Pushkar Kumbh 2025: 12 साल बाद माणा में पुष्कर कुंभ शुरू, जानिए क्या है महत्व
चमोली जिले के माणा गांव में बद्रीनाथ धाम से 3 किमी दूर 12 साल बाद पुष्कर कुंभ की शुरुआत हुई। अलकनंदा और सरस्वती नदी के संगम पर यह आयोजन बृहस्पति के मिथुन राशि में प्रवेश करने पर होता है। वैष्णव समुदाय के लोग इसमें भाग लेते हैं। माणा गांव के पास केशव प्रयाग में पूजा के साथ कुंभ शुरू हुआ जिसमें दक्षिण भारत से भी श्रद्धालु पहुंचे हैं।

जागरण संवाददाता, गोपेश्वर (चमोली)। बदरीनाथ धाम से तीन किमी दूर स्थित देश के पहले गांव माणा में 12 साल बाद आयोजित हो रहे पुष्कर कुंभ का बुधवार को विधिवत पूजा-अर्चना के साथ शुभारंभ हो गया। इस दौरान दक्षिण भारत से भी कई श्रद्धालु यहां पहुंचे। परंपरा के अनुसार 12 साल के अंतराल पर बृहस्पति के मिथुन राशि में प्रवेश करने पर माणा में अलकनंदा और सरस्वती नदी के संगम पर पुष्कर कुंभ का आयोजन किया जाता है।
वैष्णव समुदाय के लोग लेते हैं भाग
इसमें दक्षिण भारत से वैष्णव समुदाय के लोग भाग लेते हैं। बद्रीकाश्रम क्षेत्र में इसके आयोजन का मुख्य कारण यही है। माणा गांव के पास अलकनंदा और सरस्वती नदियों के संगम केशव प्रयाग में सुबह की पूजा-अर्चना के साथ कुंभ की शुरुआत हुई। माणा गांव के प्रशासक पीतांबर मोल्फा ने बताया कि कुंभ के तहत गुरुवार से अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। पुष्कर कुंभ में दक्षिण भारत से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
सरस्वती नदी के तट का महत्व
बताया जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने केशव प्रयाग में तपस्या के दौरान प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत की रचना की थी। साथ ही दक्षिण भारत के प्रमुख आचार्यों रामानुजाचार्य और मध्वाचार्य ने सरस्वती नदी के तट पर ही मां सरस्वती से ज्ञान प्राप्त किया था। अपनी परंपरा को कायम रखने के लिए पुष्कर कुंभ के दौरान दक्षिण भारत से लोग बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं।
पुष्कर कुंभ हर साल अलग-अलग नदियों के तट पर आयोजित होता है। बदरीनाथ के पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने बताया कि दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुसार जब-जब बृहस्पति ग्रह अपनी राशि बदलता है, तब-तब कुंभ का आयोजन होता है। हर साल कुंभ का आयोजन अलग-अलग नदियों के तट पर होता है। इस तरह एक स्थान की बारी 12 साल के अंतराल पर आती है।
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