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    बांग्लादेश का भयावह सीन, हसीना सरकार के पतन के बाद करीब 300 लोगों की हुई मौत; रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

    Updated: Sun, 02 Nov 2025 09:45 PM (IST)

    ढाका स्थित मानवाधिकार संगठन ओधिकार की रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त 2024 से सितंबर 2025 तक बांग्लादेश में राजनीतिक हिंसा में लगभग 281 लोगों की जान चली गई। हिंसा तब बढ़ी जब छात्र आंदोलन ने शेख हसीना की सरकार गिरा दी। रिपोर्ट में पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए हैं, जिसमें कहा गया है कि पुलिस राजनीतिक दलों के हित साधने के लिए इस्तेमाल की गई।

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    हसीने सरकार के पतन के बाद करीब 300 लोगों की हुई मौत (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ढाका स्थित मानवाधिकार संगठन ओधिकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगस्त 2024 से सितंबर 2025 तक बांग्लादेश में राजनीतिक हिंसा में कम से कम 281 लोगों की जान चली गई है। यह हिंसा उन घटनाओं के बाद बढ़ी, जब छात्र-नेतृत्व वाले आंदोलन ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की 15 साल पुरानी सरकार को गिरा दिया था। शेख हसीना इसके बाद भारत आ गई थीं।

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    रिपोर्ट में बताया गया है कि इन 281 मौतों के अलावा 40 लोग पुलिस की कथित मुठभेड़ों में मारे गए, जबकि 153 लोगों की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी। ओधिकार के निदेशक ए.एस.एम.नसीरुद्दीन इलान ने कहा कि हसीना सरकार के पतन के बाद मानवाधिकार स्थिति में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन कानून लागू करने वाली एजेंसियों की जवाबदेही अब भी नहीं है।

    किन लोगों को बनाया गया निशाना?

    उन्होंने कहा, "अब वैसे फर्जी मुठभेड़ या जबरन गायब करने की घटनाएं तो नहीं दिखीं, जैसी हसीना के शासन में थी लेकिन हिरासत में मौतें, रिश्वतखोरी और पीड़ितों के साथ दुर्व्यवहार अब भी जारी हैं।"

    इलान के मुताबिक, कई निर्दोष लोग सिर्फ शेख हसीना की पार्टी ‘आवामी लीग’ से जुड़े होने के शक में हिंसा के शिकार बने। रिपोर्ट में कहा गया है कि राजनीतिक दलों ने लोगों से उगाही भी की है, चाहे उनकी आर्थिक या सामाजिक स्थिति कुछ भी रही हो।

    इनमें बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) जो फरवरी 2026 के चुनावों की प्रमुख दावेदार है और एंटी-डिस्क्रिमिनेशन स्टूडेंट मूवमेंट (जिसने हसीना विरोधी आंदोलन शुरू किया था)दोनों शामिल हैं। रिपोर्ट में जमात-ए-इस्लामी, जो देश की सबसे बड़ी इस्लामिक पार्टी है उसका भी नाम उगाही के मामलों में आया है।

    पुलिस की भूमिका पर सवाल

    ओधिकार की रिपोर्ट में कहा गया है कि भीड़ हिंसा के कई मामले पुलिस की नाकामी और निष्क्रियता के कारण हुए। रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस को राजनीतिक दलों के हित साधने के लिए इस्तेमाल किया गया और उन्हें दंड से छूट मिली। इससे उन्होंने विपक्षी कार्यकर्ताओं की हत्या और यातना की। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि शेख हसीना के सत्ता छोड़ने के बाद पुलिस तंत्र कमजोर और मनोबलहीन हो गया।

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