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    लंका की राक्षसी त्र‍िजटा काशी में बनीं देवी, कार्त‍िक पूर्ण‍िमा के अगले द‍िन पूजन का व‍िधान, बैंगन से इसल‍िए है उनका जुड़ाव

    By Abhishek sharmaEdited By: Abhishek sharma
    Updated: Thu, 06 Nov 2025 04:57 PM (IST)

    वाराणसी में लंका की राक्षसी त्रिजटा देवी के रूप में पूजी जाती हैं। काशी के त्रिजटा इलाके में उनका मंदिर है, जहाँ कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन विशेष पूजन होता है। मान्यता है कि उन्होंने लंका में माता सीता को रावण के अत्याचारों से बचाया था। त्रिजटा देवी को बैंगन अर्पित करने की परंपरा है, क्योंकि उन्हें बैंगन प्रिय है।

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    देवी त्रिजटा का मंदिर बाबा विश्वनाथ मंदिर क्षेत्र में स्थित है।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। भगवान विश्वनाथ की नगरी काशी में, जहां सभी देवी-देवताओं का वास है, वहीं एक राक्षसी त्रिजटा का भी पूजन किया जाता है। यह राक्षसी लंका नरेश रावण के भाई विभीषण की पुत्री हैं। मां सीता के आशीर्वाद से कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन, मार्गशीर्ष प्रतिपदा को त्रिजटा की पूजा होती है। देवी त्रिजटा का मंदिर बाबा विश्वनाथ मंदिर क्षेत्र में स्थित है, जहां भक्त विशेष रूप से मूली और बैंगन का भोग चढ़ाते हैं।

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    कथा के अनुसार, जब प्रभु श्रीराम माता सीता को लेकर अयोध्या लौट रहे थे, तब त्रिजटा ने भी अयोध्या चलने की इच्छा व्यक्त की। इस पर मां सीता ने उसे भगवान शिव की नगरी काशी में निवास करने का आशीर्वाद दिया। उन्होंने कहा कि पूरे कार्तिक मास में भगवान विष्णु की उपासना के बाद, अगले दिन लोग तुम्हारी भी देवी के रूप में पूजा करेंगे। यह परंपरा आज भी काशी में जीवित है।

    काशीवासी मानते हैं कि वर्ष में एक दिन त्रिजटा की पूजा से कार्तिक मास की आराधना पूर्ण होती है। त्रिजटा मां सीता की भांति सबका ध्यान रखती थीं। इस दिन भक्तगण श्रद्धा और भक्ति के साथ त्रिजटा की पूजा करते हैं, जिससे उन्हें मानसिक शांति और सुख की प्राप्ति होती है।

    इस विशेष अवसर पर, भक्तगण मंद‍िर में त्रिजटा की पूजा करते हैं और उनके लिए विशेष पकवान बनाते हैं। यह दिन काशीवासियों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक अवसर है, जिसमें वे अपनी आस्था और श्रद्धा को व्यक्त करते हैं। मान्‍यताओं के अनुसार देवी सीता जब लंका से राम के साथ जाने वाली थीं तब त्र‍िजटा ने बैंगन की सब्‍जी बनाने की बात कही थी। तब सीता के आशीर्वाद से त्र‍िजटा को बैंगन का भोग आज भी काशी में लगाने की मान्‍यता है। 

    देवी त्रिजटा की पूजा का यह अनुष्ठान न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह काशी की सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है। भक्तगण इस दिन एकत्रित होकर त्रिजटा की महिमा का गुणगान करते हैं और उनके प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।

    काशी में त्रिजटा का पूजन एक अद्वितीय परंपरा है, जो न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाता है, बल्कि समाज में एकता और भाईचारे का भी प्रतीक है। काशीवासी इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं और त्रिजटा के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। यह व‍िश्‍व में एकमात्र मंद‍िर माना गया है।