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    Snow Leopard: हिमालय में 3,010 मीटर की ऊंचाई पर देखा गया दुर्लभ हिम तेंदुआ, कैमरा ट्रैप में कैद

    Updated: Sat, 06 Dec 2025 10:28 AM (IST)

    कुमाऊं हिमालय में हिम तेंदुआ संरक्षण परियोजना के दौरान नंदा देवी बायोस्फियर रिज़र्व में 3,010 मीटर की ऊंचाई पर एक बाघ देखा गया। कैमरा ट्रैप में कैद हु ...और पढ़ें

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    सांकेतिक तस्वीर।

    जागरण संवाददाता, बागेश्वर। कुमाऊं हिमालय में हिम तेंदुआ जनसंख्या एवं एल्पाइन पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण पर केंद्रित एक महत्त्वपूर्ण परियोजना के दौरान शोधकर्ताओं ने वन्यजीव जगत के लिए अत्यंत दुर्लभ और आश्चर्यजनक रिकॉर्ड दर्ज किया है। उत्तराखंड सरकार के वन विभाग के अंतर्गत राष्ट्रीय हरित भारत मिशन द्वारा वित्तपोषित यह परियोजना, नंदा देवी बायोस्फियर रिज़र्व के विशाल और कम अध्ययन किए गए पर्वतीय परिदृश्य में शीर्ष मांसाहारी प्रजातियों की जनसंख्या गतिकी और उनके पारिस्थितिक संबंधों को समझने के उद्देश्य से संचालित की जा रही है।

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    नंदा देवी बायोस्फियर रिज़र्व में कैमरा ट्रैप से दर्ज हुआ रिकॉर्ड

    इस परियोजना के अंतर्गत कैमरा ट्रैपिंग, चिन्ह सर्वेक्षण और आवास-उपयोग माडलिंग जैसे आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग कर हिम तेंदुआ, उसके शिकार और अन्य मांसाहारी प्रजातियों की उपस्थिति के पैटर्न तथा उनकी गतिविधियों को समझने का प्रयास किया जा रहा है। शोध दल यह भी अध्ययन कर रहा है कि पशुधन चराई, गैर-काष्ठ वन उत्पादों का संग्रहण और जलवायु परिवर्तन के कारण वनस्पतियों में आ रहे बदलाव खाद्य जाल तथा एल्पाइन पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता को कैसे प्रभावित कर रहे हैं।


    कैमरा ट्रैप में कैद


    इसी व्यापक अध्ययन के दौरान सुंदरधुंगा घाटी में लगभग 3,010 मीटर की ऊंचाई पर बंगाल टाइगर का अत्यंत दुर्लभ और वैज्ञानिक रूप से महत्त्वपूर्ण अवलोकन दर्ज किया गया। कैमरा ट्रैप में कैद हुई यह छवि इस क्षेत्र से अब तक की सबसे पुष्ट उच्च-ऊंचाई उपस्थिति का प्रमाण है। इस खोज पर आधारित एक संक्षिप्त शोध-पत्र को प्रकाशन के लिए स्वीकार भी किया गया है।


    मांसाहारी प्रजातियों के ओवरलैप और आवास संपर्कता पर उठे नए सवाल


    विशेषज्ञों के अनुसार, यह अवलोकन इस बात का स्पष्ट संकेत है कि बाघ अपेक्षा से कहीं अधिक ऊंचाई वाले पर्वतीय आवासों का भी उपयोग करते हैं। यह तथ्य हिम तेंदुआ जैसे उच्च-ऊंचाई मांसाहारियों और बाघों के बीच संभावित पारिस्थितिक ओवरलैप पर नई दृष्टि प्रस्तुत करता है। साथ ही, यह प्रश्न भी उभरकर सामने आते हैं कि तेजी से बदलते जलवायु परिदृश्य और मानव-जनित भू-उपयोग परिवर्तनों के बीच इन प्रजातियों की आवाजाही और आवास संपर्कता किस तरह प्रभावित हो रही है।

    डीएओ आदित्य रत्न ने कहा कि शोध दल का कहना है कि ऐसे प्रमाण हमें यह याद दिलाते हैं कि हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र जितना नाजुक है, उतना ही गतिशील भी। यहां की वन्यजीव प्रजातियां अत्यंत अनुकूलनशील हैं और उनकी गतिविधियों को समझने के लिए निरंतर तथा दीर्घकालिक क्षेत्र आधारित निगरानी बेहद आवश्यक है। यह परियोजना आने वाले वर्षों में उच्च हिमालयी क्षेत्रों के लिए अनुकूली संरक्षण प्रबंधन की दिशा में एक ठोस वैज्ञानिक आधार प्रदान करने की क्षमता रखती है।