उत्तराखंड में पहाड़ी पर पड़ी बड़ी दरारें, ऋषिकेश से कट सकता है बदरीनाथ-केदारनाथ धाम सहित गढ़वाल का बड़ा हिस्सा
ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित तोताघाटी की पहाड़ी पर बड़ी दरारें पाई गई हैं जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि दरारों का आकार बढ़ता है तो पहाड़ी का एक हिस्सा खिसक सकता है जिससे बदरीनाथ और केदारनाथ सहित गढ़वाल क्षेत्र का ऋषिकेश से संपर्क कट सकता है। एनएचएआई और लोक निर्माण विभाग की टीमें भूगर्भ विज्ञानियों के साथ मिलकर दरारों की निगरानी कर रही हैं।

जागरण संवाददाता, नई टिहरी। ऋषिकेश-बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित तोताघाटी की पहाड़ी पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। यहां कई चट्टानों पर बड़ी बड़ी दरारें देखी गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इन दरारों का आकार बढ़ता है तो पहाड़ी का एक हिस्सा खिसक सकता है।
ऐसा होने पर बदरीनाथ-केदारनाथ धाम सहित गढ़वाल का बड़ा हिस्सा ऋषिकेश से कट जाएगा। इस खतरे के दृष्टिगत नेशनल हाईवे अथारिटी और इंडिया (एनएचएआइ) व लोक निर्माण विभाग (लोनिवि) की तकनीकी टीम भूगर्भीय विज्ञानियों के साथ दरारों की निगरानी कर रही है और जल्द ही इनका दोबारा सर्वे किया जाएगा।
उत्तराखंड के पहाड़ों और उनको आंतरिक संरचनाओं का अध्ययन कर रहे वरिष्ठ भूगर्भ विज्ञानी एवं हेमवती नंदन बहगणणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रौ. महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट के अनुसार, तोताघाटी की चट्टानें चूना पत्थर से बनी हुई हैं। इसमें समय के साथ दरारें पड़ती रहती हैं।
उनकी टीम समय-समय पर ऐसे स्थानों की पहचान कर एनएचएआइ सहित संबंधित विभागों को सूचित करती रही है। प्रो. विष्ट ने बताया कि तोताघाटी की पहाड़ो पर आई दरारें कई सौ मोटर तक गहरी हैं।
यह दशांता है कि खतरा केवल ऊपरी सतह पर नहीं, बल्कि पहाड़ की आंतरिक संरचना में भी समाया हुआ है। बताया कि तोताघाटी की पहाड़ों पर बनी दरारों की संरचना इस तरह की है कि अगर ये दरारें बढ़ती या टूटती हैं तो पहाड़ी का एक हिस्सा खिसक जाएगा। ऐसी स्थिति में ऋषिकेश बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पूरी तरह बंद हो सकता है और पूरे
गढ़वाल को लाइफ लाइन बाधित ही सकती है।
प्रो. बिष्ट ने बताया कि जिस बिंदु पर सड़क तोताघाटी को पार करती है, उससे लगभग 300 मीटर ऊपर पहाड़ी के शीर्ष पर चार बड़ी दरारें हैं। इनकी चौड़ाई ढाई से तीन फीट तक है। इनकी गहराई का अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है। यह दरारें कब से हैं, इसका अभी कोई अनुमान नहीं लगाया जा सका है। इन दरारों की लगातार निगरानी की जा रही है।
उन्होंने बताया कि कम से कम चार माह तक निरंतर निगरानी के बाद ही दरारों की सही स्थिति और उनके व्यवहार का सटीक अनुमान लगाया जा सकेगा। निगरानी से प्राप्त सभी आंकड़ों की विस्तृत रिपोर्ट टीएचडीसी के विशेषज्ञों को भेजी जाएगी। टीएचडीसी के अभियंता और भूगर्भविज्ञानी रिपोर्ट का अध्ययन कर इन दरारों से निपटने के लिए उपाय सुझाए जाएंगे।
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