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    आपदा ने रोका हर्षिल के सेब का सफर, बागीचों में ही सड़ने की कगार पर पेटियां

    Updated: Fri, 05 Sep 2025 04:54 PM (IST)

    उत्तराखंड में सेब उत्पादक आपदाओं से जूझ रहे हैं। सड़कें बंद होने से सेब मंडियों तक नहीं पहुंच पा रहा है खरीदार भी नहीं पहुंच पा रहे। उत्तरकाशी की हर्षिल घाटी में कई बागानों में सेब सड़ रहे हैं।चकराता में भी अतिवृष्टि से सेब की गुणवत्ता प्रभावित हुई है। कोल्ड स्टोरेज की कमी के कारण किसान कम दामों पर सेब बेचने को मजबूर हैं।

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    कई जगह सेब की पेटियां बागीचों में ही सड़ने की कगार पर हैं। Jagran

    अजय कुमार, जागरण उत्तरकाशी । उत्तराखंड में सेब उत्पादक आपदा की चौतरफा मार से जूझ रहे हैं। सड़कें बंद होने से न तो काश्तकार सेब को मंडी भेज पा रहे हैं, न ठेकेदार व कंपनियां ही उन तक पहुंच पा रही हैं।

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    रसीले सेब के लिए प्रसिद्ध उत्तरकाशी की हर्षिल घाटी में अधिकतर काश्तकारों ने सेब का तुड़ान भी नहीं किया है। क्योंकि, खीरगंगा नदी में आए सैलाब के कारण धराली में कई लोगों के लापता होने से डरे-सहमे श्रमिक घाटी से जा चुके हैं। कई जगह सेब की पेटियां बागीचों में ही सड़ने की कगार पर हैं।

    उत्तराखंड में 25,785 हेक्टेयर क्षेत्र में हर वर्ष लगभग 62,000 मीट्रिक टन सेब पैदा होता है। इसमें सबसे अधिक 20 से 30 हजार मीट्रिक टन सेब उत्तरकाशी जिले में होता है। जिले की हर्षिल घाटी, नौगांव की स्योरी फलपट्टी, पुरोला, मोरी के आराकोट, नैटवाड़ आदि का सेब दिल्ली, कानपुर, चंड़ीगढ़, अहमदाबाद व देहरादून की मंडी तक जाता है।

    रिलाइंस समेत कई बड़ी कंपनियां और सेब कारोबारी भी यहां पहुंचकर सीधे बागवानों से सेब खरीदते हैं, लेकिन हर्षिल-धराली क्षेत्र में पांच अगस्त को आई आपदा के बाद से गंगोत्री-यमुनोत्री हाईवे समेत कई संपर्क मार्ग बंद पड़े हैं और सेब बाहर नहीं जा पा रहा। इससे मायूस अधिकतर काश्तकारों ने सेब का तुड़ान भी शुरू नहीं किया है।

    हर्षिल में 40 से 50 फीसदी ही उत्पादन

    हर्षिल घाटी में सेब की 20 से अधिक किस्में पैदा होती हैं। इस वर्ष सेब उत्पादन 40 से 50 फीसदी तक ही हुआ। सेब की फ्लावरिंग के दौरान ओलावृष्टि से उत्पादन पर असर पड़ा, जिससे उत्पादन में गिरावट आई है। धराली आपदा में भी सेब के कई बागीचे तबाह हो गए।

    हर्षिल के सेब में चटख लाल रंग वाले रायल व हरे रंग वाले गोल्डन डिलिसियस सेब की मांग सबसे ज्यादा है। इसकी 10 किलो की एक पेटी की कीमत 1,000 से 1,500 रुपये तक रहती है। अन्य किस्मों में गाला, रेड चीफ, आर्गन स्पर, सुपर चीफ, हेपका आदि शामिल हैं।

    चौबटिया के सेब पर भी मौसम की मार

    अल्मोड़ा के चौबटिया में इस बार वैसे तो सेब की फसल काफी कम थी। यहां विभिन्न प्रजाति के 25 हजार से अधिक सेब के पेड़ हैं, लेकिन इस बार सेब की फसल पर ओलावृष्टि की भारी भारी मार पड़ी। इस कारण लगभग छह क्विंटल सेब ही बचाया जा सका। ऐसे में यहां का सेब बाहर नहीं जा पाया।

    अतिवृष्टि ने चकराता के सेब की चमक की फीकी

    देहरादून जिले चकराता में करीब 5,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में सेब के बाग हैं। लगातार वर्षा के कारण यहां सेब के पेड़ की पत्तियां गिर गई हैं और सेब का आकार व रंग भी बदल गया है। लगातार नमी के कारण सेब के पेड़ व पत्तियों में फंगल संक्रमण हो रहा है।

    कोल्ड स्टोरेज न होने से बागवान सस्ते दाम पर स्थानीय बाजारों में सेब बेचने को मजबूर हैं। चकराता के ऊंचाई वाले इलाकों में मुख्य रूप से रायल, गोल्डन डेलिशियस और रेड गोल्डन प्रजाति के सेब बागीचे अधिक हैं। पिछले वर्ष की तुलना में इस बार तीन प्रतिशत अधिक सेब की पैदावार हुई है, लेकिन वर्षा के कारण फसल खराब हो गई।

    काश्तकारों की मांग पर सेब की खरीद के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा गया है। हालांकि, खरीद की लंबी प्रक्रिया होती है। प्रस्ताव पर जो भी निर्देश मिलेंगे, उसके अनुसार आगे कार्यवाही की जाएगी।

    - रजनीश सिंह, मुख्य उद्यान अधिकारी, उत्तरकाशी

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