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    Sambhal News: ब्रिटेन की तरह भारत में फिर बने अल्‍पसंख्‍यक पीएम, सपा सांसद डा. बर्क ने शशि थरूर का किया समर्थन

    By Jagran NewsEdited By: Vivek Bajpai
    Updated: Wed, 26 Oct 2022 06:44 PM (IST)

    जागरण से बातचीत में लोकसभा सदस्‍य डा. शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा कि ब्रिटेन में अच्छा काम हुआ है। भारत में तो लोकतंत्र है। डेमोक्रेसी के अंदर तो इससे ज्यादा आजादी है। हर आदमी को उसका हक दिया गया है। हर मजहब के इंसान आगे बढ़ सकते हैं।

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    संभल से समाजवादी पार्टी के सांसद डा.शफीकुर्रहमान बर्क। जागरण आर्काइव

    संभल, जागरण संवाददाता। संभल से समाजवादी पार्टी के सांसद डा. शफीकुर्रहमान बर्क ने देश में फिर से अल्‍पसंख्‍यक प्रधानमंत्री बनाए जाने की मांग उठाई है। उन्‍होंने कहा कि ब्रिटेन ने अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले ऋषि सुनक को वहां का प्रधानमंत्री बनाया है, यह बेहद खुशी की बात है। ठीक उसी तरह भारत में भी एकबार फिर अल्पसंख्यक समुदाय के व्‍यक्ति को यह मौका मिला चाहिए। उन्होंने कांग्रेस नेता शशि थरूर के उस ट्वीट का समर्थन भी किया जिसमें उन्‍होंने देश में अल्‍पसंख्‍य प्रधानमंत्री बनाए जाने की मांग की थी। 

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    किसी पढ़े-लिखे अल्‍पसंख्‍यक व्‍यक्ति को बनाया जाए पीएम

    जागरण से बातचीत में लोकसभा सदस्‍य डा. शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा कि ब्रिटेन में अच्छा काम हुआ है। भारत में तो लोकतंत्र है। डेमोक्रेसी के अंदर तो इससे ज्यादा आजादी है। हर आदमी को उसका हक दिया गया है। हर कौम, हर बिरादरी, हर मजहब के इंसान आगे बढ़ सकते हैं। अपनी जगह ले सकते हैं। हमारी ख्वाहिश है कि भारत के अंदर फिर से अल्पसंख्यक पीएम बने। किसी काबिल, पढ़े-लिखे अल्‍पसंख्‍यक व्‍यक्ति को देश का प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए। बता दें कि इससे पहले अल्‍पसंख्‍यक समुदाय से आने वाले डा. मनमोहन सिंह 10 साल तक देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं।

    दारुल उलूम देवबंद को मान्‍यता की जरूरत नहीं

    मदरसों के हुए सर्वे में दारुल उलूम देवबंद गैर मान्यता प्राप्त होने पर कहा कि देवबंद से तो बहुत मदरसे जुड़े हुए हैं जो उन्होंने कायम किए हैं। बहरहाल दारुल उलूम देवबंद एक बुनियादी मदरसा है। जब इतनी पाबंदियां भी नहीं थी तब से वह कायम है। इस पर कोई कमी पहले भी दिखाई देती होती तो पहले भी यह सवाल उठना चाहिए था। आप उसके अंदर यह कमी महसूस कर रहे हैं कि वह गैर मान्यता प्राप्त है। अगर किसी के अंदर कमी है तो वह भी पूरी की जा सकती है। मैं समझता हूं कि दारुल उलूम देवबंद को मान्यता प्राप्त करने की जरूरत नहीं है जो इतने जमाने से चल रहा है। उसे खुद-ब-खुद वह हैसियत हासिल है, जो मान्यता प्राप्त को हासिल है।