उत्तराखंड का यह हिल स्टेशन कुदरत का अनूठा उपहार, दिखता है बर्फ से ढकी चोटियों की 200 मील लंबी शृंखला का नजारा
Uttarakhand Tourism पौड़ी उत्तराखंड का एक खूबसूरत हिल स्टेशन है जो हिमालय के मनोरम दृश्यों के लिए जाना जाता है। समुद्रतल से 5500 से 8000 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस शहर से नंदा देवी नीलकंठ कैलास बंदरपूंछ भागीरथी गंगोत्री ग्रुप जौली यमुनोत्री केदारनाथ भृगुपंथ खरचा सुमेरु कुमलिंग हाथी पर्वत नंदा घुंटी चौखंभा त्रिशूल आदि हिमशिखरों का मनमोहक नजारा देखते ही बनता है।

दिनेश कुकरेती, जागरण देहरादून। Uttarakhand Tourism: देवभूमि उत्तराखंड के पौड़ी से आप हिमाच्छादित शिखरों की लगभग 200 मील लंबी शृंखला को सहजता से निहार सकते हैं। समुद्रतल से 5,500 से 8,000 फीट तक की ऊंचाई पर स्थित पौड़ी नगर एक खूबसूरत हिल स्टेशन होने के साथ गढ़वाल जिला व गढ़वाल मंडल का मुख्यालय भी है।
देवदार, रोडोडेंड्रोन व ओक के घने जंगल के बीच रिज (कंडोलिया पहाड़ी) की उत्तरी ढलान पर स्थित इस नगर से नंदा देवी, नीलकंठ, कैलास, बंदरपूंछ, भागीरथी, गंगोत्री ग्रुप, जौली, यमुनोत्री, केदारनाथ, भृगुपंथ, खरचा, सुमेरु, कुमलिंग, हाथी पर्वत, नंदा घुंटी, चौखंभा, त्रिशूल आदि हिमशिखरों का मनमोहक नजारा देखते ही बनता है। ट्रेकर, पैराग्लाइडिंग के शौकीन और प्रकृति प्रेमियों के लिए भी पौड़ी कुदरत का अनुपम उपहार है।

औपनिवेशिक काल से पर्यटन से जुड़ाव
पौड़ी का पर्यटन से जुड़ाव औपनिवेशिक काल से रहा है। तब गर्मियों में अंग्रेज यहां आराम करने आया करते थे। आजादी के बाद न केवल घरेलू आगंतुकों, बल्कि हिमालय की गोद में रहस्यमय अनुभव तलाशने वाले अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के बीच भी यह नगर लोकप्रिय होता चला लगा।
यह नगर इतिहास, संस्कृति और प्रकृति को जोड़ता है। इतिहास के पन्ने पलटें तो वर्ष 1804 में पूरे गढ़वाल पर गोरखाओं का नियंत्रण हो गया था। उन्होंने यहां 12 वर्ष राज किया। गोरखों के शासन का अंत वर्ष 1815 में तब हुआ, जब अंग्रेजों ने उन्हें पश्चिम में काली नदी तक खदेड़ दिया।

गोरखाओं की हार के बाद 21 अप्रैल 1815 को अंग्रेजों ने गढ़वाल राज्य का आधा हिस्सा, जो अलकनंदा और मंदाकिनी नदी के पूर्व में स्थित है, अपने नियंत्रण में ले लिया। इसे ब्रिटिश गढ़वाल कहा गया। पश्चिम में गढ़वाल का शेष भाग, जो राजा सुदर्शन शाह के पास रहा, वह टिहरी रियासत कहलाया।
प्रमुख पर्यटन व तीर्थ स्थल
- रांसी स्टेडियम: देवदार और बांज के जंगल के बीच समुद्रतल से 7,000 फीट की ऊंचाई पर नगर के केंद्र से 2.5 किमी की दूरी पर स्थित है रांसी स्टेडियम। इसे एशिया के दूसरे सबसे ऊंचे स्टेडियम का दर्जा हासिल है।
- कंडोलिया देवता मंदिर: ओक और पाइन के घने जंगल के बीच शांत वातावरण में 5,500 फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित कंडोलिया देवता का मंदिर नगर के केंद्र से महज दो किमी के फासले पर है।
- नागदेव मंदिर: यह मंदिर पौड़ी-बुबाखाल रोड पर नगर के केंद्र से पांच किमी दूर देवदार और रोडोडेंड्रोन के घने जंगल के बीच स्थित है। मंदिर के रास्ते में एक वेधशाला स्थापित की गई है।
- चौखंभा व्यू प्वाइंट: नगर के केंद्र से चार किमी की दूरी पर स्थित इस स्थल से मंत्रमुग्ध कर देने वाले ग्लेशियर देखे जा सकते हैं। रोडोडेंड्रोन और ओक के जंगल का घना आवरण इस जगह का मुख्य आकर्षण है।
- कंकालेश्वर (क्यूंकालेश्वर) महादेव मंदिर: नगर के केंद्र से दो किमी दूर 6,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर आठवीं सदी का बताया जाता है।
- गगवाड़स्यूं घाटी: कंडोलिया की पहाड़ी से सटी गगवाड़ास्यूं घाटी करीब तीन वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैली हुई है। 12 वर्ष के अंतराल में लगने वाला मौरी मेला इस घाटी को विशिष्टता प्रदान करता है।
- झंडीधार: यह इस नगर का सर्वोच्च शिखर है जोकि समुद्रतल से लगभग 8,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।

कब आएं?
- आप पौड़ी में बर्फ से लदी पहाड़ियां देखना चाहते हैं तो सर्दियों में आएं और हरियाली देखने के इच्छुक हैं तो गर्मियों का समय अच्छा रहेगा।
- वैसे मार्च से नवंबर तक पौड़ी में खुशनुमा मौसम रहता है, जबकि शीतकाल में जोरदार ठंड पड़ती है।
- खाने-ठहरने की यहां कोई दिक्कत नहीं है।
- छोटे-बड़े होटल, लाज व होम स्टे बजट के हिसाब से उपलब्ध हैं।
ऐसे पहुंचें
- जौलीग्रांट स्थित देहरादून एयरपोर्ट पौड़ी से 155 किमी की दूरी पर है।
- कोटद्वार निकटतम रेलवे स्टेशन है, जहां से पौड़ी की दूरी 105 किमी है।
- ऋषिकेश से भी सीधे पौड़ी पहुंचा जा सकता है।

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