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    वाराणसी में लाखों टन सिल्ट बहा दी गंगा में, बढ़ा पारिस्थितिकीय परिवर्तन का खतरा

    By Abhishek sharmaEdited By: Abhishek sharma
    Updated: Sat, 25 Oct 2025 12:11 PM (IST)

    वाराणसी में गंगा नदी में लाखों टन सिल्ट बहाई जा रही है, जिससे पारिस्थितिकीय परिवर्तन का खतरा बढ़ गया है। नगर निगम प्रशासन द्वारा दशकों से अपनाई जा रही अवैज्ञानिक विधि से गंगा को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। नदी विशेषज्ञों का कहना है कि इससे गंगा की तलहटी उथली हो जाएगी और बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा। गंगा के स्वरूप में भी परिवर्तन आ रहा है, जिससे भूजल के प्रवाह पर असर पड़ रहा है।

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    नगर निगम प्रशासन दशकों पुरानी अवैज्ञानिक विधि से गंगा की हत्या करने पर तुला है।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। आम तौर पर हम संसाधनों और धन का उपयोग समस्याओं के निदान और उन्हें दूर करने के लिए करते हैं लेकिन यहां तो उलटबांसी चल रही है, करोड़ रुपया खर्च करके अमूल्य मानव व यांत्रिक संसाधनों का उपयोग हम समस्या को बढ़ाने मेें कर रहे हैं, बिना कल की चिंता किए।

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    यकीन न हो तो गंगा तट के घाटों पर हो आएं। इन दिनों वहां बड़े-बड़े जेनरेटर चलाकर मोटर पंप चालू कर घाटों पर जमी लाखों टन सिल्ट को घाटों की सफाई के नाम पर वापस गंगा में भेजा जा रहा है। लोग बताते हैं कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, प्रतिवर्ष बाढ़ के बाद गाद निस्तारण का यही आसान तरीका दशकों से प्रयोग में लाया जा रहा है।

    बिना यह सोचे कि इस कृत्य से गंगा की संरचना, आकृति और पारिस्थितिकी पर क्या प्रभाव पड़ेगा। निरंतर उथली होती गंगा से बाढ़ का खतरा साल दर साल बढ़ता ही जाएगा। किसी ने ठीक ही कहा है, ‘डूब जाएगी वह कौम यकीनन अंधेरे में, जिस कौम की अपनी कोई पहचान न हो’।

    यहां पहचान भी है, ज्ञान भी है, विज्ञान भी है और निदान भी है, फिर भी हम सभी अज्ञान बने हुए हैं। गंगा में प्रतिवर्ष बाढ़ का खतरा बढ़ता ही जा रहा है, अभी इसी वर्ष चार बार गंगा का पानी ऊपर चढ़ा और उतरा। फिर भी कोई वैज्ञानिक तरीका अपनाने की बजाय नगर निगम प्रशासन वहीं दशकों पुरानी अवैज्ञानिक विधि से गंगा की हत्या करने पर तुला है।

    हर बार गर्मियां शुरू होते ही निकल आते हैं बालू के टीले

    बाढ़ की गाद का गंगा में निस्तारण तलहटी में सिल्ट की मात्रा बढ़ाता जा रहा है। सामनेघाट पर बने पुल से लेकर शास्त्री घाट तक बने पुलों के पीलरों के बीच फंसकर रुकती-जमती यह गाद गंगा को उथली बना रही है। इसके चलते नदी घाटों से दूर होती जा रही है और गर्मियां घटते ही जगह-जगह रेत के टीले उभर आते हैं। नदी पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यह कार्य गंगा के स्वास्थ्य के साथ संपूर्ण पारिस्थितिक के लिए बेहद खतरनाक है। इससे गंगा की तलहटी शहरी क्षेत्र में उथली हो जाएगी और बाढ़ का खतरा साल-दर-साल बढ़ता ही जाएगा।

    बदल सकता है काशी में गंगा का चंद्राकार स्वरूप

    नदी संरचना व प्रवाह विशेेषज्ञ, आइआइटी बीएचयू के पूर्व प्रोफेसर डा. उदयकांत चौधरी का गंगा पर गहन शोध है, उनके कई शोध पत्र प्रकाशित हैं तथा उन्होंने अनेक पुस्तकें भी इस विषय पर लिखी हैं। वह बताते हैं कि कुछ इसी तरह असि नदी अब अस्सी नाली बन चुकी है। उन्होंने बताया कि 1985 से पूर्व असि नदी असि घाट पर 30 से 45 डिग्री पर गंगा से संगम पहले कर, घाट पर वर्षांत के दिनों में गंगा के आवेग को बढ़ाकर गंगा मेें मृदा जमाव को रोकती थी।

    गंगा का प्रवाह घाट पर वर्षपर्यंत रहा करता था। असि नदी के इस संगम प्वाइंट को बिना नदी ज्ञान का बदल दिया गया। अब अस्सी घाट पर मिट्टी का जमावड़ा आरंभ कर दिया गया है। पूरे वाराणसी क्षेत्र में ही नहीं, सैकड़ों किलोमीटर आगे और पीछे गंगा की मारफालाजी बदल रही है। भूजल के प्रवाह का स्वरूप बदल रहा है। पूरे वाराणसी क्षेत्र में गंगा घाटों के स्वरूप में परिवर्तन आना तय है क्योंकि भूजल की प्रवाह रेखा बदली है और बदलती जा रही है।

    गंगा के साथ यह दुर्व्यवहार है। बाढ़ में आई हुई सिल्ट में कार्बनिक तत्त्व प्रचुर मात्रा में होेते हैं। इसे खेत में पहुंचा दिया जाय तो यह उत्तम खाद होती है जो पैदावार बढ़ा सकती है लेकिन इसे उल्टे गंगा में बहाना खतरनाक है। कार्बनिक पदार्थ की मात्रा पानी में बढ़ने से बैक्टीरिया और कवक पैदा होते हैं जो गंगा जल के साथ ही पूरे तटवर्ती क्षेत्र को प्रदूषित करते हैं। इससे जल में घुलित आक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और जैव आक्सीजन की मांग बढ़ जाती है। इससे जलीय जंतुओं के जीवन को भी खतरा उत्पन्न होता है जो पूरी नदी पारिस्थितिकी के लिए खतरनाक है। यही नहीं दर्जनों जेनरेटरों के चलने से तटीय क्षेत्र में नाइट्रस आक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड आदि खतरनाक गैसें पूरे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं।

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    प्रो. बीडी त्रिपाठी, बीएचयू, ख्यात पर्यावरण विज्ञानी, पूर्व विशेषज्ञ सदस्य, राज्य गंगा संरक्षण, सुरक्षा व प्रबंधन प्राधिकरण।