Shiva: रहस्य से भरा है ये शिव मंदिर, 'जलाभिषेक' कर गायब हो जाती है जलधारा; गर्भगृह में भक्तों का जाना है मना
Shiva Temple उत्तराखंड में न जाने कितने ऐसे मंदिर हैं जिनमें कई रहस्य छुपे हैं। आज भी लोग कई ऐसे मंदिरों को खोज नहीं पाए हैं और जो सामने हैं उनके रहस्यों के सामने मनुष्य भी हाथ जोड़कर बैठ जाता है। ऐसे ही एक रहस्य यहां के एक विख्यात मंदिर से जुड़ा है। रहस्य के साथ-साथ इस मंदिर का कनेक्शन राष्ट्रपति भवन से भी जुड़ा है।

देहरादून, जागरण डिजिटल डेस्क। उत्तराखंड वैसे तो इन दिनों अपनी खूबसूरती से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां की सुंदर वादियां, पहाड़, झरने और नदियां न सिर्फ देश बल्कि विदेश से भी लोगों को यहां खींचकर लाती है। वैसे उत्तराखंड को हम देवभूमि के नाम से भी जानते हैं। उत्तराखंड देश का वो भाग है, जहां पर देवों का वास है। कहते हैं कि भगवान शिव आज भी हिमालय की पहाड़ियों पर वास करते हैं। चारों पवित्र धाम आपको उत्तराखंड में ही मिलेंगे।
उत्तराखंड में न जाने कितने ऐसे मंदिर हैं जिनमें कई रहस्य छुपे हैं। आज भी लोग कई ऐसे मंदिरों को खोज नहीं पाए हैं और जो सामने हैं उनके रहस्यों के सामने मनुष्य भी हाथ जोड़कर बैठ जाता है। ऐसे ही एक रहस्य यहां के एक विख्यात मंदिर से जुड़ा है। नाम है 'महासू देवता'।
इस मंदिर को न्याय के देवता के स्थान के रूप में पूजा जाता है, लेकिन इस मंदिर से जुड़ा एक रहस्य है जिसके बारे में शायद ही आपको पता हो। रहस्य जानने से पहले आइए जानते हैं महासू देवता के इस भव्य मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तत्व...
कौन हैं 'महासू देवता'?
महासू देवता मंदिर उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में त्यूनी-मोरी रोड के नजदीक व चकराता के पास हनोल गांव में स्थित है। हनोल गांव का नाम हूण भट यानी हूण योद्धा के नाम पर पड़ा। यहीं पर ये मंदिर स्थित है। यह मंदिर देहरादून से 190 किलोमीटर और मसूरी से 156 किलोमीटर दूर स्थित हैं। ये मंदिर भगवान शिव के रुप को समर्पित है। महासू देवता मंदिर में महासू देवता की पूजा की जाती हैं, जो कि शिव भगवान के अवतार माने जाते हैं।
'महासू देवता' एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है और स्थानीय भाषा में महासू शब्द 'महाशिव' का अपभ्रंश है। चारों महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू (बौठा महासू) और चालदा महासू है, जो कि भगवान शिव के ही रूप हैं।
ये मान्यता है कि किरमिक नामक राक्षस के आतंक से परेशान होकर हुणाभट्ट नामक ब्राह्मण ने भगवान शिव और शक्ति की उपासना की। इस उपासना से प्रसन्न होकर भगवान शिव चार भाइयो के रुप धरती पर उत्पन्न हुए। इन चारों को महासू देवता के रूप में जाना गया और इन्होंने इस राक्षस से मुक्ति दिलाई।
इस मंदिर में देव करते हैं न्याय
महासू देवता मंदिर अपने न्याय के लिए जाना जाता है। दरअसल महासू देवता को न्यायाधीश - न्याय का देवता कहा जाता है और इस मंदिर को न्यायालय के रूप में पूजा जाता है। आज भी महासू देवता के उपासक मंदिर में न्याय की गुहार और अपनी समस्याओं का समाधान मांगते नजर आते हैं।
ये लोगों की आस्था ही तो है जो उन्हें इस पवित्र धाम में खींच लाती है। कोर्ट कचहरी से जुड़े मामले लेकर भी श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं । मात्र एक रुपया चढ़ाकर जो श्रद्धालु न्याय की गुहार करता है, उसको अवश्य ही न्याय मिलता है।
हमेशा जलने वाली ज्योति और जलधारा का रहस्य!
ये मान्यता है कि महासू देवता के मंदिर के गर्भगृह में भक्तों का जाना मना है। वहां पर केवल मंदिर का पुजारी ही पूजा के समय मंदिर में प्रवेश कर सकता है। यह बात आज भी रहस्य है कि आखिर कैसे इस मंदिर में हमेशा एक ज्योति जलती रहती है जो दशकों से जल रही है।
सबसे बड़ा रहस्य ये है कि महासू देवता मंदिर के गर्भगृह से पानी की एक धारा भी निकलती है, लेकिन वह कहां जाती है, कहां से निकलती है आज तक इसके बारे में कोई पता नहीं लगा पाया है। यह जलधारा भगवान शिव का जलाभिषेक करके गायब हो जाती है। न तो किसी को इसका प्रारंभ समझ में आता है और न ही अंत। यही कारण है कि श्रद्धालुओं को यही जल प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
राष्ट्रपति भवन से कनेक्शन
खास बात यह है कि महासू देवता का राष्ट्रपति भवन से भी सीधा कनेक्शन है। राष्ट्रपति भवन की ओर से यहां हर साल भेंट स्वरूप नमक भेजा जाता है। ये हर साल होता है।
कैसे पहुंचे
महासू देवता मंदिर उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक हैं। यहां पहुंचने के लिए आपको पहले चकराता या फिर देहरादून पहुंचना होगा। दोनों ही जगहों से टैक्सी यहां के लिए मितली है। हनोल पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून रेलवे स्टेशन (181 किलोमीटर) और जॉली ग्रांट हवाई अड्डा (207 किलोमीटर) है। समय की बात करें तो चकराता से हनोल पहुंचने में 4 घंटे और देहरादून से 6 घंटे लगते हैं।
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