प्रयागराज में आस्था पर अव्यवस्था हावी, 'त्रेता की स्मृतियों' पर उपेक्षा की परत, दम तोड़ता शृंगवेरपुर धाम का सीताकुंड घाट
प्रयागराज के शृंगवेरपुर धाम स्थित सीताकुंड घाट उपेक्षा का शिकार है। माना जाता है कि वनवास के समय प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण ने यहाँ गंगा पार की थी। देखरेख के अभाव में घाट जर्जर हो गया है, रास्ते अवरुद्ध हैं और मंदिर वीरान हो गए हैं। पर्यटन विभाग ने साइन बोर्ड लगाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है, लेकिन घाट की दुर्दशा जस की तस है।

प्रयागराज में शृंगवेरपुर का सीताकुंड घाट उपेक्षा का शिकार है, यहां त्रेता युग में श्रीराम और निषादराज का मिलन हुआ था।
संसू, जागरण, शृंगवेरपुर (प्रयागराज। शृंगवेरपुर के उस पवित्र तट पर, जहां कभी प्रभु श्रीराम, माता सीता और अनुज लक्ष्मण ने गंगा पार की थी, आज सन्नाटा पसरा है। जिस धरती की रेत में आस्था की सुगंध थी, वहां अब गंगा की लहरें भी उदासी गुनगुना रही हैं। माता सीता द्वारा उठाई गई मुट्ठीभर मिट्टी से जन्मा सीताकुंड घाट अब इतिहास की लकीरों में खोने को है।
जर्जर साइन बोर्ड और चारों ओर झाड़-झंखाड़
यहां न श्रद्धालुओं के कदमों की आहट, न सरकारी नजर। बस एक जर्जर साइन बोर्ड और चारों ओर झाड़-झंखाड़। कभी आराधना का केंद्र रहा यह स्थल अब अंधविश्वास और लापरवाही का शिकार बन चुका है। यहां मंदिरों की घंटियां खामोश हैं और घाट की पवित्रता मुर्दों की कब्रों में दफन होती जा रही है।
कैसे पड़ा सीताकुंड घाट का नाम?
केवट ने प्रभु श्रीराम, माता सीता और अनुज लक्ष्मण को नौका से गंगा पार कराने के दौरान माता सीता ने इसी घाट से एक मुट्ठी मिट्टी उठाई थी। इससे इस घाट का नाम सीताकुंड पड़ा। कहते हैं, इस एक मुट्ठी मिट्टी से प्रभु श्रीराम ने पार्थिव शिवलिंग का पूजन भी शृंगवेरपुर धाम में किया है। इस घाट पर सरकारी नजर नहीं है।
सीताकुंड तक पहुंचने को रास्ता नहीं
अव्यवस्थित घाट पर महज एक हरे रंग का सीता कुंड घाट के नाम का साइन बोर्ड लगा है। सीताकुंड घाट पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं है, घाट पर स्थित मां जानकी और हनुमान जी की मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को कांटेदार झाड़ियों और बाजरा के घने खेत की पगडंडियों से गुजरा पड़ता है। सरकारी उपेक्षा, गंगा के कटान से सीताकुंड घाट सिमट गया है। एकांत में स्थित सीताकुंड घाट में विगत कई वर्षों से लगातार शव दफनाए जा रहे हैं। झाड़ फूंक और ओझाई का अड्डा बन गया है।
भैरव घाट मंदिर में स्थापित है मां जानकी की प्रतिमा
आचार्य कृष्णमूर्ति त्रिपाठी बताते हैं कि सीताकुंड घाट की खराब होती स्थिति देख करीब 20 वर्ष पूर्व तत्कालीन पुजारी ने सीता कुंड घाट पर स्थित मंदिर में रखी मां जानकी की मूर्ति को भैरव घाट के मंदिर में स्थापित कर दिया। जहां आज भी भैरव घाट में उनकी पूजा अर्चना की जा रही है।
पुजारी बोले- सीता कुंड में हनुमान जी ने की थी पूजा
भैरव घाट मंदिर के पुजारी ने बताया कि सीता कुंड से मां जानकी की मूर्ति भैरव घाट में वर्षों पहले लाकर स्थापित की गई है। सीता कुंड में स्थित हनुमान जी की मंदिर में मैं स्वयं जाकर पूजन अर्चन और भोग लगाता हूं।
नौका से गंगापार करने के आज भी दो ही घाट हैं
जिस रास्ते से केवट ने प्रभु श्रीराम, माता सीता और अनुज लक्ष्मण को नौका से गंगा पार कराया था। आज भी यात्री इसी सीता कुंड से कुरई घाट नाव से आते जाते हैं। जबकि दूसरा रास्ता शृंगवेरपुर के गऊघाट से पश्चिम दिशा में स्थित प्रतापगढ़ जनपद के गौरी शंकर घाट से बदनपुर घाट को यात्री प्रयोग कर रहे हैं।
क्या कहती हैं क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी?
क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी अपराजिता सिंह का कहना है कि घाटों की सफाई की जिम्मेदारी नगर पंचायत की है। पर्यटन विभाग ने जिन घाटों को बनाया है अगर उसमें किसी प्रकार की खामी आयी है तो कार्यदायी संस्था से जवाब तलब किया जाएगा। साथ ही गड़बड़ी ठीक कराई जाएगी।

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