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    दुर्लभ खनिज व तेल का पाकिस्तान ने दिखाया सपना, जाल में फंस गए ट्रंप; क्या अफगानिस्तान वाली गलती करने जा रहा अमेरिका?

    Updated: Thu, 28 Aug 2025 08:48 PM (IST)

    पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसिम मुनीर अमेरिकी प्रशासन को पाकिस्तान में दुर्लभ खनिज और तेल निकालने की संभावनाओं के बारे में बता रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन भारत की बजाय पाकिस्तान को तरजीह दे रहा है लेकिन कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह अमेरिका को अफगानिस्तान जैसी मुसीबत में डाल सकता है।

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    अमेरिकी प्रशासन को सब्जबाग दिखाने के मिशन पर पाकिस्तान (फोटो: रॉयटर्स)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर आजकल अमेरिकी प्रशासन को सब्जबाग दिखाने के मिशन पर हैं। अपने देश में अमेरिका के लिए दुर्लभ खनिज और तेल निकालने की संभावनाओं का बखान करने में वह सफल भी रहे हैं और डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन भारत की बजाय पाकिस्तान को तरजीह दे रहा है।

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    उनका मानना है कि पाकिस्तान दुर्लभ खनिज और तेल का स्त्रोत हो सकता है। लेकिन, राष्ट्रपति की यह कोशिश अमेरिका को फिर से अफगानिस्तान जैसी मुसीबत में धकेल सकती हैं जहां से वह बड़ी मुश्किल से बाहर निकला है। जाने-माने भू-राजनीतिक विशेषज्ञ सर्जियो रेस्टेली ने अपने एक लेख में इस आशय का दावा किया है।

    गंभीर स्थानीय संघर्ष में उलझ सकता है वाशिंगटन

    इजरायल के एक प्रतिष्ठित दैनिक में प्रकाशित लेख में कहा गया है। मुनीर अब खनिज एवं तेल निकालने के लिए अमेरिका के साथ एक समझौता करने हेतु ट्रंप प्रशासन के सीधे संपर्क में हैं। इसमें अमेरिका की भागीदारी स्थानीय आबादी को और अलग-थलग कर सकती है और वाशिंगटन को एक गंभीर स्थानीय संघर्ष में उलझा सकती है।

    बलूचिस्तान, वजीरिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा में चुनौतीपूर्ण हालात लेख के अनुसार, 'ट्रंप का मानना है कि पाकिस्तान दुर्लभ खनिज और तेल का स्त्रोत हो सकता है, लेकिन अमेरिकी प्रशासन ने राष्ट्रपति की ब्रीफिंग से यह बात बाहर रखने का फैसला किया है कि बलूचिस्तान, वजीरिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा जैसे क्षेत्रों में खनिज एवं तेल निकालना कितना मुश्किल या असंभव होगा क्योंकि ये क्षेत्र पाकिस्तानी सेना के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण क्षेत्र हैं। यहां चीन भी लगभग हार मान चुका है जिसकी भूमिका के कारण अमेरिका को अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा था।'

    जातीय व राजनीतिक अशांति का केंद्र रहा है बलूचिस्तान

    लेख में कहा गया है कि अगर अमेरिकी राष्ट्रपति अपने तय रास्ते पर यूं ही चलते रहे तो वह अमेरिका को उन्हीं अशांत क्षेत्रों में वापस ले जाएंगे जिन्हें जो बाइडन ने ट्रंप द्वारा किए गए दोहा समझौते का हवाला देते हुए छोड़ दिया था। अन्य विश्लेषकों ने भी इस बात पर प्रकाश डाला है कि बलूचिस्तान लंबे समय से जातीय और राजनीतिक अशांति का केंद्र रहा है, जो 'विदेशी ताकतों द्वारा शोषण की धारणाओं से' और भी बढ़ गया है।

    चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में चीन की उपस्थिति से यहां पहले ही असंतोष चरम पर है। खनिज संपदा में समृद्ध, फिर भी अविकसित प्रांत रेस्टेली इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि चूंकि खैबर पख्तूनख्वा में संगमरमर, ग्रेनाइट, रत्न, क्रोमाइट और तांबे के विशाल भंडार हैं, इसलिए इस प्रांत का विकास होना चाहिए। लेकिन, इसकी प्राकृतिक संपदा का व्यवस्थित रूप से दोहन किया जा रहा है।

    बलूचिस्तान की भी स्थिति कमोवेश यही है। तांबा, सोना, कोयला और दुर्लभ खनिज सहित अपार खनिज संपदा से संपन्न होने के बावजूद यह देश का सबसे दरिद्र और अविकसित प्रांत बना हुआ है।

    (न्यूज एजेंसी आईएएनएस के इनपुट के साथ)

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