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    छठ पर्व 2025 : प्रकृति, कर्तव्य और आस्था का अद्भुत संगम

    By Abhishek sharmaEdited By: Abhishek sharma
    Updated: Mon, 27 Oct 2025 12:57 PM (IST)

    छठ पर्व भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो प्रकृति, श्रम और कर्तव्य के प्रति सम्मान को दर्शाता है। यह पर्व सूर्य की उपासना के साथ-साथ सामाजिक समरसता और पारिवारिक एकता का भी प्रतीक है। छठ में लोग नदी घाटों पर एकत्र होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं और प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। यह पर्व हमें जीवन में त्याग, अनुशासन और सहयोग का महत्व सिखाता है।

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    जागरण संवाददाता, वाराणसी। भारतीय संस्कृति की विशेषता यह है कि यहाँ प्रत्येक पर्व आज भी केवल उत्सव नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन का वाहक है। हमारे पर्व हमें यह स्मरण कराते हैं कि जीवन मात्र सांसारिक उपभोग का नाम नहीं, अपितु आत्मानुशासन, प्रकृति-समन्वय, कर्तव्य-निष्ठा और सामाजिक सहअस्तित्व का भी अपरिहार्य मार्ग है।

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    इसी मूल भावना के साथ मनाया जाने वाला छठ पर्व भारतीय लोक-आस्था का ऐसा विराट उत्सव है, जिसमें लोक की ऊर्जा, श्रम की गरिमा, मातृ-शक्ति का गौरव, जल-धरा-आकाश का पवित्र तादात्म्य और सूर्य-उपासना की प्राचीनतम परम्परा एक साथ साकार होती है।

    छठ पर्व का उद्गम अत्यन्त प्राचीन है। वेदों में उल्लिखित सूर्योपासना की परम्परा से इसका संबंध माना जाता है। ऋग्वेद में सूर्य को “प्राणों का प्रदाता, जीवन का आधार और सात्विक ऊर्जा का स्रोत” कहा गया है।

    भारतीय ज्ञान-परम्परा में सूर्य ज्ञान, तप, तेज, श्रम, अनुशासन और सत्यनिष्ठा का प्रतीक है। छठ में हम सूर्य के इसी जीवनदायी स्वरूप की आराधना करते हैं—क्योंकि सूर्य सार्वभौमिक है। न वह किसी जाति का है, न किसी सम्प्रदाय का; वह सभी के लिए समान है। इसी से छठ अहंकार के पूर्णतःत्याग, समता और समरसता का पर्व भी है।

    लोक-जीवन में छठ का दार्शनिक अर्थ

    छठ का सार यह है कि मनुष्य अपने और प्रकृति के मध्य सामंजस्य स्थापित करे। आज जब आधुनिकता की अंधी दौड़ में मनुष्य प्रकृति से दूर हो गया है, तब छठ हमें यह स्मरण कराता है कि प्रकृति हमारी माता है, और हम उसके पुत्र।

    हमारी संस्कृति में नदी केवल जल-धारा नहीं, बल्कि धारिणी शक्ति है; मिट्टी केवल भूमि नहीं, बल्कि अन्नदायिनी मातृभूमि है; सूर्य केवल तारा नहीं, बल्कि जीवन का स्रष्टा है। छठ का अनुष्ठान इसी आदर-बोध की पुनःस्थापना है।

    नारी शक्ति और तप की महिमा

    छठ व्रत मुख्यतः मातायें और बहनें करती हैं। यह व्रत केवल धार्मिक नहीं, बल्कि शारीरिक अनुशासन और मानसिक धैर्य  का अद्वितीय उदाहरण है। चार दिनों तक व्रती तप, संयम, एकाग्रता और सेवा-भाव से पूर्ण नियमों का पालन करती हैं।
    • नहाय-खाय – शरीर और आहार की पवित्रता।
    • खरना – आत्म-शुद्धि और आंतरिक शांतिसाधना।
    • निर्जल उपवास – संकल्प और आत्म-अनुशासन का चरम।
    • अर्घ्य – सूर्य की आराधना, कृतज्ञता और प्रकृति का वंदन।

    यह संकल्प व्रत हमें सिखाता है कि जीवन में प्राप्ति केवल इच्छाओं से नहीं, बल्कि त्याग, श्रम और अनुशासन से होती है।

