प्रकाश सिंह। आज से करीब एक वर्ष पहले पांच अगस्त, 2024 को बांग्लादेश में तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना का तख्ता पलटा गया। छात्र आंदोलन की आंधी में शेख हसीना भाग कर भारत की शरण में आ गईं और अमेरिका के प्रभाव से बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार का गठन हुआ। जबरन सत्ता परिवर्तन में जमाते इस्लामी, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी, हिजबुत तहरीर, हिफाजते इस्लाम जैसे इस्लामिक संगठनों का भी हाथ रहा।

यूनुस सरकार ने जमाते इस्लामी और उसके छात्र संगठन इस्लामी छात्र शिविर पर लगे प्रतिबंध हटा लिए और अवामी लीग को प्रतिबंधित कर दिया गया। जेल में बंद हजारों जिहादियों को छोड़ दिया गया। कई शहरों में ‘इस्लामिक स्टेट’ के झंडे फहराने लगे। अलकायदा से जुड़े अंसारुल्लाह के प्रमुख मुफ्ती जसीमुद्दीन रहमानी के विरुद्ध सारे आरोप वापस ले लिए गए। रहमानी ने एक वायरल हुए वीडियो में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का आवाहन किया कि वे मोदी के शासन से बंगाल को मुक्त कर अपनी स्वतंत्रता घोषित करें। एक कट्टरपंथी नेता सैयद मोहम्मद करीम ने बांग्लादेश में शरिया लागू करने की मांग करते हुए कहा कि देश में तालिबान जैसी हुकूमत होनी चाहिए।

जब 26 सितंबर, 2024 को मोहम्मद यूनुस संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली में शामिल होने के लिए अमेरिका गए थे, तब उनके सम्मान में क्लिंटन ग्लोबल इनिशिएटिव ने एक समारोह का आयोजन किया था। इसमें बिल क्लिंटन ने हिजबुत तहरीर के नेता महफूज आलम की बांग्लादेश में आंदोलन चलाने के लिए मुक्त कंठ से प्रशंसा की थी। हिजबूत एक कट्टर इस्लामी संगठन है, जो संसार भर में खलीफा का साम्राज्य चाहता है। यह संगठन इंग्लैंड, अमेरिका और कई अन्य देशों में प्रतिबंधित है।

बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन का सबसे बड़ा दुष्परिणाम वहां के अल्पसंख्यकों, विशेष तौर से हिंदुओं को भुगतना पड़ रहा है। हत्या, अपहरण, दुष्कर्म के साथ मंदिरों को तोड़े जाने की घटनाएं आम हैं। बांग्लादेश हिंदू बुद्धिस्ट क्रिश्चियन यूनिटी काउंसिल के अनुसार अगस्त 2024 से जून 2025 के बीच अल्पसंख्यकों के विरुद्ध 2,442 हिंसात्मक घटनाएं हुईं। यूनुस सरकार को अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी और उसके प्रमुख नेता बराक ओबामा, बिल एवं हिलेरी क्लिंटन आदि का पूरा समर्थन है। इस कारण एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वाच जैसी संस्थाओं ने अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की घटनाओं का संज्ञान नहीं लिया और कोई रिपोर्ट नहीं छापी। जिन चंद पत्रकारों ने इन घटनाओं पर अपनी आवाज उठाई, वे गिरफ्तार कर लिए गए और उनके खिलाफ फर्जी मुकदमे चलाए गए।

राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस के अनुसार अभी तक 878 पत्रकारों को निशाना बनाया जा चुका है। बांग्लादेश में नया आतंक विरोधी कानून बनाया गया है, जिसके अंतर्गत आवामी लीग की गतिविधियों पर प्रतिबंध रहेगा। बांग्लादेश में सिक्योरिटी आर्डिनेंस भी पास किया गया है। इसका इस्तेमाल सरकार अपने विरुद्ध उठने वाली आवाज को दबाने के लिए कर रही है।

