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    एससी/एसटी एक्ट का मुकदमा दर्ज कराने वाले को पांच वर्ष की सजा, कोर्ट ने कहा- कठोर दंड नहीं दिया गया तो…

    Updated: Tue, 09 Dec 2025 11:54 AM (IST)

    प्रयागराज की एक अदालत ने एससी/एसटी एक्ट के तहत झूठा मुकदमा दर्ज कराने वाले व्यक्ति को पांच साल की सजा सुनाई है। कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसे मामलों में कठो ...और पढ़ें

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    विधि संवाददाता, लखनऊ। जमीन से जुड़े विवाद में एससी/एसटी एक्ट का फर्जी मुकदमा लिखवाने के मामले में दोषी करार दिए गए विकास कुमार को एससी/एसटी एक्ट के विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने पांच वर्ष के कारावास की सजा सुनाई है।

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    साथ ही दोषी पर दस हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए निर्देश दिया है कि इस मामले में यदि दोषी को कोई राहत धनराशि दी गई हो तो वापस ली जाए।

    न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि वादी मुकदमे का सबसे महत्वपूर्ण साक्षी होता है और उसे न्यायालय के समक्ष सत्य बयान देना चाहिए। यदि फर्जी मुकदमे दर्ज कराने वालों पर कठोर दंड नहीं दिया जाएगा तो कानून का दुरुपयोग बढ़ेगा।

    सरकारी वकील अरविंद मिश्रा ने बताया कि विकास कुमार ने 29 जून 2019 को थाना पीजीआइ में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि उसकी जमीन पर कब्जा करने की नीयत से ओम शंकर यादव, अरुण कुमार, नीतू यादव और अखिलेश पाल मौके पर आए और जातिसूचक गालियां देते हुए उसे जमीन से भगा दिया तथा जान से मारने की धमकी दी।

    मामले की विवेचना के दौरान पुलिस को आरोपियों की घटना स्थल पर मौजूदगी के कोई प्रमाण नहीं मिले। स्वतंत्र गवाहों ने भी ऐसी किसी घटना से साफ इनकार किया।

    जांच में यह भी सामने आया कि विकास कुमार के परिवार की जमीन पर बैंक से कर्ज लिया गया था। कर्ज न चुकाने की स्थिति में बैंक ने उस जमीन की नीलामी कर दी थी। नीलामी में ओम शंकर यादव के भांजे कमलेश ने जमीन खरीदी थी। इसी जमीन विवाद के चलते बाद में कमलेश की हत्या हो गई थी, जिसका मामला न्यायालय में विचाराधीन है।  उस मुकदमे में ओम शंकर यादव पैरवी कर रहा था।

    अभियोजन पक्ष के अनुसार, उसी पैरवी से रोकने और दबाव बनाने के उद्देश्य से दोषी ने एससी/एसटी एक्ट के तहत झूठा मुकदमा दर्ज कराया। घटना के असत्य पाए जाने पर विवेचना अधिकारी ने 26 दिसंबर 2019 को न्यायालय में अंतिम रिपोर्ट दाखिल की थी। सभी साक्ष्यों और बयानों के आधार पर अदालत ने विकास कुमार को दोषी करार दिया।