Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Uttarakhand: न झुके न टूटे, टिहरी जनक्रांति के नायक श्रीदेव सुमन; राजशाही को घुटनों पर लाकर हुए बलिदान

    Updated: Sat, 26 Jul 2025 03:51 PM (IST)

    उत्तराखंड के टिहरी जनक्रांति के नायक श्रीदेव सुमन ने राजशाही से आजादी के लिए 84 दिन की भूख हड़ताल की। कारागार में उन्हें कांच का पाउडर मिली रोटियां दी गईं और 35 सेर वजनी बेड़ियां पहनाई गईं पर वे झुके नहीं। 25 जुलाई 1944 को बलिदान हो गए लेकिन राजशाही को घुटनों पर लाकर टिहरी का भारत में विलय कराया।

    Hero Image
    जिला कारागार परिसर स्थित श्रीदेव सुमन की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते विधायक किशोर उपाध्याय व डीएम नितिका खंडेलवाल। सूचना विभाग

    रजत प्रताप जागरण, नई टिहरी। टिहरी जनक्रांति के नायक श्रीदेव सुमन, जिन्होंने राजशाही से आजादी के लिए 84 दिन तक मुंह में अन्न का दाना नहीं रखा। जिन्हें कांच का पाउडर मिली रोटियां खाने को मजबूर किया गया। जिन्हें कारागार में 35 सेर वजनी बेड़ियां पहनाकर रखा गया, लेकिन वह टूटे नहीं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    सुमन पूरे 209 दिन जेल में रहे, जिनमें 84 दिन की भूख हड़ताल और पांच दिन कोमा के भी शामिल हैं। अपने 28वें जन्मदिन के ठीक दो महीने बाद 25 जुलाई 1944 को सुमन बलिदान हो गाए, लेकिन राजशाही को घुटनों पर लाकर। इसी की बदौलत टिहरी का भारत में विलय संभव हो पाया। इसलिए सुमन आज भी युवा पीढ़ी के नायक हैं।

    टिहरी जिले के चंबा नगर के पास जौल गांव में वैद्य हरिराम बडोनी और तारा देवी के घर 25 मई 1916 को जन्मे सुमन ने मात्र तीन साल की उम्र में पिता को खो दिया था। उनकी प्राथमिक शिक्षा जौल व चंबाखाल में हुई।

    पंजाब विश्वविद्यालय में उन्होंने साहित्य की पढ़ाई की। वर्ष 1938 में सुमन को श्रीनगर में आयोजित राजनीतिक कार्यक्रम में पं. जवाहरलाल नेहरू सहित कई राजनीतिक कार्यकर्ताओं से मिलने का मौका मिला। सौ, उन्होंने गढ़‌वाल के लोगों के लिए अपने प्रयासों को और व्यापक बनाने का निर्णय लिया।

    शुरू की ऐतिहासिक भूख हड़ताल

    आगरा जेल से रिहा होने के बाद 27 दिसंबर 1943 को सुमन ने टिहरी में घुसने का प्रयास किया तो उन्हें चंवा में गिरफ्तार कर टिहरी जेल भेज दिया गया। 31 जनवरी 1944 को उन्हें दो वर्ष कारावास व 200 रुपये जुर्माने की सजा हुई।

    इस पर सुमन ने राजा के सामने प्रजामंडल को पंजीकृत कर उन्हें राज्य के अंदर सेवा करने का भौका देने, उनके विरुद्ध दर्ज झूठे मुकदमे की अपील स्वयं सुनने और उन्हें पत्र-व्यवहार करने की सुविधा देने संबंधी मांगे रखीं।

    साथ ही 15 दिन में मांगें पूरी न होने पर आमरण अनशन की चेतावनी भी दे डाली। इससे बौखलाई राजशाही ने जब अमानवीय यातनाएं दी तो तीन मई 1944 को सुमन ने भूख हड़ताल शुरू कर दी।