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    आपदा के बाद धराली की हर रात होती है डरावनी, अंधेरे के सन्नाटे में भयावह हो जाता है लहरों का शोर; जागरण की टीम का अनुभव

    Updated: Tue, 12 Aug 2025 09:51 AM (IST)

    उत्तरकाशी के धराली कस्बे में कभी पर्यटकों की रौनक थी पर अब वहां सन्नाटा है। भागीरथी और खीरगंगा के उफान का शोर अंधेरे में और भी डरावना लगता है। पांच अगस्त के सैलाब के बाद धराली की हर रात खौफ में डूबी रहती है। शाम होते ही सन्नाटा छा जाता है मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं ठप हो जाती हैं और बिजली भी चली जाती है।

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    सुबह धराली का नजारा कुछ इस तरह होता है। जागरण

    शैलेंद्र गोदियाल, धराली (उत्तरकाशी)। जिस धराली कस्बे में कभी चारधाम यात्रियों और पर्यटकों की हंसी-खुशी और रौनक रहती थी, आज वहां सन्नाटा पसरा है। यहां चहल-पहल, रोशनी और यात्रियों के कदमों की आहट की जगह अब सिर्फ भागीरथी और खीरगंगा के उफान का शोर सुनाई देता है। एक ऐसा शोर, जो अंधेरे में और भी डरावना हो जाता है। पांच अगस्त के सैलाब के बाद धराली की हर रात खौफ और खामोशी में डूबी है।

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    रविवार की शाम हमारी टीम धराली पहुंची। सैलाब से बाल-बाल बचे राजेश पंवार के होटल को ठौर बनाया। अंधेरा घिरने के कारण खोज एवं बचाव दल और मजदूर अपने-अपने डेरों की ओर लौट गए।

    मलबे में तब्दील धराली में शाम सात बजे ही सन्नाटा छा गया। आठ बजे तक सामूहिक रसोइयों में भोजन का काम निपट चुका था। गिने-चुने घरों में ही बल्ब टिमटिमा रहे थे, जबकि पहले यहां आधी रात तक भी होटलों की रोशनी और चारधाम यात्रियों की आवाजाही रहती थी।

    इस खामोशी में भागीरथी और खीरगंगा का उफान और भी डरावना लग रहा था। रात साढ़े नौ बजे मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं ठप हो गईं, और थोड़ी देर बाद बिजली भी चली गई। पूरी रात भागीरथी का शोर कानों में गूंजता रहा, जिससे नींद बार-बार टूटती रही।

    सुबह होते ही सामूहिक रसोई में चाय-पानी की हलचल शुरू हुई। बाहर झांकने पर देखा तो मलबे के ऊपर कोहरे की चादर पसरी है और सिर्फ भागीरथी की गरजती ध्वनि सुनाई दी। धीरे-धीरे धूप मुखवा होते हुए धराली में आई और कोहरा छंटने लगा।

    सेना, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें अपने-अपने बचाव उपकरणों के साथ मलबे पर जुट गईं। कुछ ही देर में बुलडोजरों की गूंज ने रात के सन्नाटे को तोड़ दिया। सामूहिक रसोई, राहत शिविरों के पास गतिविधियां बढ़ीं और स्वास्थ्य कैंप में डाक्टर मरीजों के इंतजार में दिखे।

    सोमेश्वर देवता मंदिर परिसर में घर, होटल और सेब के बाग खो चुकी महिलाओं की सिसकियां और सूनी आंखें त्रासदी का बयान कर रही थीं, लेकिन भागीरथी के शोर में उनकी सिसकियां भी कहीं दब रही थीं।

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