हिंदुस्तान की भाषा एवं संस्कृति से मुझे अगाध स्नेह: चार्ल्स, मां से प्रभावित होकर 13 वर्ष की उम्र में आए थे भारत
देहरादून में स्पर्श हिमालय महोत्सव में शामिल हुए चार्ल्स थामसन, जो एक अंग्रेज हैं, सनातन धर्म और हिंदी भाषा के प्रति अपने प्रेम को दर्शाते हैं। उन्होंने भारतीय नागरिकता लेकर अपना नाम बिहारी लाल रख लिया है। उनका मानना है कि हिंदी से बेहतर कोई भाषा नहीं है और थाईलैंड में आज भी भारतीय संस्कृति जीवित है। उन्होंने हिंदी सीखने के अपने अनुभव साझा किए।

महेन्द्र सिंह चौहान, देहरादून। देहरादून के थानो स्थित लेखक गांव में आयोजित स्पर्श हिमालय महोत्सव का हिस्सा बने सिडनी (आस्ट्रेलिया) निवासी चार्ल्स थामसन एक अंग्रेज होने के बावजूद सनातन धर्म से इतने प्रभावित हैं कि उन्हें हिंदी के सिवा और कोई भाषा बोलना पसंद नहीं।
वह देश की संस्कृति एवं भाषा से भी खासे प्रभावित हैं और इसीलिए उन्होंने न केवल भारत की नागरिकता ली है, बल्कि अपना नाम बिहारी लाल रख लिया है। उनका कहना है कि हिंदुस्तान में लोग भले ही अंग्रेजी सीखने की होड़ रखते हों, लेकिन हिंदी से बेहतर भाषा अन्य कोई नहीं।
एक्टर, एंकर एवं योगी चार्ल्स थामसन अपनी मां, जो आस्ट्रेलिया में योग सिखाती थीं, से योग सीखकर इतने प्रभावित हुए कि 13 वर्ष की उम्र में ही भारत आ गए। बिहार के मुंगेर जिले में वह करीब 11 साल रहे और हिंदी से प्रभावित होने के चलते हिंदी सीखी।
दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने बताया कि तब इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थीं। बिहार में डीएम, एसपी और बैंक मैनेजर ही गाड़ी से चलते थे। वह तो बैलगाड़ी पर ही घूमकर ही संतुष्ट थे।
बकौल चार्ल्स, ‘मैं हिंदी का भक्त हूं। अंग्रेजी बोलने में मुझे अब शर्म आती है। गाय हमारी माता है, इस पर हमने मूवी भी बनाई, जिसमें देसी गाय के दूध व उनकी सुरक्षा की महत्ता को दर्शाया गया है। आस्ट्रेलिया में देसी गाय की भारी डिमांड है और उसका दूध आयात भी किया जाता है। लेकिन, भारत में लोग अब इससे अनभिज्ञ होते जा रहे हैं।’
थाइलैंड में जीवित है हिंदुस्तान की पुरानी संस्कृति
चार्ल्स ने कहा कि आज थाईलैंड को हिंदुस्तान में गलत दृष्टि से देखा जाता है, लेकिन यहां हिंदुस्तान की पुरानी संस्कृति जीवित है। यहां ब्रह्माजी की प्रतिमा व मंदिर है और उनकी पूजा होती है। ब्रह्माजी भी यहां बेहद खुश हैं। थाइलैंड में हनुमान नदी, गणेश की सबसे बड़ी प्रतिमा है और अयोध्या भी है।
इस संबंध में जानकारी शायद ही भारत में अधिक लोगों को होगी। चार्ल्स ने बताया कि वह भारत के विभिन्न प्रदेशों में गए हैं और हिंदी के प्रति लोगों को प्रेरित कर रहे है। जो लोग अंग्रेजी सीखने के इच्छुक होते हैं, उन्हें वह हिंदी भी सिखाते है।
चार्ल्स कहते हैं कि सनातन धर्म ही उन्हें पसंद है, क्योंकि सनातनी परंपरा सभी को स्वीकार कर लेती है। जबकि, इसाई व इस्लाम धर्म सिर्फ हमारा रास्ता ही सही है, बाकी सब गलत है, सिखाते हैं। उन्होंने मराठी व बालीवुड सिनेमा में भी काम किया है। वह बिहारीलाल नाम से भी जाने जाते हैं।
नागरिकता लेने पर अधिकारी भी थे आश्चर्यचकित
चार्ल्स थामसन कहते हैं, जब वह भारत की नागरिकता लेने के लिए अधिकारियों से मिले तो वह आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने कहा कि क्यों हिंदुस्तान की नागरिकता ले रहे हो, वह तो खुद विदेश की नागरिकता लेने के चक्कर में है। इस पर उन्होंने जवाब दिया, वह हिंदुस्तान की संस्कृति और भाषा से प्रभावित हैं और यहीं रहना चाहते हैं।
सबसे पहले सिखाया गया ‘मैं गधा हूं’
चार्ल्स ने बताया, जब मैंने हिंदी सीखनी शुरू की, तब बिहार में मेरा मजाक बनाने के लिए मुझे सबसे पहले, ‘मैं गधा हूं’ बोलना सिखाया गया। यह शब्द मैंने दिनभर रटा और लोग मेरा मजाक बनाते रहे। बावजूद इसके मैंने हिंदी सीखने की जिद नहीं छोड़ी और आज मैं हिंदी से प्रेम करते हुए उसे अच्छी तरह बोल भी लेता हूं।

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