    सामूहिक एकता और सामाजिक समरसता

    छठ पर्व में समाज का कोई भी वर्ग, जाति, पद या सम्पत्ति भेद दिखाई नहीं देता। सारे लोग एक समान भावना से नदी-घाट पर एकत्र होते हैं। लोग एक-दूसरे की सेवा करते हैं, घाट बनाते हैं, स्वच्छता का ध्यान रखते हैं, प्रसाद बाँटते हैं—बिना किसी स्वार्थ, बिना किसी भेद के। यह दृश्य अपने आप में भारतीय सामाजिक एकता का जीवन्त दर्शन है।

    प्रकृति-चेतना और पर्यावरण संरक्षण का सन्देश

    छठ पर्व जितना धार्मिक है, उतना ही वैज्ञानिक और पर्यावरणीय भी।
    इस पर्व में प्रयुक्त प्रसाद—गन्ना, केला, फल, गुड़, चावल, गेहूँ, और मिट्टी के दीपक—सबकुछ स्थानीय, स्वदेशी और जैविक होता है।
    यह पर्व हमें प्रकृति के साथ संतुलन, स्वच्छता, स्वास्थ्य और टिकाऊ जीवनशैली अपनाने की प्रेरणा देता है। आज के समय में, जब पर्यावरण-संकट वैश्विक विषय बन चुका है, छठ का यह सन्देश और भी महत्वपूर्ण है:

    प्रकृति का सम्मान करेंगे, तभी प्रकृति हमें जीवन देगी।

    छठ : कर्तव्य-बोध और पारिवारिक मर्यादा का उत्सव

    छठ पर्व हमें यह भी सिखाता है कि

    परिवार केवल रक्त सम्बन्ध नहीं, बल्कि भावनात्मक दायित्व का नाम है।

    व्रती अपनी सन्तान, परिवार और समाज के कल्याण की कामना करती हैं—
    परन्तु यह केवल माँ की जिम्मेदारी नहीं है
    परिवार के प्रत्येक सदस्य की भूमिका समान होती है।

    पुरुष, बच्चे, युवा सभी मिलकर प्रसाद बनाते, घर सजाते, घाट तैयार करते हैं। यह सामूहिक श्रम हमें यह शिक्षा देता है कि- 

    घर और समाज तभी सुंदर बनता है जब सब मिलकर जिम्मेदार बनें।


    आधुनिक युग में छठ का सन्देश

    आज मनुष्य सुविधाओं के बीच घिरकर भी मानसिक शांति खोता जा रहा है।
    बच्चों में धैर्य कम हो रहा है, परिवारों में संवाद कम हो रहा है, समाज में सामूहिकता क्षीण हो रही है।

    ऐसे समय में छठ हमें यह पुकार कर कहता है:
    • जीवन में नियम आवश्यक है
    • संबंधों में त्याग आवश्यक है
    • समाज में सहयोग आवश्यक है
    • प्रकृति के प्रति आदर आवश्यक है
    • मन में कृतज्ञता आवश्यक है

    इन सबके बिना जीवन अधूरा है।

    निष्कर्षतः
    छठ पर्व केवल सूर्य की उपासना नहीं—
    यह जीवन के सूर्य को जागृत करने का पर्व है।
    यह हमें बाहर की रोशनी ही नहीं, भीतर की ज्योति को भी प्रज्वलित करना सिखाता है।

    आइये , इस छठ पर हम प्रण लें—
    कि हम प्रकृति का आदर करेंगे,
    श्रम की गरिमा को पहचानेंगे,
    परिवार और समाज के प्रति कर्तव्य निभाएँगे,
    राष्ट्र निर्माण में संकल्पित भाव से काम करेंगे ,
    और सूर्य की तरह शान्त, प्रकाशमान, समरस, सर्वहितकारी एवं सर्वसमावेशी-भाव ,श्रमशील, अनुशासित और कर्तव्यनिष्ठ बने रहेंगे।

    छठी मैया और भगवान भास्कर से यही प्रार्थना
    सभी के जीवन में सुख, स्वास्थ्य, समृद्धि और उज्ज्वलता की अखण्ड धारा बहती रहे।

       लेखक- प्रो॰ बिहारी लाल शर्मा