देहरादून में चोरी-छिपे पाले जा रहे शिकारी कुत्ते, निगम को हमले का इंतजार
देहरादून में चोरी-छिपे शिकारी कुत्तों का पालन किया जा रहा है, जिससे लोगों में खतरे की आशंका है। नगर निगम में शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। स्थानीय निवासियों में निगम की कार्यशैली के प्रति आक्रोश है और वे किसी अप्रिय घटना की आशंका से चिंतित हैं।

तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतीकरण के लिए किया गया है। जागरण
विजय जोशी, जागरण देहरादून। दून जैसे शांत शहर में विदेशी नस्ल के खूंखार कुत्ते अब दहशत का दूसरा नाम बन चुके हैं। राटविलर और पिटबुल जैसी आक्रामक नस्लों के हमलों ने शहर की शांति और नागरिक सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं। पिछले कुछ महीनों में हुई घटनाओं ने यह साफ कर दिया है कि झूठी शान के लिए पाले जा रहे ये शिकारी कुत्ते अब सार्वजनिक खतरा बनते जा रहे हैं। जबकि, अवैध रूप से पाले गए कुत्तों की जानकारी नगर निगम को किसी घटना के बाद ही मिल पाती है।
राजपुर रोड, जाखन और आसपास के इलाकों में इन कुत्तों के हमलों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। हाल ही में जाखन में एक राटविलर ने आटो चालक पर हमला किया, जबकि कुछ माह पहले इसी इलाके में दो राटविलर ने एक बुजुर्ग महिला को बुरी तरह घायल कर दिया था। दोनों ही मामलों में कुत्ते बिना पंजीकरण के पाले गए मिले। नगर निगम के रिकार्ड के मुताबिक, देहरादून में वर्तमान में 300 से अधिक खूंखार नस्लों के कुत्ते पंजीकृत हैं।
इनमें प्रमुख रूप से राटविलर, पिटबुल, अमेरिकन बुलडाग, डोबरमन, अमेरिकन बुली जैसी नस्लें शामिल हैं। हालांकि, इनकी असली संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है, क्योंकि कई लोग बिना पंजीकरण के ही इन विदेशी नस्लों को पाल रहे हैं। पिछले सात महीनों में सिर्फ 12 नए खूंखार कुत्तों का पंजीकरण हुआ है, जबकि बिना लाइसेंस के बड़ी संख्या में कुत्ते पकड़े जा चुके हैं। यह स्थिति तब है जब केंद्र सरकार ने इन नस्लों के आयात और ब्रीडिंग पर पहले ही प्रतिबंध लगा रखा है। सवाल यह है कि जब इनका प्रजनन और बिक्री गैरकानूनी है, तो शहर में ये नए कुत्ते आ कहां से रहे हैं?
लाइसेंस नहीं, फिर भी राटविलर हर गली में
नगर निगम की मानें तो शहर के कई पाश इलाकों में विदेशी नस्लों के कुत्ते बगैर पंजीकरण के खुलेआम पाले जा रहे हैं। निगम के वरिष्ठ पशु चिकित्साधिकारी डा. वरुण अग्रवाल के अनुसार, अब नए प्रावधानों के तहत हर पालतू कुत्ते का पंजीकरण, बंध्याकरण और टीकाकरण अनिवार्य कर दिया गया है। नियम तोड़ने वालों पर जुर्माना और कार्रवाई की जा रही है। हालांकि, हकीकत यह है कि निगम को कई मामलों की भनक तभी लगती है जब कोई हादसा हो जाता है। कई कालोनियों के निवासी कहते हैं कि इन कुत्तों के कारण लोग अपने बच्चों को अकेले बाहर भेजने से डरते हैं।
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शिकारी प्रवृत्ति, शहरी माहौल में अनुपयोगी
विशेषज्ञों के अनुसार, राटविलर और पिटबुल जैसी नस्लें मूल रूप से शिकारी या सुरक्षा कार्यों के लिए विकसित की गई हैं। इनका स्वभाव आक्रामक और क्षेत्रीय होता है। ऐसे में इन्हें घनी आबादी वाले इलाकों या फ्लैट्स में पालना न केवल गैर-जिम्मेदाराना है, बल्कि जानलेवा भी साबित हो सकता है।
निगम का दावा, की जा रही सख्ती
नगर निगम का दावा है कि अब पालतू कुत्तों के पंजीकरण और नियंत्रण के नियमों को और कड़ा किया गया है। खुले में घुमाने, बिना पट्टा या मज़ल के कुत्ता छोड़ने, या पंजीकरण न कराने पर पांच हजार रुपये तक का जुर्माना तय किया गया है। निगम का कहना है कि टीकाकरण और बंध्याकरण को लेकर भी सख्ताई की गई है।

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