वायु प्रदूषण घटाने को मिले 68 करोड़ 'हवा', तीन शहरों को जारी किए गए थे 85.62 करोड़ रुपये
नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के अंतर्गत आवंटित धनराशि का उपयोग वायु गुणवत्ता सुधार में होना चाहिए। विभिन्न एजेंसियों को जारी किए गए धन के उपयोग की समीक्षा की जाएगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह प्रदूषण कम करने के कार्यों में ही खर्च हो रहा है।

अब तक खर्च की गई 68 करोड़ से अधिक की राशि
सुमन सेमवाल, देहरादून। तेजी से बढ़ते शहरों में वायु प्रदूषण के मोर्चे पर दिल्ली जैसे हालात पैदा न हों, इसके लिए वर्ष 2019 में देशभर के 133 शहरों का चयन किया गया था। प्रोग्राम में उत्तराखंड के तीन शहरों देहरादून, ऋषिकेश और काशीपुर का चयन किया गया था। वर्ष 2021 में जब इसका एक्शन प्लान जारी किया गया तो शहरों ने वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के प्रयास भी शुरू कर दिए।
क्योंकि, केंद्र सरकार से राज्यों के लिए भारी भरकम बजट जारी किया गया। उत्तराखंड की झोली में भी 85 करोड़ रुपए से अधिक आए। जिसे शहरों के मुताबिक आवंटित भी किया गया। यहां तक भी बात ठीक थी, लेकिन जब बजट खर्च करने की बारी आई तो उसे स्वीपिंग मशीनों की खरीद और चालान करने वाली मशीनों आदि में खर्च किया जाने लगा। इस तरह अब तक 68 करोड़ रुपए से अधिक की राशि भी खपाई जा चुकी है।
इस खर्च और वायु प्रदूषण की स्थिति देखें तो पता चलता है कि राजधानी दून में एयर क्वालिटी इंडेक्स के नाम पर शहरों से कोसों दूर दून यूनिवर्सिटी की हवा के आंकड़ों से ठगाया जा रहा है। जबकि यहां प्रदूषण कणों के रूप में एसपीएम (निलंबित ठोस कण) 10 और 2.5 की दर मानक से कहीं अधिक बनी हुई है। ऋषिकेश में हालात भले ही देहरादून जैसे न हों, लेकिन वहां भी हवा की गुणवत्ता मानक से अधिक खराब है। काशीपुर में जरूर वायु प्रदूषण मानक के भीतर है, लेकिन वहां की स्थिति पहले भी ऐसी ही थी।
सड़क किनारों पर टाइल्स लगाकर कैसे घटेगा प्रदूषण
उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मुख्यालय के आंकड़ों के अनुसार नगर निकायों को जो धनराशि मिली, उसके तहत सड़क के दोनों किनारों पर टाइल्स लगाई गई। एंड टू एंड पेवमेंट के अंतर्गत किए गए कार्यों के पीछे तर्क दिया गया कि इससे धूल नहीं उड़ेगी।
अब अधिकारियों को कौन समझाए कि धूल कणों और प्रदूषण कणों में अंतर होता है। धूल या डस्ट प्रदूषण के दायरे में नहीं आती है। इसी सोच के साथ सफाई के लिए स्वीपिंग मशीनें भी खरीदी गईं।
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परिवहन विभाग ने खरीदी चालान करने की हस्तचलित मशीनें
इस तरह की जानकारी शायद ही कभी सामने आई है कि परिवहन विभाग ने वायु प्रदूषण पर वाहनों के चालान किए हैं। यदा कदा के मामलों को छोड़कर परिवहन विभाग की चालानी कार्रवाई यातायात नियमों के उल्लंघन तक सीमित रहती है।
कृषि विभाग पराली पर कर रहा शोध
नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत उत्तराखंड में कृषि विभाग को भी धनराशि जारी की गई है। जिस राज्य में पराली का प्रदूषण कभी मुद्दा ही नहीं रहा, वहां कृषि विभाग को पराली पर अध्ययन के लिए 0.4 करोड़ रुपए जारी कर दिए गए।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने वायु का पैसा जल गुणवत्ता पर खर्च किया
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी प्रोग्राम के तहत करोड़ों रुपए की रकम हथियाई। लेकिन, वायु गुणवत्ता में सुधार की जगह इससे मुख्यालय में जल गुणवत्ता की जांच के लिए प्रयोगशाला स्थापित कर दी।-1762318030075.png)
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यह हैं मानक
पीएम-10 का स्तर 24 घंटे में 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर और पीएम-2.5 का स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए।
नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत जो भी धनराशि जारी की जा रही है, उसे हवा की गुणवत्ता बेहतर करने के कार्यों में खर्च किया जाना है। विभिन्न एजेंसियों को जारी राशि के खर्च और उसकी प्रकृति की समीक्षा की जाएगी।
-पराग मधुकर धकाते, सदस्य सचिव (उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड)

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