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    सचिव भर्ती की जटिल प्रक्रिया बढ़ा रही किसानों की मुश्किलें, उधार से चल रहा काम

    Updated: Sat, 22 Nov 2025 01:32 PM (IST)

    किसानों के लिए सचिवों की भर्ती प्रक्रिया में कई बाधाएं आ रही हैं, जिससे किसानों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। विभाग का कहना है कि नियमों और प्रक्रियाओं के चलते नई नियुक्तियां रुकी हुई हैं, जिससे काम प्रभावित हो रहा है। स्थिति को सुधारने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं ताकि किसानों को परेशानी न हो।

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    जागरण संवाददाता, सिद्धार्थनगर। साधन सहकारी समितियों में सचिवों की कमी अब गहरी समस्या बन चुकी है। इसका मूल कारण है उनकी भर्ती से जुड़ी जटिल और जोखिमभरी प्रक्रिया। नियम के अनुसार किसी भी व्यक्ति को सचिव बनने से पहले कम से कम पांच वर्ष तक विभाग का कर्मचारी होना अनिवार्य है। इसके बाद समिति के नौ सदस्यों अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सात सदस्यों का अनुमोदन आवश्यक है।

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    वेतन के बजाय कमीशन आधारित व्यवस्था होने के कारण भी इच्छुक लोग पीछे हट जाते हैं। जिले में इस समय 124 समितियों में से 119 संचालित हैं, लेकिन 43 समितियों पर सचिव तैनात ही नहीं हैं। जहां सचिव नहीं हैं, वहां पड़ोसी समिति के सचिव अस्थायी रूप से काम देखते हैं, जिससे एक स्थल पर उपस्थित रहने के कारण अन्य समितियां बंद रहती हैं। इसका सीधा असर किसानों पर पड़ रहा है, जिन्हें खाद–बीज के लिए घंटों भटकना पड़ता है।

    रबी सीजन होने के कारण किसानों की परेशानी और बढ़ गई है। खेत तैयार हैं, सिंचाई हो चुकी है, लेकिन खाद–बीज की उपलब्धता में सचिवों की कमी बड़ी बाधा बनी हुई है। कई गांवों में स्थिति यह हो गई है कि बंद पड़ी समितियों के परिसर में लोग कपड़े सुखाने लगे हैं।

    नियमानुसार एक न्याय पंचायत पर एक समिति होनी चाहिए, लेकिन जिले में कई समितियां दो से तीन न्याय पंचायतों का बोझ ढो रही हैं। 76 सचिवों पर 119 समितियों का प्रभार है और 30 से अधिक सचिव ऐसे हैं, जिनके पास दो से तीन समितियों का काम है।

    ऐसे होती है समिति सदस्य की तैनाती
    किसी भी समिति में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सात सदस्य होते हैं। सचिव की नियुक्ति तभी संभव है जब सभी नौ सदस्य अनुमोदन दें। सचिव को वेतन नहीं मिलता, बल्कि आवश्यक वस्तुओं की बिक्री पर कमीशन मिलता है। एक ट्रक यूरिया बेचने पर सचिव को लगभग साढ़े चार हजार रुपये का कमीशन मिलता है। एक सीजन में अधिकतम 10–12 ट्रक यूरिया की बिक्री संभव है।

    यानी सचिव केवल 45–50 हजार रुपये तक की आय अर्जित कर पाता है। इसमें से उसे लेखा परीक्षण, बैलेंस शीट तैयार कराने, आना–जाना और अन्य खर्च भी वहन करने पड़ते हैं। गलती होने पर सचिव के साथ पूरा समिति सदस्य मंडल उत्तरदायी माना जाता है। ऐसी स्थिति में सदस्य हस्ताक्षर करने से डरते हैं और सचिव नियुक्त करने से मुकर जाते हैं।

    नियम यह भी है कि सचिव बनने हेतु व्यक्ति का पहले पांच वर्ष विभागीय सेवा में होना अनिवार्य है। उसके बाद ही उसे विक्रेता बनाकर सचिव का कार्यभार दिया जाता है। इस लंबी प्रक्रिया के कारण समितियां वर्षों तक बिना सचिव चलती रहती हैं।

    सहारनपुर की घटना से और बढ़ा डर
    वर्ष भर पहले सहारनपुर जिले में एआर सहकारिता और संबंधित अधिकारियों ने कुछ सचिवों की नियुक्ति करवाई थी। बाद में निरीक्षण में कई कमियां मिलीं और एआर सहकारिता सहित कुल सात व्यक्तियों को निलंबित कर दिया गया। इस घटना के बाद विभाग में सचिवों की नियुक्ति को लेकर भय और बढ़ गया है। जबकि मुख्यमंत्री स्वयं मंडलायुक्त को निर्देश दे चुके हैं कि एक सचिव एक समिति पर तैनात किया जाए। इसके बावजूद सचिवों की नियुक्ति आगे नहीं बढ़ पा रही है।

    नंबर गेम

    • 124 कुल समितियां
    • 119 संचालित
    • 4 बंद
    • 1 अक्रियाशील
    • 76 कार्यरत सचिव
    • 119 समितियों का प्रभार इन्हीं 76 सचिवों पर

    सचिव की तैनाती को लेकर तमाम जटिलताएं हैं। इस संबंध में अभी कोई स्पष्ट आदेश भी नहीं आया है। विभाग की कोशिश रहती है कि किसानों को परेशानी न हो, लेकिन नियमों और प्रक्रियाओं के कारण नई नियुक्तियां रुकी हुई हैं। उन्होंने कहा कि स्थिति सुधारने के लिए लगातार प्रयास जारी हैं।

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    -चंद्रजीत यादव, सहायक आयुक्त एवं सहायक निबंधक सहकारिता