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    गुलदार बहुत चालाक, मनुष्य के स्वभाव के अनुरूप बदलता है रणनीति

    Updated: Tue, 18 Nov 2025 04:15 PM (IST)

    उत्तराखंड में गुलदारों की आबादी के बारे में सही आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, जिससे उनके हमलों से निपटने की योजनाएं प्रभावित हो रही हैं। शिकारी लखपत सिंह रावत के अनुसार, गुलदार बहुत चालाक होते हैं और मनुष्यों के व्यवहार के अनुसार अपनी रणनीति बदलते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि गुलदार से बचाव के तरीकों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए और लोगों को उनके व्यवहार के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।

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    ‘दैनिक जागरण’ की ओर से 'मानव-वन्यजीव संघर्ष: चुनौती और समाधान' विषय पर आयोजित विमर्श में अपनी बात रखते प्रसिद्ध शिकारी लखपत सिंह रावत। जागरण

    केदार दत्त, जागरण देहरादून: उत्तराखंड में गुलदारों की संख्या को लेकर सरसरी आधार पर ही आंकड़े दिए जा रहे हैं। जब तक सही ढंग से गणना नहीं होगी, तब तक गुलदार के हमलों से निबटने को बनने वाली योजनाएं धरातल पर मूर्त रूप नहीं ले पाएंगी।

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    यह भी समझना होगा कि जब गुलदार के साथ ही रहना है तो व्यवहार हमें ही बदलना होगा। वैसे भी गुलदार बहुत चालाक होता है और वह मनुष्य के स्वभाव के अनुरूप रणनीति बदलता है।

    ऐसे में सावधानी और सतर्कता ही इससे बचाव का सबसे बड़ा मूलमंत्र है। गुलदार और बाघों के व्यवहार की गहरी समझ रखने वाले प्रसिद्ध शिकारी लखपत सिंह रावत ने सोमवार को ‘दैनिक जागरण’ की ओर से 'मानव-वन्यजीव संघर्ष: चुनौती और समाधान' विषय पर आयोजित विमर्श में यह बातें कहीं।

    उत्तराखंड भले ही वन्यजीवों के संरक्षण में अहम भूमिका निभा रहा है। लेकिन, यह भी सोलह आने सच है कि यही वन्यजीव अब आमजन के लिए जान के खतरे का सबब बन गए हैं। आंकड़े गवाह हैं कि वर्ष 2000 से अब तक 1264 लोग वन्यजीवों के हमले में मारे गए और 6516 घायल हुए हैं।

    विशेषकर गुलदारों ने दिन का चैन और रातों की नींद उड़ाई हुई है। इन दिनों भी राज्य के तमाम क्षेत्रों में गुलदार और भालू के हमलों ने आमजन को बेचैन किया हुआ है। राज्य में निरंतर गहराते मानव-वन्यजीव संघर्ष की चुनौती और इसके समाधान विषय पर हुए जागरण विमर्श में प्रसिद्ध शिकारी लखपत सिंह रावत बतौर विशेषज्ञ वर्चुअली जुड़े।

    रावत ने कहा कि वर्तमान में जैसा परिदृश्य है, वह इसी तरफ इशारा करता है कि राज्य में गुलदारों की संख्या अत्यधिक बढ़ गई है। पहाड़ में इनकी संख्या पर प्राकृतिक रूप से नियंत्रण करने वाले सियार लगभग सिमट से गए हैं।

    पशुधन भी बहुत कम हो गया है। गांव खाली होने और खेत-खलिहानों के बंजर होने से वहां उगा झाड़-झिंकाड़ गुलदार के छिपने के अड्डे बन रहे हैं। ऐसे में यदि हमने बचाव के तौर-तरीके सीख लिए तो मनुष्य भी सुरक्षित रहेगा और गुलदार भी। इसलिए गुलदार से बचाव का विषय स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा होना चाहिए।

    मनुष्य से चार गुना ज्यादा चालाक होता है गुलदार

    अपने अनुभव साझा करते हुए रावत ने कहा कि गुलदार मनुष्य से चार गुना अधिक चालाक होता है। वर्ष 2002 के आदिबदरी क्षेत्र का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वहां लोग वाद्य यंत्र बजाकर गुलदार भगाते थे। बाद में गुलदार तब आने लगा, जब वाद्य यंत्र बजता था।

    इसी क्रम में गुलदार ने विवाह के दौरान दो व्यक्तियों पर हमले किए। इसी प्रकार डीडीहाट में वर्ष 2010 से 2014 के बीच गुलदार ने केवल उन व्यक्तियों को निशाना बनाया, जो रात में शराब के नशे में घर पहुंचते थे।

    उसने एक-एक कर ऐसे 16 व्यक्तियों की जान ली। यही नहीं, आदमखोर होने पर गुलदार मीलों की दूरी तय कर अलग-अलग जगह हमले कर भ्रमित भी करता है।

    छह किमी दूर से मांस की गंध सूंघ लेता है भालू

    गुलदार के साथ ही पहाड़ में इन दिनों भालू के बढ़ते हमलों ने भी नींद उड़ाई हुई है। शिकारी लखपत सिंह रावत ने कहा कि इस बार वर्षा अधिक अवधि तक हुई, जिस कारण मक्का समेत अन्य फसलें देरी से पकीं।

    वर्षाकाल में जंगलों में भालू के लिए खाने को कुछ नहीं होता। ऐसे में वह मक्का व अन्य फसलें खाने को आबादी की ओर आ रहा है। सड़े-गले मांस, शहद व मक्का आदि की गंध भालू छह किमी दूर से ही सूंघ लेता है।

    अक्टूबर में भंकोर फल पकने पर भालू जंगल की तरफ लौट जाता है, लेकिन उसे मांस का चस्का भी लग चुका है। ऐसे में भालू को लेकर भी बेहद सतर्कता बरतने की जरूरत है।

    लखपत ने सुझाये उपाय

    • राज्य में गुलदारों की संख्या का सही आकलन करने को गंभीरता से हो इनकी गणना।
    • जिन क्षेत्रों में घनत्व अधिक, वहां से इन्हें रेस्क्यू सेंटर या अन्य क्षेत्रों में करें शिफ्ट।
    • गुलदार संग रहना सीखना होगा, महिलाओं, युवाओं व बच्चों को हो गुलदार के व्यवहार की जानकारी।
    • गांव में जंगल के रास्ते पर पड़ने वाले पहले और अंतिम घर में बरती जाए विशेष सावधानी।
    • शाम छह से आठ बजे के बीच अधिक सतर्कता की जरूरत, बच्चों को न रखें घर से बाहर।
    • जंगल में चारा पत्ती लेने समूह में जाएं, पक्षियों के व्यवहार में अचानक बदलाव दिखने पर हो जाएं सतर्क।
    • खेतों में कार्य करते समय बारी-बारी एक महिला करे निगरानी, सिर के पीछे तरफ लगाएं मुखौटा।
    • स्कूली शिक्षा में अनिवार्य रूप से पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए गुलदार से बचाव का पाठ।

    राज्य में वन्यजीवों के हमले

    वन्यजीव मृतक घायल
    गुलदार 546 2126
    हाथी 230 234
    बाघ 106 134
    भालू 71 2009
    सांप 260 1056
    जंगली सूअर 30 663
    बंदर-लंगूर 00 211
    मगरमच्छ 09 44
    ततैया 10 16
    अन्य 02 23

    (विभागीय आंकड़ों में जनवरी 2000 से 17 नवंबर 2025 तक की स्थिति)