चूंकि यूनुस को योग्य अर्थशास्त्री होने के नाते नोबेल पुरस्कार मिला था, इसलिए लोगों को बहुत आशा थी कि उनके नेतृत्व में बांग्लादेश आर्थिक प्रगति करेगा, परंतु उसकी आर्थिक हालत खस्ता होती जा रही है। जो महंगाई सितंबर 2024 में 9.92 प्रतिशत थी, वह बढ़कर 10.87 प्रतिशत हो गई है। वर्ल्ड बैंक के अनुसार 2025 में बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था मुश्किल से चार प्रतिशत की दर से बढ़ेगी। विदेश से होने वाले निवेश गिरते जा रहे। कपड़ा उद्योग, जो देश की आर्थिकी का आधार था, संकट में चल रहा है। 69 फैक्ट्रियां बंद हो गई हैं और 76,500 कर्मी बेकार हो गए हैं।

शेख हसीना के कार्यकाल में बांग्लादेश और भारत के बीच संबंधों में बराबर सुधार होता रहा। भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों के भारत विरोधी संगठनों के सदस्यों को पहले बांग्लादेश में शरण मिल जाती थी और वे असम, नगालैंड, मणिपुर आदि में हिंसात्मक कार्रवाई करते थे। यह सब शेख हसीना ने बंद कर दिया, परंतु अब मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार का भारत से फासला धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। इसका मुख्य कारण यूनुस सरकार का कट्टरपंथियों से गठजोड़ है। कुछ समय पहले चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान की एक बैठक भी हुई, जिसका उद्देश्य भारत को अलग-थलग करना था। मोहम्मद यूनुस ने चीन को बांग्लादेश में अपना आर्थिक जाल फैलाने का न्योता दे दिया है। उन्होंने कहा कि भारत के सातों उत्तर-पूर्वी राज्यों की समुद्र तक कोई पहुंच नहीं है। ऐसे में चीन को बांग्लादेश में अच्छा बाजार मिलेगा।

चुनाव को लेकर बांग्लादेश में आंतरिक मतभेद हो गए हैं। चूंकि मोहम्मद यूनुस को सत्ता का आनंद मिल रहा है, इसलिए वह अप्रैल 2026 के पहले चुनाव नहीं करना चाहते। आर्मी प्रमुख जनरल वकार ने कहा है कि चुनाव दिसंबर 2025 तक हो जाने चाहिए। इसके बाद भी अनिश्चितता बनी हुई है। वहां चुनाव के बाद जो सरकार बने भारत को उसका रवैया देखना पड़ेगा। यदि बांग्लादेश की नई सरकार भारत विरोधी रहती है तो हमें कुछ कड़े कदम उठाने पड़ेंगे। भारत में कम से कम दो करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं। हमें यह कहना पड़ेगा कि बांग्लादेश इन्हें या तो वापस ले या इन्हें बसIने के लिए हमें आवश्यक भूमि हस्तांतरित करे। यह भूमि हम रंगपुर डिवीजन में मांगें और यदि बांग्लादेश नहीं दे तो उसे जबरदस्ती हासिल करने के लिए कदम उठाए जाएं। अगर हम इसमें सफल हो गए तो सिलीगुड़ी गलियारा में ‘चिकन नेक’ की समस्या का समाधान हो जाएगा।

अगर ट्रंप ग्रीनलैंड मांग सकते हैं और चीन ताइवान पर अपना अधिकार जमाने की कोशिश कर सकता है तो हम बांग्लादेश से कुछ जमीन उन्हीं के नागरिकों को बसाने के लिए मांग सकते हैं। बांग्लादेश की स्थिति चिंताजनक है। आज वहां कट्टरपंथियों का बोलबाला है। इससे अल्पसंख्यक भयभीत जिंदगी बिता रहे हैं। चीन और पाकिस्तान से बांग्लादेश की बढ़ती हुई नजदीकियां भारत के लिए एक बड़ी सामरिक चुनौती बनने जा रही हैं। भारत को चीन पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश से भी सावधान रहना होगा।

(लेखक सीमा सुरक्षा बल एवं उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक रहे हैं)