राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार हुए बांग्लादेश SC के पूर्व चीफ जस्टिस, जानिए शेख हसीना से क्या है कनेक्शन
बांग्लादेश के पूर्व न्यायाधीश एबीएम खैरुल हक को ढाका पुलिस ने गिरफ्तार किया है। उन पर राजद्रोह समेत तीन आपराधिक मामले दर्ज हैं। 2011 में कैयरटेकर सरकार की व्यवस्था को असंवैधानिक करार देने के कारण वे चर्चा में आए थे। पुलिस के अनुसार उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई जारी है। अगस्त 2024 में स्टूडेंट अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन नामक आंदोलन के बाद उन पर ये केस दर्ज हुए थे।

पीटीआई, ढाका। बांग्लादेश के पूर्व न्यायाधीश एबीएम खैरुल हक को ढाका पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। हक पर राजद्रोह समेत तीन आपराधिक मामलों में केस दर्ज हैं। 2010 से 2011 के बीच वे बांग्लादेश के 19वें चीफ जस्टिस रहे थे।
खैरुल हक को खासतौर पर 2011 के उस फैसले के लिए जाना जाता है जिसमें उन्होंने 'कैयरटेकर सरकार' की व्यवस्था को असंवैधानिक करार दिया था। उन्हें ढाका के धानमंडी में उनके घर से डेटेक्टिव ब्रांच (DB) की टीम ने पकड़ा है।
खैरुल हक पर तीन केस हैं दर्ज
ढाका मेट्रोपोलिटन पुलिस के डिप्टी कमिश्नर तालेबुर रहमान ने बताया कि हक के खिलाफ तीन केस दर्ज हैं और उन पर कानूनी कार्रवाई जारी है। संभावना है कि उन्हें कम से कम एक केस में गिरफ्तार दिखाकर कोर्ट में पेश किया जाएगा।
हक पर इन केसों की शुरुआत अगस्त 2024 में हुई, जब प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को स्टूडेंट अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन (SAD) नामक आंदोलन ने हिंसक प्रदर्शन कर सत्ता से बाहर कर दिया।
उस समय खैरुल हक लॉ कमिशन के चेयरमैन थे और उन्होंने 13 अगस्त को इस्तीफा दे दिया था। वे शेख हसीने की सरकार के दौरान अपने पद पर कार्यरत थे।
कब-कब मामला हुआ दर्ज?
हक पर पहला मामला ढाका में दर्ज हुआ था, जिसमें उन पर धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े का आरोप लगा है। कहा गया है कि उन्होंने 13वें संविधान संशोधन (कैयरटेकर सरकार सिस्टम) को असंवैधानिक ठहराने वाले फैसले को गुपचुप तरीके से बदला था।
इसके एक हफ्ते के बाद, हक पर नारायणगंज में इसी मुद्दे पर एक और केस दर्ज किया गया था। तीसरा मामला भी अगस्त में ही एक अन्य वकील ने ढाका में दर्ज कराया था, जिसमें भ्रष्टाचार और गलत तरीके से फैसले देने का आरोप लगाया गया है।
2011 में खैरुल हक ने कैयरटेकर सरकार सिस्टम को खत्म किया था, इसके बाद विवाद बढ़ गया था। फैसले में कहा गया था कि यह व्यवस्था संविधान की भावना के खिलाफ है। हालांकि, उसी फैसले में दो आगामी चुनावों को कैयरटेकर सिस्टम के तहत करवाने की छूट दी गई थी।
विशेषज्ञों ने की आलोचना
इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने पास किया था। इसमें तीन जज फैसले के खिलाफ थे, तीन समर्थन में थे और खैरुल हक ने निर्णायक वोट डाला था। कुछ विशेषज्ञों ने इस फैसले की आलोचना की थी।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले ने बांग्लादेश की लोकतंत्रिक प्रणाली को कमजोर कर दिया, क्योंकि कैयरटेकर सिस्टम चुनावों में निष्पक्षता की गारंटी देता था। 1991, 1996, 2001 और 2008 के चुनाव इसी प्रणाली के तहत हुए थे और उन्हें काफी हद तक निष्पक्ष माना गया था।
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