पाकिस्तान में हिंदू छात्रों पर धर्म परिवर्तन का दबाव, हिंसा और भेदभाव झेल रहे बच्चे; रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे
पाकिस्तान में हिन्दू और ईसाई बच्चों को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जा रहा है। बाल अधिकार राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट के अनुसार अल्पसंख्यक बच्चों को भेदभाव और शोषण का सामना करना पड़ रहा है। पंजाब में स्थिति गंभीर है जहाँ हिंसा के 40% मामले सामने आए हैं। स्कूलों में भी बच्चों को सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

एएनआई, इस्लामाबाद। पाकिस्तान में हि्ंदू और ईसाई बच्चों पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डाला जा रहा है। इसके अलावा अल्पसंख्यक बच्चों को जीवन के हर स्तर पर भेदभाव और शोषण का सामना करना पड़ रहा है। पाकिस्तान के बाल अधिकार राष्ट्रीय आयोग (एनसीआरसी) की एक रिपोर्ट में बच्चों के साथ व्यवस्थागत पूर्वाग्रह, संस्थागत उपेक्षा और लक्षित दुर्व्यवहार के बढ़ते मामलों को देखते हुए सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की गई है।
क्रिश्चियन डेली में छपी रिपोर्ट में कहा गया है कि अल्पसंख्यक बच्चों के सामने बंधुआ बाल मजदूरी, बाल विवाह और जबरन धर्म परिवर्तन जैसी चुनौतियां हैं। हजारों हिंदू और ईसाई बच्चों को प्रतिदिन इस शोषण के दौर से गुजरना पड़ रहा है। यह कोई कानूनी मामला नहीं है; बल्कि मानवाधिकारों का संकट है।
पंजाब में सबसे भयावह स्थिति
अप्रैल 2023 से दिसंबर 2024 के दौरान एनसीआरसी के पास अल्पसंख्यक बच्चों से जुड़े हत्या, अपहरण, जबरन धर्म परिवर्तन और बाल विवाह की 27 आधिकारिक शिकायतें प्राप्त हुईं। वास्तविक आंकड़े इससे कहीं ज्यादा भयावह हो सकते हैं क्योंकि ऐसी घटना होने पर तमाम परिवार डर की वजह से चुप्पी साध जाते हैं।
आंकड़ों के मुताबिक सबसे भयावह स्थिति पंजाब में है, जहां अल्पसंख्यक बच्चों के साथ हिंसा के 40 प्रतिशत मामले सामने आए। जनवरी 2022 से सितंबर 2024 के बीच 547 ईसाई, 32 हिंदू, दो अहमदी और दो सिखों के साथ वारदातें हुईं। स्कूलों में भी डर का माहौल अल्पसंख्यक बच्चों को स्कूलों में भी सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक सहपाठियों के साथ-साथ शिक्षक भी उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं।
धर्म के आधार पर उन पर तंज कसना और उन्हें बाकी बच्चों से अलग बैठाने जैसी शिकायतें देखने को मिली हैं। बच्चे न तो कक्षा में आगे बैठ पाते हैं और न ही सवाल पूछ पाते हैं। यहां तक कि एक गिलास से पानी भी नहीं पी सकते हैं। इस मामले पर एनसीआरसी अध्यक्ष आयशा रजा फारूक का कहना है कि इस रिपोर्ट से ऐसी उम्मीद लगाना बेमानी है कि अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए सरकार कोई कदम उठाएगी।
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