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    Hartalika Teej : भारत - नेपाल की साझी संस्कृति का प्रतीक तीज पर्व, पीछे है ये पौराणिक कहानी

    Updated: Wed, 27 Aug 2025 03:23 PM (IST)

    तीज पर्व भारत और नेपाल की साझी संस्कृति का प्रतीक है जिसे गोर्खाली समुदाय धूमधाम से मनाता है। यह पर्व सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देता है और सांस्कृतिक रिश्तों को मजबूत करता है। हरतालिका तीज पर महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं भगवान शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत से विवाह की बाधाएं दूर होती हैं और सुहागिन अपने पति की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं।

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    आम प्रचलित भाषा में कहा गया गोर्खाली मेला। Jagran

    संवाद सूत्र, जागरण रायवाला। मेले और त्योहार हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की पहचान हैं। यह हमारी विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराओं को संरक्षित रखने के साथ ही समाज को एकता के सूत्र में बांधने तथा सामाजिक सौहार्द बनाए रखने में अहम योगदान देते हैं। हरतालिका तीज भी ऐसा ही एक पर्व है जो भारत मे मुख्य रूप से गोर्खाली समुदाय द्वारा मनाया जाता है। यह पर्व भारत और नेपाल की सांझी संस्कृति का प्रतीक है।

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    दोनों देशों में इस पर्व को बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं।  दरअसल, नेपाल से भारत में आकर बसे लोग वहां से अपनी विशिष्ट संस्कृति और रीति रिवाज भी साथ लेकर आए। ऐसे ही करीब साठ के दशक में रायवाला क्षेत्र में बसे गोर्खाली समुदाय के लोगों ने यहां घस्यारी देवी मंदिर में परंपरागत तीज मेले की शुरुआत की। भारतीय संस्कृति के स्वभाव के अनुरूप यहां के मूल निवासियों ने भी तीज पर्व को अपनाया और मेले में बढ़चढ़ कर योगदान दिया। तब आम प्रचलित भाषा में इसे गोर्खाली मेला कहा गया।

    मेले के साथ रंगारंग लोक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं, जिसमें सभी समुदायों के लोग हर्षोल्लास से शिरकत करते हैं। घस्यारी माता मंदिर समिति, गोरखाली सुधार सभा और नेपाली छात्र समुदाय इसके आयोजन में मुख्य भूमिका निभाते आ रहे हैं। भारत और नेपाल में एक साथ मनाया जाने वाला यह पर्व न केवल स्थानीय स्तर सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देता है बल्कि दोनों देशों के बीच मजबूत सांस्कृतिक रिश्ता भी कायम किए हुए है।

    हरतालिका तीज का है पौराणिक महत्व

    घस्यारी मंदिर के पंडित गोविंद अधिकारी बताते हैं कि एक बार हिमालय ने अपनी कन्या पार्वती का विवाह जब भगवान विष्णु के साथ तय कर दिया। लेकिन पार्वती तो शिव को पाना चाहती थी। यह बात पार्वती ने अपनी सहेली को बताई। इसके बाद वह सखी उन्हें हरण कर घनघोर जंगल में ले गई ताकि शिव पार्वती मिलन हो सके। जंगल में पार्वती ने निर्जला रहकर उपवास किया। हरत यानि हरण करना और आलिका का अर्थ है सहेली। यही परंपरा आज भी निभाई जा रही है।

    तीन दिन तक मनाया जाता है यह पर्व

    हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज व्रत रखा जाता है। तीन दिन तक मनाए जाने वाले पर्व का पहला दिन दर खाने दिन कहलाता है। इस दिन महिलाएं मायके जाकर या करीबी रिश्तेदारों के घर गीत-संगीत और पारंपरिक भोज का आनंद लेती हैं। दूसरे दिन निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव-पार्वती की पूजा की जाती हैं। तीसरे दिन ऋषि पंचमी पर सप्तऋषियों की आराधना होती है।

    छिद्दरवाला निवासी पंडित शालिकराम शास्त्री ने बताया कि महिलाएं और कन्याएं इस व्रत को करती हैं। सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए भगवान शिव और मां पार्वती की विधिवत पूजा-अर्चना करती हैं और उनका आशीर्वाद लेतीं हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत को करने से कन्या के विवाह की बाधा दूर होती है और जल्द विवाह के योग बनते हैं।

    धूमधाम से मनाया हरितालिका तीज महोत्सव

    रायवाला : हरिपुरकलां में आयोजित हरितालिका तीज महोत्सव में लोक संस्कृति की धूम रही। महिलाओं ने गोर्खाली गीतों पर जमकर नृत्य किया। पूर्व कैबिनेट मंत्री व क्षेत्रीय विधायक प्रेमचंद अग्रवाल ने दीप प्रज्वलित कर महोत्सव का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि कहा कि भारतीय संस्कृति में तीज पर्व का बहुत बड़ा महत्व है।

    महिलाओं को इस पर्व का विशेष इंतजार रहता है। इस दौरान ग्राम प्रधान सविता शर्मा, तीज कमेटी की अध्यक्ष नीलम रोका, टिका बहादुर थापा, बल बहादुर थापा, विनय थापा, शीतल क्षेत्री, पूर्णिमा आले, दीप माला, दीपक थापा, रोशनी अग्रवाल, संगीता गुरुंग, अनिता प्रधान आदि रहे।

    मंदिरों में हुए भजन कीर्तन

    मंगलवार को तीज पर्व पर महिलाओं ने व्रत लिया और भजन कीर्तन किये। होशियारी मंदिर प्रतीतनगर, हिमाला देवी मंदिर साहबनगर व्रती महिलाओं की ओर से पूजा अनुष्ठान कार्यक्रम आयोजित हुए।