बंगाल में दुर्गापूजा-फुटबॉल और चुनाव: मोटा चंदा, थीम वाले पंडाल और टूर्नामेंट किसकी जीत करेंगे पक्की?
बंगाल में 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले दुर्गापूजा और फुटबॉल राजनीतिक अखाड़ा बन गए हैं। जहां ममता बनर्जी सरकारी अनुदान और बंगाली अस्मिता कार्ड से लोगों को साध रही हैं वहीं भाजपा ने नरेन्द्र कप नाम से फुटबॉल टूर्नामेंट शुरू किया है। दुर्गापूजा पंडालों की थीम भी राजनीतिक संदेश दे रही हैं। इस बार के दुर्गोत्सव और खेल प्रतियोगिताएं आगामी चुनाव की तैयारियों की झलक दे रहे हैं।

जयकृष्ण वाजपेयी, कोलकाता। बंगाल के लोगों के लिए फुटबॉल सिर्फ खेल व दुर्गापूजा केवल त्योहार नहीं है, बल्कि वे इसे धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक उत्सव मानते हैं। फुटबॉल के प्रति तो अलग ही जुनून है। ऐसे में जब चुनाव नजदीक हो तो राजनीतिक दल लोगों के मन-मानस पर व्यापक प्रभाव डालने वाले फुटबॉल और दुर्गापूजा को लेकर राजनीति न करें, यह असंभव है। पिछले विधानसभा चुनाव में ममता का ‘खेला होबे’ नारा और फुटबॉल काफी सफल रहा था, इसलिए इस बार ऐसा न हो, भाजपा यह सुनिश्चित करने के लिए पहले ही मैदान उतर चुकी है।
मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी बांग्लाभाषियों को लेकर बंगाली अस्मिता का कार्ड खेलना शुरू कर चुकी हैं। ऐसे में जब चुनाव से कुछ माह पहले दुर्गापूजा है तो दुर्गोत्सव से ही चुनावी गणित साधने का प्रयास न हो, यह असंभव है।
यही वजह है कि बंगाल के सबसे बड़े त्योहार दुर्गापूजा के आयोजन पर आगामी वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव की छाप साफ झलक रही है। वहीं दूसरी ओर फुटबॉल को लेकर भी राजनीति शुरू है। एक तरफ तृणमूल ‘स्वामी विवेकानंद कप’ तो दूसरी ओर भाजपा ने ‘नरेन्द्र कप’ नाम से टूर्नामेंट शुरू किया है। बताते चलें कि स्वामी विवेकानंद का एक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त भी है।
इस बार दुर्गापूजा में क्या है खास?
बात पहले दुर्गापूजा की। इस बार भी दुर्गापूजा आयोजकों को दिए जाने वाले सरकारी अनुदान से लेकर पूजा की थीम तक पर बहस तेज है। ममता के अनुदान का मामला तो हाई कोर्ट तक पहुंच गया। कोलकाता में 150 से अधिक ऐसी दुर्गापूजा समितियां हैं, जिनका पूजा बजट 50 लाख से लेकर पांच करोड़ रुपये तक है।
वैसे जब भी चुनाव आने वाला होता है तो उससे पहले की दुर्गापूजा में राजनीति हावी रहती है। इस वर्ष भी अपवाद नहीं है। कुछ माह बाद ही विधानसभा चुनाव होना है।
बंगाल में दुर्गापूजा थीम आधारित होती है। राज्य से लेकर देश- विदेश में हुई बड़ी घटनाओं को थीम के रूप में चुना जाता है, लेकिन थीम के चयन में राजनीतिक रंग अधिक होता है, ताकि पंडाल देखने आने वाले लोगों तक संदेश पहुंचाया जा सके।
जिस तरह की थीम पर इस बार पंडाल बनाए जा रहे हैं, उसमें साफ दिख रहा है कि ममता ने भाजपा शासित राज्यों में कथित बांग्लाभाषी प्रवासी मजदूरों के उत्पीड़न का जो मुद्दा उठाया है, उसे दर्शाने वाली थीम पर कई पूजा आयोजक अपने पंडाल तैयार कर रहे हैं।
कुछ सार्वजनिक दुर्गापूजा आयोजकों ने बंगाल, बंगाली, बांग्ला भाषा, संस्कृति, बंगालियों की समृद्ध परंपरा और विरासत को अपना थीम चुना है, जिसे अगर ममता की अस्मिता वाले कार्ड का हिस्सा कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। ममता द्वारा 45 हजार से अधिक पूजा कमेटियों को दिए जाने वाले सरकारी अनुदान भी इसी राजनीति के हिस्से के रूप में देखा जाता है।
नकद अनुदान का चलन कब शुरू हुआ?
