आइसार्क में धान-आधारित प्रणालियों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित
वाराणसी के आइसार्क में 17 से 21 नवम्बर 2025 तक धान प्रणाली में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य धान की खेती से होने वाले मीथेन उत्सर्जन को मापना और कम करना है।

यह कार्यक्रम इरी के अनुसंधान एवं नवाचारों पर आधारित है।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। अंतरराष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान (इरी) के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइसार्क), वाराणसी में 17 से 21 नवम्बर 2025 तक “धान प्रणाली में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: प्रक्रियाएं और मापन मानक” विषय पर एक पांच दिवसीय विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। यह कार्यक्रम इरी के अनुसंधान एवं नवाचारों पर आधारित है।
दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में धान की खेती मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का प्रमुख स्रोत है, जो इन क्षेत्रों में कुल राष्ट्रीय मीथेन उत्सर्जन में 50% से अधिक योगदान करता है। जलवायु लक्ष्यों की दिशा में प्रगति के लिए इन उत्सर्जनों का सटीक मापन अत्यंत आवश्यक है।
इस पांच दिवसीय प्रशिक्षण का उद्देश्य प्रतिभागियों को धान प्रणाली में ग्रीनहाउस गैस निगरानी की तकनीकों और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के शमन के अवसरों की समझ प्रदान करना है। प्रतिभागी खेतों में गैस सैंपल लेने से लेकर प्रयोगशाला विश्लेषण और उत्सर्जन गणना तक की प्रक्रियाएं चरणबद्ध रूप से सीखेंगे।
प्रशिक्षण के प्रमुख उद्देश्य:
- कृषि में जलवायु परिवर्तन और धान में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की चुनौतियों को समझना
- IPCC के दिशानिर्देशों और देश-विशिष्ट उत्सर्जन कारकों पर आधारित ग्रीनहाउस गैस इन्वेंटरी की जानकारी
- ग्रीनहाउस गैस के नमूने एकत्रित करना, आंकड़ों के विश्लेषण, प्रस्तुति और रिपोर्टिंग में व्यावहारिक दक्षता प्राप्त करना
प्रमुख प्रशिक्षण विषयवस्तु
- कृषि में जलवायु परिवर्तन और धान उत्पादन पर उसका प्रभाव
- धान प्रणाली में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के तंत्र
- शमन उपाय जैसे अल्टरनेट वेटिंग एंड ड्राईंग तकनीक और अन्य जलवायु अनुकूल पहल
- ग्रीनहाउस गैस मापन तकनीकें
- फील्ड सेटअप और सैंपलिंग प्रक्रिया
- प्रयोगशाला और स्थल पर गैस विश्लेषण
- डेटा मूल्यांकन और उत्सर्जन गणना
- देश-विशिष्ट केस स्टडी और व्यावहारिक अभ्यास
- पाठ्यक्रम सर्वेक्षण और प्रतिभागी प्रतिक्रिया
इस प्रशिक्षण की 17 नवम्बर को उद्घाटन समारोह के साथ शुरुआत हुई, जिसमें इरी एजुकेशन की प्रमुख डॉ. एनिलिन डी. मैनिंगस ने स्वागत भाषण के साथ प्रशिक्षुओं को संबोधित किया। आइसार्क की ओर से मृदा वैज्ञानिक डॉ. एंथनी फुलफोर्ड ने प्रतिभागियों और विशिष्ट अतिथियों का अभिवादन किया। इरी के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं पर्यावरण तथा जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ डॉ. एंडो राडानिएलसन ने पाठ्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की।
आइसार्क के निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह ने कहा कि “दक्षिण एशिया को धान आधारित प्रणालियों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने और उत्पादकता बनाए रखने के लिए प्रमाण-आधारित दृष्टिकोणों के साथ नेतृत्व करना होगा। इस दिशा में यह प्रशिक्षण कार्यक्रम आइसार्क की एक समयानुकूल और प्रभावशाली पहल है।
प्रशिक्षण के उद्घाटन में इरी के अनुसंधान निदेशक डॉ. वीरेंद्र कुमार ने कहा कि यह प्रशिक्षण एक ऐसे सहयोगी समुदाय की नींव रखेगा, जिसमें वैज्ञानिकों, प्रायोगिक विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और नीति-निर्माताओं की भागीदारी से धान-आधारित प्रणालियों के जरिए जलवायु कार्रवाई को व्यावहारिक रूप से तेज़ किया जा सके।
भा.कृ.अनु.प. – केंद्रीय धान अनुसंधान संस्थान के फसल उत्पादन प्रभाग के प्रमुख डॉ. प्रताप भट्टाचार्य ने अपने संबोधन में उल्लेख किया कि “ग्रीनहाउस गैस निगरानी में वैज्ञानिक सटीकता न केवल भारत के लिए, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी, सूचित कृषि नीतियों और व्यावहारिक शमन उपायों को आकार देने में अहम भूमिका निभाएगी।
प्रशिक्षण में देशभर के विभिन्न सार्वजनिक एवं निजी संस्थानों व गैर-सरकारी संगठनों से प्रतिभागी शामिल हुए हैं—जैसे भारतीय समेकित धान अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद, केरल कृषि विश्वविद्यालय, चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय जैसे राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा प्रणाली (नारेस) के सहयोगी संस्थान; साथ ही रेलिस इंडिया लिमिटेड, इको अग्रिप्रेन्योर्स प्राइवेट लिमिटेड, द नेचर कंजरवेंसी, और रेस्टोरअर्थ सॉल्यूशंस।

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