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    तीन शक्तिशाली देशों के एक साथ हाेने से टेंशन में अमेरिका, हालांक‍ि चीन उतना विश्वासी भी नहीं

    Updated: Tue, 02 Sep 2025 11:28 AM (IST)

    वाराणसी से आई खबर के अनुसार प्रो. रचना श्रीवास्तव ने कहा कि चीन अमेरिका का विकल्प बन सकता है जिससे ब्रिक्स मजबूत होगा। भारत को चीन के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ाने चाहिए क्योंकि चीन भी इसके लिए तैयार है। तीन शक्तिशाली देशों के एकजुट होने से अमेरिका का अहंकार टूट सकता है और एशिया सुपर पावर बन सकता है।

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    जागरण विमर्श में बोलीं, वसंत कन्या महाविद्यालय, कमच्छा की प्राचार्य प्रो. रचना श्रीवास्तव।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। वैसे तो चीन को बहुत विश्वासी नहीं कहा जा सकता, लेकिन वर्तमान में स्थिति बदल चुकी है। इसलिए भारत के लिए चीन अमेरिका का विकल्प बनकर उभर सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर बेतुका टैरिफ लगाने से नुकसान तो रहा है, लेकिन अब इससे ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन व साउथ अफ्रीका) मजबूत रहा है।

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    क्योंकि सभी इससे पीड़ित हैं। अब ये सभी देश मजबूती के साथ एकजुट होने लगे हैं। अगर तीन शक्तिशाली देश भारत, चीन व रूस मिलकर एक-दूसरे की भलाई की सोचते हुए मजबूती के साथ खड़ा होते हैं तो सुपर पावर अमेरिका का अहंकार टूट सकता है। अगर सबकुछ सही रहा तो आगामी पांच वर्षों में अब एशिया सुपर पावर बनकर उभर सकता है। इसी बात से अब अमेरिका टेंशन में आ गया है।

    कारण कि तीन बड़े देश अब नजदीक आ गए हैं। बार्डर के मामलों से आगे बढ़कर भारत को अब व्यापारिक संबंध बढ़ाना चाहिए। चीन के लिए ट्रेड को खोल देना चाहिए, क्योंकि इसके लिए अब चीन भी तैयार है। यह कहना है वसंत कन्या महाविद्यालय, कमच्छा की प्राचार्य प्रो. रचना श्रीवास्तव का। वे सोमवार को दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित जागरण विमर्श में बोल रही थीं।

    प्रो. रचना ने बताया कि वैसे अंतरराष्ट्रीय राजनीति कोई भी देश स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता। समय-परिस्थित काल के अनुसार यह स्थिति बदलती जाती है। ऐसा नहीं किया पहली बार भारत- चीन नजदीक आए हैं। पहले ही चीन के साथ व्यापारिक संबंध की पहल की जा चुकी है। इसकी पहल अटल बिहारी वाजपेयी व नरसिम्हा राव भी पहल कर चुके हैं। मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान भी पहल हुई थी।

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से भी संबंध को सुधारने की पहल की गई थी, जिसके तहत चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आए थे। हालांकि बिगत वर्ष गलवन घाटी में हुए तनाव के कारण दोनों देश के बीच अधिक तनाव बढ़ गया था। इसे लेकर चीन ही भारत का परम शत्रु बन गया था। यही नहीं आपरेशन सिंदूर के समय भी पाकिस्तान को चीन व तुर्किये का साथ मिला। अमेरिका भी पाकिस्तान का सहयोग।

    भारत को उम्मीद थी कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सभी साथ देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अमेरिका बहुत अधिक विश्वासी मित्र नहीं रहा। वैसे भी अमेरिका भारत का कभी दोस्त नहीं रहा है। भारत के साथ ही मेल ही नहीं रहा है। ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका से भारत का और बेहतर संबंध भी हुआ था, लेकिन दूसरे कार्यकाल से स्थिति बदल गई है।

    आज ट्रंप के फैसले से भारत नहीं सभी देश परेशान है। भारतीय लोगों के साथ ही अमेरिका की भी आम जनता में ट्रंप के प्रति नाकारात्मक माहौल बन गया है। इसलिए अमेरिका की भी बहुत स्थिति नहीं कही जा सकती है। ब्रिक्स देशों की मजबूती के साथ एकजुटा का असर अमेरिका पर भी पड़ेगा। ट्रंप का ईगो अमेरिका को भी नुकसान पहुंचा सकता है। इसके कारण चीन को बहुत फायदा हो सकता है।

    ट्रंप की इस मनमानी से चीन जो 2030 तक सुपरपावर बनने का सपना देख रहा है उसको मजबूती ही मिलेगी। हालांकि भारत को दोनों से सावधान रहने की जरूरत, लेकिन चीन या अमेरिका में से एक के साथ व्यापारिक संबंध बेहतर करके ही चलना होगा। वैसे भी भारत अब तेजी से आगे बढ़ रहा है।

    भारत की आर्थिक स्थिति पहले से बहुत बेहतर हुई है। इधर, रूस भी अब मजबूत हो रहा है। ऐसे में तीनों के मिलने का असर जरूर पड़ेगा। तीनों के मिलने से एक-दूसरे की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और मजबूती मिलेगी। व्यापार को लेकर भारत को अब जरूरत है अपने तेवर को इसी तरह बरकरार रखने की।

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