Chandra Grahan 2025 : साल का अंतिम चंद्रगहण, पितृपक्ष पर नहीं होगा सूतक का प्रभाव
इस वर्ष का अंतिम खग्रास चंद्रग्रहण भाद्रपद पूर्णिमा रविवार की रात में लगेगा। उसी दिन पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के विधान आरंभ होंगे। रविवार को पूर्णिमा का श्राद्ध किया जाएगा जिसमें मातृकुल के पितरों का तर्पण किया जाएगा। काशी के विद्वानों के अनुसार श्राद्ध कर्म पर चंद्रग्रहण के सूतक का प्रभाव नहीं होता।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। इस बार श्राद्ध के साथ ही चंंद्रग्रहण का भी योग पड़ रहा है। मातृकुल के पितरों अर्थात नाना-नानी आदि को तर्पण संग पूर्णिमा का श्राद्ध सात सितंबर से शुरू हो रहा है। दोपहर 12:57 बजे से सूतक आरंभ होगा और ग्रहण स्पर्श रात 9:57 बजे और मोक्ष 1:27 बजे होगा।
इस वर्ष का अंतिम व सबसे लंबा खग्रास चंद्रग्रहण भाद्रपद पूर्णिमा रविवार की रात में लगेगा। पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने, उनकी पूजा-आराधना और तर्पण-अर्पण के विधान भी उसी दिन से आरंभ होंगे। रविवार को पूर्णिमा का श्राद्ध किया जाएगा।
यह भी पढ़ें : Chandra Grahan 2025 : चंद्रग्रहण की वजह से शाम की गंगा आरती दोपहर में, काशी में सूतक के दौरान बदल जाएगा धार्मिक आयोजन का समय
इसी दिन मातृकुल के पितरों नाना-नानी आदि का तर्पण किए जाने का विधान है। पूर्णिमा के दिन ही श्राद्ध और खग्रास चंद्रग्रहण के सूतक को लेकर लोगों के मन में उहापोह है किंतु काशी के विद्वान पंडितों का कहना है कि श्राद्ध कर्म पर चंद्रग्रहण के सूतक का प्रभाव होता ही नहीं।
श्रीकाशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री, बीएचयू ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय कहते हैं कि चंद्रग्रहण या उसके सूतक का प्रभाव पितृ पक्ष अथवा श्राद्ध कर्म पर नहीं होता। विभागाध्यक्ष प्रो. सुभाष पांडेय ने भी कहा कि सूतक अथवा ग्रहण काल में श्राद्ध कर्म का कहीं भी निषेध नहीं किया गया है।
यह भी पढ़ें : श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारियों का अब तीन गुना तक हो जाएगा वेतन, मिलेगा राज्यकर्मी का दर्जा
वैसे तो इस बार सूतक दोपहर 12:57 बजे से लग रहा है और श्राद्ध कर्म पूर्वाह्न में ही कर लिया जाता हैे लेकिन यदि कभी ग्रहण या सूतक पूर्वाह्नव्यापिनी हो तो भी श्राद्ध कर्म पर इसका कोई प्रभाव नहीं होता। प्रो. पांडेय ने बताया कि चंद्रगहण का स्पर्श रात 9:57 बजे से होगा और मोक्ष 1:27 बजे होगा। ग्रहण का मध्यकाल 11:49 बजे होगा।
प्रो. सुभाष पांडेय ने बताया कि ग्रहण काल में भोजन नहीं करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार सूतक के पूर्व ही भोजनादि कर लेना चाहिए। इसके पश्चात ग्रहण मोक्ष के उपरांत ही कुछ भोज्य पदार्थ ग्रहण कर सकते हैं। ग्रहण काल में बनाया गया भोजन भी दूषित माना जाता है। इसलिए भोजन या तो सूतक के पूर्व बना कर रख लें या फिर मोक्ष के उपरांत बनाएं। बालक, वृद्ध, रोगी व आतुर के लिए सूतक या भोजन निषेध नहीं लागू होता।
यह भी पढ़ें : बिहार के चुनाव में बनारसी अचार के नाम पर दारू का शुरूर, अचार के डिब्बे से बिहार में खपाई जा रही अंग्रेजी शराब
सूतक के पूर्व खाद्य पदार्थ में तुलसी दल या कुश डाल दें
प्रो. पांडेय ने बताया कि ग्रहण काल में घी या दूध से बने भोज्य पदार्थों में तुलसी दल या कुश डाल कर रख दें, इससे उस भोज्य पदार्थ पर ग्रहण का प्रभाव नहीं होता।
ग्रहण काल में यज्ञ-जप, देव विग्रह स्पर्श वर्जित
प्रो. पांडेय ने बताया कि ग्रहण काल में देव विग्रहों का स्पर्श नहीं करना चाहिए। सूतक आरंभ होने के पूर्व ही मंदिर या घरों के पूजा स्थल मेें पूजा-अर्चन कर वहां का पट बंद कर दें या पर्दा डाल दें। सूतक काल से लेकर ग्रहण के मोक्ष होने तक भगवतनाम संकीर्तन या गुरु द्वारा दिए गए मंत्र का जाप, यज्ञादि कर्म कर सकते हैं। जिन्होंने गुरुदीक्षा नहीं ली है, वे केवल ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का भी जाप कर सकते हैं। ग्रहण मोक्ष के उपरांत स्नानादि से शुद्ध होकर देवालयों या घर के पूजागृहों की साफ-सफाई कर देव विग्रहों को स्नान कर उनके वस्त्र, पर्दे आदि बदल दें, तत्पश्चात पूजन-अर्चन और दान-पुण्य करें।
गर्भवती स्त्रियां सोएं नहीं
प्रो. पांडेय ने बताया कि ग्रहण काल में सूतक लग जाने के उपरांत गर्भवती स्त्रियों को शयन नहीं करना चाहिए। वे पूरे ग्रहण काल में जागती रहें और यथासंभव खड़ी रहकर ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें। यदि उन्हें खड़े रहने में असुविधा हो तो अपनी नख-शिख लंबाई का एक धागा नाप कर किसी दीवार के सहारे खड़ा कर दें और बैठकर मंत्र जाप करें।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।