वंदे मातरम् पर मौलाना अरशद मदनी का बड़ा बयान, कहा-मर जाना मंजूर है... पर मजबूर नहीं होंगे
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से आई खबर के अनुसार, मौलाना अरशद मदनी ने वंदे मातरम् को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि उन्हें मर जाना स्वीकार है पर व ...और पढ़ें

जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी। जागरण आर्काइव
संवाद सहयोगी जागरण, देवबंद (सहारनपुर)। इस्लामी तालीम के प्रमुख केंद्र दारुल उलूम, देवबंद के शूरा सदस्य एवं जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि वंदे मातरम् पढ़ने के लिए हमें मजबूर नहीं किया जा सकता। इस गीत के कुछ श्लोक हमारी धार्मिक मान्यताओं के वितरीत हैं। हमें मर जाना स्वीकार है, लेकिन शिर्क स्वीकार नहीं।
वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर सदन से लेकर आमजन तक वंदे मातरम् को लेकर छिड़ी बहस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि देश का संविधान प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। उन्होंने कहा कि मुसलमानों को वंदे मातरम् पढ़ने या गाने पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इसके कुछ श्लोक ऐसे हैं, जिन्हें इस्लामी आस्था स्वीकार नहीं कर सकती। वंदे मातरम् के अनुवाद में देश को देवी स्वरूप मानने, दुर्गा माता से तुलना करने और पूजा जैसे शब्दों का प्रयोग मिलता है, जबकि ‘मां, मैं तेरी पूजा करता हूं’ जैसे भाव मिलते हैं, जो मुसलमानों की धार्मिक मान्यता के विरुद्ध हैं।
उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि देश से प्यार करना और देश की पूजा करना दोनों अलग बातें हैं। कहा कि मुसलमान अपने देश से पूरी मोहब्बत रखते हैं। स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान इसकी मिसाल है, इसलिए देशभक्ति पर किसी तरह के प्रमाण की अपेक्षा करना अनुचित है। मौलाना ने कहा कि अनुच्छेद 25 हर नागरिक को अपनी धार्मिक मान्यता के अनुसार आस्था और उपासना का अधिकार सुनिश्चित करता है, जबकि अनुच्छेद 19 विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है। ऐसे में किसी भी व्यक्ति या समूह द्वारा किसी नागरिक को उसकी धार्मिक मान्यता के विपरीत कोई नारा लगाने या गीत गाने के लिए मजबूर करना संविधान की भावना के खिलाफ है। इसलिए वंदे मातरम् को लेकर भी हर किसी को अपनी धार्मिक मान्यता के अनुसार निर्णय लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।

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