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    सूडान में आरएसएफ के कब्जे के बाद हालात बिगड़े, जान बचाने के लिए शहर छोड़कर भाग रहे हजारों लोग

    Updated: Fri, 07 Nov 2025 12:21 AM (IST)

    सूडान के अलफाशिर में अर्द्धसैनिक बल, रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (आरएसएफ) का कब्जा हो गया है। कब्जे के बाद लोग जान बचाने के लिए शहर छोड़कर भाग रहे हैं। कुछ बच्चे जान बचाकर उत्तरी दारफुर स्थित नार्वे शरणार्थी परिषद के शिविर में पहुंचे।

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    सूडान में जान बचाने के लिए शहर छोड़कर भाग रहे हजारों लोग (फोटो- रॉयटर)

    रॉयटर, जेनेवा। सूडान के अल फाशिर में अर्द्धसैनिक बल, रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (आरएसएफ) का कब्जा हो गया है। कब्जे के बाद लोग जान बचाने के लिए शहर छोड़कर भाग रहे हैं। कुछ बच्चे जान बचाकर उत्तरी दारफुर स्थित नार्वे शरणार्थी परिषद के शिविर में पहुंचे।

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    संस्था ने बताया कि वे इस कदर प्यासे थे कि बोल भी नहीं पा रहे थे। उनमें कुपोषण की ऐसी स्थिति थी कि इलाज से भी उनके बचने की संभावना नहीं है। कुछ लोगों ने बताया कि वे जानवरों का मल खाकर और बारिश का पानी पीकर जिंदा थे। लोग दारफुर के सबसे बड़े शहर, ताविला, की तरफ भाग रहे हैं।

    भुखमरी को युद्ध के हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। आरएसएफ के कब्जे के बाद 82 हजार लोग अल फाशिर से भाग निकले हैं, जबकि दस हजार लोग ताविला पहुंच गए हैं। इस शहर में पहले से छह लाख लोग शिविरों में रह रहे हैं। वहीं दो लाख लोग अब भी अल फाशिर में फंसे बताए जा रहे हैं।

    बता दें कि सूडान में ढाई साल से गृह युद्ध छिड़ा हुआ है। दारफुर में सूडानी सेना के आखिरी गढ़ अल फाशिर पर अर्द्धसैनिक बल, रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (आरएसएफ), ने कब्जा कर लिया। इसे बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। अल फाशिर की जीत के बाद अर्द्धसैनिक समूह के पास देश के चौथाई हिस्से का कब्जा हासिल हो गया है। इसके बाद समूह ने मानवीय आधार पर युद्धविराम के प्रस्ताव पर सहमति जताई है।

    सूडान में गंभीर हालात पर यूएन बुलाएगा आपातकालीन सत्र

    संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने सूडान के अल फाशिर शहर पर अर्द्धसैनिक बलों के कब्जे के दौरान बड़े पैमाने पर हुई हत्याओं पर गंभीर चिंता जताई है और वहां की स्थिति पर एक आपातकालीन सत्र आयोजित करने का फैसला किया है।

    आपात सत्र 14 नवंबर को बुलाया जाएगा। इसके लिए ब्रिटेन, आयरलैंड, जर्मनी, नीदरलैंड्स और नार्वे के प्रस्ताव को 50 देशों ने समर्थन दिया। प्रस्ताव को पास करने के लिए एक तिहाई सदस्यों की सहमति जरूरी थी। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने बताया कि अल फाशिर पर कब्जे की लड़ाई के दौरान सैकड़ों आम नागरिक और निशस्त्र लड़ाके मारे गए होंगे।