पूजा आयोजकों को नकद अनुदान देने का यह सिलसिला वर्ष 2018 से शुरू हुआ था। उस समय अगले साल यानी 2019 में लोकसभा चुनाव होने थे। उस साल सरकार ने पूजा समितियों को 10-10 हजार रुपये का अनुदान दिया था जो इस साल बढ़कर 1.10 लाख रुपये हो चुका है। इससे सरकारी खजाने पर करीब पांच सौ करोड़ का बोझ बढ़ा है। सरकारी अनुदान देने में भी ‘हमारा और तुम्हारा’ होने के आरोप लगते रहे हैं।
ममता अनुदान से एक तीर से तीन शिकार करती हैं। पूजा समितियों का अपने इलाके में खासा प्रभाव होता है। उस समिति से तृणमूल के नेता व कार्यकर्ता जुड़े होते हैं, जिससे संगठन के साथ-साथ इलाके के वोटरों पर भी पकड़ मजबूत होती है।
इसके अलावा मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोपों का भी ममता जवाब दे देती हैं। तृणमूल की ओर से इस आरोप को सिरे से खारिज किया जाता रहा है। यह अनुदान बिना किसी भेदभाव के तमाम पंजीकृत समितियों को दिया जाता है।
ममता की दलील है कि सरकारी अनुदान दुर्गापूजा के लिए नहीं बल्कि इसके आयोजन से जुड़े हजारों लोगों के हितों की रक्षा के लिए दिया जाता है।
फुटबॉल से सियासी गोल की तैयारी में टीएमसी और भाजपा
अब बात फुटबॉल की- दुर्गापूजा से पहले बंगाल में फुटबॉल मैच के आयोजन वाली राजनीति भी तेज है। एक तरफ तृणमूल कांग्रेस स्वामी विवेकानंद कप तो दूसरी तरफ भाजपा ने ‘नरेन्द्र कप’ नाम से टूर्नामेंट का आयोजन किया है। भाजपा के लिए यह अवसर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन का है। पीएम मोदी का जन्मदिन 17 सितंबर को है। उससे पहले, नरेन्द्र कप का उद्घाटन हो गया। यह फुटबॉल प्रतियोगिता जिला स्तर पर आयोजित हो रही है।
भाजपा नेता व सांसद तथा इस प्रतियोगिता के लिए गठित समिति के संयोजक ज्योतिर्मय सिंह महतो ने कहा कि इस प्रतियोगिता में 1,300 टीमें भाग ले रही हैं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष शमिक भट्टाचार्य ने दावा किया कि नरेन्द्र कप स्वामी विवेकानंद के नाम पर है, नरेन्द्र मोदी के नाम पर नहीं। उन्होंने कहा कि नरेन्द्र कप उन सभी युवाओं को एकजुट करने के लिए है, जो राष्ट्र के प्रति समर्पित हैं, जैसे विवेकानंद युवाओं के लिए बोलते थे। वहीं तृणमूल ने स्वामी विवेकानंद कप की घोषणा की है।
तृणमूल नेता व खेल मंत्री अरूप बिश्वास के मुताबिक राज्य के 23 जिले इस प्रतियोगिता में शामिल हैं। हर जिले से आठ टीमें खेलेंगी। यह प्रतियोगिता मार्च, 2026 तक चलेगी और कुल 390 मैच होंगे। राजनीतिक मंच पर चुनावी प्रतिस्पर्धा से पहले खेल और दुर्गोत्सव एक अलग तरह की प्रतियोगिता जैसे दिख रहे हैं।
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