Dehradun में शहर से गांव तक मौत के मुहाने पर बसी जिंदगी, लाखों की आबादी पर आपदा का साया
देहरादून में नदी-नालों के किनारे बसी आबादी पर आपदा का खतरा मंडरा रहा है। रिस्पना और बिंदाल जैसी नदियां उफान पर हैं और अवैध निर्माण जारी है। पर्यटन के नाम पर अंधाधुंध निर्माण ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है। पुनर्वास के प्रयास नाकाफी हैं और लगातार बारिश से जमीन दलदल बन गई है जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है।

विजय जोशी, जागरण देहरादून: दून में नदी-नालों के किनारों पर खड़ी सवा लाख से अधिक आबादी, फ्लड प्लेन जोन में पसरी 129 मलिन बस्तियां और पर्यटन के नाम पर घाटियों में हो रहा अंधाधुंध निर्माण ये सब मिलकर राजधानी को किसी भी वक्त बड़े हादसे की ओर धकेल रहे हैं।
रिस्पना-बिंदाल जैसी नदियां लगातार उफान पर हैं, पहाड़ों से लेकर मैदान तक जमीन दरक रही है और लगातार हो रही बारिश भी तबाही का सबब बन रही है। बावजूद इसके, न तो नदी-नालों के मुहानों पर निर्माण रुक रहे हैं और न ही आपदा को लेकर नीति नियंता ही गंभीर नजर आ रहे हैं।
देहरादून में नगर निगम के रिकार्ड बताते हैं कि शहर में 50 हजार से अधिक मकान नदी-नालों के किनारे खड़े हैं। 2006 में किए गए सर्वे में 11 हजार अवैध निर्माण सामने आए थे, लेकिन यह आंकड़ा अब बढ़कर 50 हजार पार कर चुका है। नगर निगम सीमा का विस्तार होने के बाद जुड़े 72 गांवों में भी कई बस्तियां नदियों के किनारे बसी हैं, जिससे खतरा और बढ़ गया है।
हाईकोर्ट के आदेश पर बिंदाल नदी किनारे 2016 के बाद बने 310 अवैध निर्माणों को चिह्नित कर नोटिस जारी किए गए हैं। हालांकि, अब तक पुनर्वास के नाम पर सिर्फ काठबंगला बस्ती में 112 मकान ही तैयार हो पाए हैं। नगर आयुक्त नमामी बंसल का कहना है कि आने वाले समय में और पुनर्वास योजनाएं लाई जाएंगी, लेकिन मौजूदा प्रयास आबादी की तुलना में बेहद बौने नजर आते हैं।
अध्यादेशों के सहारे जिंदा बस्तियां
तत्कालीन सरकारों ने वोट बैंक की राजनीति के चलते बार-बार अध्यादेशों के सहारे इन बस्तियों का अस्तित्व बचाए रखा। 2016 से पहले बनी बस्तियां अध्यादेश के जरिए नियमित कर दी गईं, जबकि इसके बाद हुए निर्माण अवैध माने गए। यही वजह है कि खतरे के बीच जी रही लाखों की आबादी के लिए कोई ठोस पुनर्वास योजना धरातल पर उतर नहीं पाई।
सबसे बड़ा खतरा रिस्पना और बिंदाल किनारे
रिस्पना किनारे अधोईवाला, चूना भट्ठा, ऋषिनगर, इंदर रोड, चंदर रोड बस्ती, मोहिनी रोड, दीपनगर और रामनगर जैसे इलाके सबसे संवेदनशील हैं। वहीं बिंदाल नदी के किनारे कारगी, पटेलनगर, गोविंदगढ़ से लेकर चुक्खुवाला तक के इलाकों पर आपदा का साया मंडरा रहा है। नदियों के किनारे संकरी धाराओं में हो रहे अतिक्रमण और निर्माण ने खतरे को और बढ़ा दिया है।
पर्यटन के नाम पर अंधाधुंध निर्माण
देहरादून: राजधानी देहरादून की खूबसूरत घाटियां अब धीरे-धीरे आपदा की गिरफ्त में आ रही हैं। सहस्रधारा, गुच्चू-पानी, मालदेवता, शिखर फाल और किमाड़ी जैसे पर्यटन स्थल, जहां कभी प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य सैलानियों को आकर्षित करता था, आज अतिवृष्टि और बादल फटने के बढ़ते खतरे के लिए बदनाम हो रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इन घाटीनुमा क्षेत्रों में भौगोलिक स्थिति के कारण वैसे भी भारी बारिश का जोखिम रहता है, लेकिन मौसम के बदलते पैटर्न ने घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता दोनों बढ़ा दी है। चिंता की असली वजह है यहां पिछले कुछ वर्षों में हुआ अंधाधुंध निर्माण।नदी-नालों के किनारों पर मकान, होटल, गेस्ट हाउस, रिजॉर्ट और होम-स्टे की कतारें खड़ी कर दी गई हैं।
सहस्रधारा से लेकर मालदेवता तक, हर जगह नदी के प्राकृतिक प्रवाह और चौड़ाई की अनदेखी की गई है। नदियों का "गला घोंटने" जैसे हालात बन गए हैं। नतीजतन, बारिश या बाढ़ की स्थिति में जलप्रवाह का दबाव बढ़कर आसपास की बस्तियों, सड़कों और पर्यटक ढांचों पर कहर ढा देता है।
हर मानसून में इन घाटियों में सीमित क्षेत्र में दर्ज की जाने वाली अतिवृष्टि अब बड़े पैमाने पर तबाही की वजह बनने लगी है। पर्यटन के नाम पर हो रहे इस अनियंत्रित और बिना मानकों वाले निर्माण से न सिर्फ प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है, बल्कि आपदा का खतरा भी कई गुना बढ़ गया है।
छह माह की बारिश से भीगा दून
देहरादून: लगातार छह महीने से बरस रही बारिश ने दून घाटी और आसपास के पहाड़ों को दलदल बना दिया है। ग्रीष्मकाल में सामान्य से अधिक वर्षा और फिर लगातार बरसते मानसून ने इस बार हालात ऐसे बना दिए हैं कि अब जरा सी बारिश भी पहाड़ों और मैदानों को दरका रही है। मौसम विज्ञानियों के अनुसार, इस साल ग्रीष्मकाल में सामान्य से कम शुष्क दिन रहे। इसके चलते मानसून के दौरान लगातार हो रही बारिश से पूरे क्षेत्र में नमी असामान्य रूप से बढ़ गई है।
परिणामस्वरूप, पहाड़ और मैदान दोनों जगहों पर भूस्खलन और भूधंसाव की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। नदियां भी लगातार उफान पर हैं, जिससे नदी किनारे बसे क्षेत्रों में भूकटान (किनारों का कटाव) और तेज हो गया है। रिस्पना, बिंदाल और सहस्रधारा जैसे इलाकों में तो जमीन दलदल की तरह नरम हो चुकी है। स्थानीय लोग कहते हैं कि “पहले जहां तेज बारिश से खतरा होता था, अब हल्की बूंदाबांदी भी जमीन खिसका रही है।
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