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    Jagran Film Festival: 'अगर मगर किंतु लेकिन परंतु' का सार, जीवन चाहे कितना कठिन हो कल्पना कभी सीमित नहीं होती

    Updated: Sun, 02 Nov 2025 03:08 PM (IST)

    देहरादून में जागरण फिल्म फेस्टिवल में 'अगर मगर किंतु लेकिन परंतु' फिल्म का प्रदर्शन किया गया। यह फिल्म जीवन की कठिनाइयों के बावजूद कल्पना की असीमित शक्ति का संदेश देती है। हर्ष जोशी द्वारा निर्देशित यह फिल्म एक बच्चे की मासूम कल्पनाओं और भावनाओं को दर्शाती है, जो दर्शकों को गहराई से छू जाती है।

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    जागरण फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई ''''अगर मगर किंतु लेकिन परंतु'''' फिल्म से जुड़े छात्र-छात्राएं. Jagran

    जागरण संवाददाता, देहरादून। जागरण फिल्म फेस्टिवल में दिखाई फिल्म ''''अगर मगर किंतु लेकिन परंतु'''' यह संदेश देती है कि जीवन चाहे कितना ही कठिन क्यों न हो, लेकिन कल्पना कभी भी सीमित नहीं होती। फिल्म की कहानी दुविधाओं और सवालों के इर्द-गिर्द घूमने वाली है। हर्ष जोशी के निर्देशन में बनी यह पारिवारिक-फंतासी फिल्म बच्चों की मासूम कल्पनाओं, भावनाओं और जीवन के अप्रत्याशित मोड़ों को बेहद सरल तरीके से सामने रखती है। हाल में मौजूद छात्र-छात्राएं आखिर तक इस फिल्म से जुड़े रहे।

    साहित्यकार रबींद्रनाथ की कृति से प्रेरित इस फिल्म की कहानी एक छोटे से बच्चे अमल (हर्ष जोशी) की है, जो एक गंभीर बीमारी से जूझ रहा है और बिस्तर तक सीमित है। बाहरी दुनिया से उसका संपर्क सिर्फ उसकी खिड़की के जरिए होता है। वही खिड़की उसके लिए एक ''''जादुई दरवाजा'''' बन जाती है, जो उसे कल्पना की दुनिया में ले जाती है। उस काल्पनिक संसार में, अमल हर उस चीज को देखता है जो वह हकीकत में नहीं कर पाता जैसे कि उड़ना, खेलना, दोस्तों से मिलना और अपनी मर्जी से दुनिया को बदल देना। लेकिन जब हकीकत और कल्पना की सीमाएं धुंधली पड़ने लगती हैं, तब कहानी एक भावनात्मक मोड़ लेती है।

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    अमल के दोस्त उसकी बीमारी का इलाज कराने के लिए सभी जगहों से रुपये एकत्र करते हैं और तब जाकर उसका इलाज होता है। मुख्य कलाकार के रूप में हर्ष जोशी (अमल) ने सच्चा अभिनय किया है, खासकर वह दृश्य जहां वह अपनी कल्पनाओं में खो जाता है, दर्शकों को भीतर तक छू लेते हैं। सहायक कलाकारों का प्रदर्शन सीमित पर प्रभावी है।

    फिल्म का सिनेमाटोग्राफी और आर्ट डिजाइन इसकी सबसे बड़ी ताकत है। अमल की काल्पनिक दुनिया के दृश्य रंगों और प्रतीकों से भरे हुए हैं। कभी बादलों में तैरते घर, तो कभी उड़ते कागजी जहाज, जो फिल्म को एक काव्यात्मक सौंदर्य देते हैं। यह एक धीमी, संवेदनशील और भावनात्मक फिल्म है। बच्चों के लिए यह प्रेरणादायक है, जबकि बड़ों के लिए यह बीते बचपन की याद दिलाती है।