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    कैसे और कहां बनते हैं तारे? इस रहस्‍य के नजदीक पहुंचे वैज्ञानिक, अब खुलेगा आकाशगंगा में फैली परतों का राज

    Updated: Sun, 26 Oct 2025 06:30 PM (IST)

    वैज्ञानिकों ने मिल्की वे आकाशगंगा में फैली धूल और गैस का मानचित्र तैयार किया है। इस खोज से पता चला है कि धूल की परतें आकाशगंगा को ढके हुए हैं और नए तारों के जन्मस्थान का खुलासा करती हैं। एरीज के वैज्ञानिकों ने छह हजार से अधिक तारों के समूह का डेटा एकत्र करके यह मानचित्र बनाया है। यह खोज मिल्की वे में तारों के निर्माण स्थलों को समझने में मदद करेगी।

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    नए तारों के जन्म का स्थान का पता बताती है आकाशगंगा को ढकी हुई परतें।

    रमेश चंद्रा, नैनीताल। हमारी धरती ही नहीं बल्कि हमारी आकाशगंगा मिल्की वे भी धूल और गैस से घिरी हुई है, अंतर सिर्फ इतना है कि पृथ्वी की धूल गैस वातावरण को दूषित करती है और ब्रह्मांड में फैली धूल और गैस तारों और ग्रहों को जन्म देती है। अब एरीज के विज्ञानियों ने हमारी मिल्की वे यानी आकाशगंगा में फैली धूल और गैस का पहली बार मानचित्र तैयार कर धूल की परतों का खुलासा किया है, जो न केवल हमारी आकाशगंगा को ढके हुए है, बल्कि उनके पीछे नए तारों के जन्म का स्थान का पता बताती है।

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    आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के विज्ञानी डा योगेश चंद्र जोशी के नेतृत्व में हुए शोध से पता चला है कि मिल्की वे में धूल और गैस का बड़ा दायरा फैला हुआ है, जो न केवल तारों से आने वाले प्रकाश को धुंधला बनाती है। जिस कारण तारे लाल रंग के नजर आते हैं। मिल्की वे में छाई धूल का पहली बार एरीज के विज्ञानियों ने मानचित्र बनाया है। यह धूल बड़ी मात्रा में हमारी आकाशगंगा के केंद्र में छाई हुई है, जबकि केंद्र के दोनों छोरों में आगे बढ़ती हुई धूल की परत पतली होती जाती है।

    इससे पता चलता है कि धूल और गैस के पीछे तारों का निर्माण का जन्म स्थल है। शोध में विज्ञानियों ने दुनिया के तमाम देशों की स्पेस एजेंसियों से छः हजार से अधिक क्लस्टर (तारों का समूह) का डाटा एकत्र किया और जब उन्हें जोड़कर देखा तो धूल और गैस से भरी हमारी आकाशगंगा के वास्तविकता की जानकारी सामने आई। ये क्लस्टर ज्यादातर गैलेक्टिक तल के पास स्थित हैं, जहां अंतरतारकीय पदार्थ मुख्य रूप से केंद्रित होता है और तारों का निर्माण होता है।

    क्लस्टर धूल के वितरण को मापने के लिए विश्वसनीय संकेत के रूप में कार्य करते हैं और धूल तारों के प्रकाश को प्रकाश को अवशोषित करती हैं साथ ही प्रकाश को मंद कर देती है। डा योगेश चंद्र जोशी के बताया कि यह धूल समान रूप से वितरित नहीं है और एक पतली लहरदार परत बनाती है जो आकाशगंगा के केंद्रीय तल के साथ पूरी तरह से संरेखित नहीं है और मिल्की वे के डिस्क के नीचे स्थित है।

    लालिमा लिए इस तल को रेडनिंग प्लेन नाम से जानते हैं। धूल का सबसे अधिक घनत्व मिल्की वे के गैलेक्टिक देशांतर 41 डिग्री की दिशा में पाया गया, जबकि सबसे कम 221 डिग्री के आसपास वाला क्षेत्र है। दिलचस्प बात यह है कि सूर्य धूल की यह परत सूर्य से लगभग 50 प्रकाश वर्ष ऊपर स्थित है।

    अनेक श्रोत हैं ब्रह्मांड में धूल की उत्पत्ति

    नैनीताल: अंतरिक्ष में धूल और गैस की उत्पत्ति के अनेकों श्रोत हैं, जो मुख्यतः सुपरनोवा विस्फोटों यानी तारों के अंत के दौरान होने वाले विस्फोट से पैदा होती है। इसके अलावा धूमकेतुओं और क्षुद्रग्रहों के टकराव से उत्पन्न होती है और नए तारों के निर्माण की प्रक्रियाओं से उत्पत्ति होती है। यह निहारिका के रूप में धूल और गैस से विशाल बादल बनते हैं और इन्हीं नीहारिकाओं में तारों और ग्रहों का जन्म होता है।

    बड़ी उपलब्धि है यह खोज

    नैनीताल: एरीज के निदेशक डा मनीष नाजा का कहना है कि यह बड़ी खोज है, जो हमारी मिल्की वे में तारों के निर्माण के स्थान का पता बताती हैं। धूल भरे मिल्की वे के मानचित्र से भविष्य में हमारी आकाशगंगा में तारों के निर्माण स्थल की जानकारी जुटाना आसान हो जाएगा। हालही में एरीज ने पहली बार जुड़वा ब्लैक होल का पता लगाया था और अब मिल्की वे की धूल का मानचित्र बनाकर एरीज के विज्ञानियों ने खगोल विज्ञान को नई दिशा दी है।