिक्षक के रूप में सक्रिय है लेकिन इतना ही समय छाया चित्रों की दुनिया में भी गुजार चुके हैं। इसके लिए कई पुरस्कार भी जीत चुके हैं।

    वर्ष 2025 के महाकुंभ को डिजिटल कैमरे से देखा। उसके लिए एडुलीडर्स यूपी पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं। इससे पूर्व 15वीं राष्ट्रीय फोटोग्राफी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीते थे। मणिकर्णिका आर्ट गैलरी झांसी ने यह पुरस्कार दिया था। 2020 में नेशनल फोटोग्राफी कंपटीशन भी जीत चुके हैं।

    पिता ने इंजीनियर बनाया, बहन ने फोटोग्राफी की राह दिखाई

    दरभंगा के वैभव मैनी एक निजी कंपनी में कंप्यूटर इंजीनियर हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमसीए की पढ़ाई करने के बाद वह तकनीकी दुनिया से जुड़े लेकिन उनकी पहचान अच्छे छायाकार के रूप में भी है। उनकी तस्वीरों में शहर की धरोहरों को बखूबी देखा जा सकता है। सनातनी तीज त्यौहार के साथ अपने आसपास के परिवेश को भी वह कैमरे के लेंस से अच्छी तरह देखते हैं। खास यह कि अपनी तस्वीरों से ढेरों समस्याओं को उठाते हुए उन्हें समाधान तक पहुंचाने का भी प्रयास करते हैं।

    कहते हैं, फोटोग्राफी से जोड़ने का श्रेय बड़ी बहन नेहा को जाता है। उन्हाेंने 2010 में एक कैमरा भेंट किया। उसे लेकर बहुत सी तस्वीरें खींची। भाई हर्ष जो डिजाइनिंग की दुनिया में खोए रहते हैं, उन्होंने भी इस विधा में बढ़ने के लिए ऊर्जा दी। उनके साथ शहर के ढेरों छायाकारों का साथ मिला तो शौक का रंच चटख होता चला गया। शहर में हुए बज्मे विरासत में उनके खीचे फोटो की प्रदर्शनी लग चुकी है। कैंटोनमेंट की पत्रिका में भी इनकी खींची तस्वीरों को स्थान मिला है।

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