उमेश चतुर्वेदी। भाजपा के नेतृत्व वाले राजग ने चंद्रपुरम पोन्नुस्वामी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया है। इनकी चर्चा तमिलनाडु के मोदी के रूप में भी होती है। तमिलनाडु में सीपीआर के नाम से चर्चित सीपी राधाकृष्णन 2013 में एक तमिल चैनल के डिबेट में तब शामिल हुए थे, जब नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाए जाने पर बहस हो रही थीं। उस चर्चा में तमिलनाडु के मोदी के रूप में उनका परिचय दिया गया था।

उपराष्ट्रपति के प्रत्याशी के रूप में उनका चयन कर भाजपा ने एक साथ कई राजनीतिक लक्ष्य साधे हैं। भाजपा को उनके उपराष्ट्रपति बनने का लाभ तमिलनाडु के साथ दक्षिण के अन्य राज्यों में भी मिल सकता है। चूंकि वह ओबीसी हैं, इसलिए तमिलनाडु में डीएमके की ओबीसी केंद्रित राजनीति को जवाब देने में तो आसानी होगी ही, ओबीसी कार्ड खेल रहे राहुल गांधी का मुकाबला करने में भी सुविधा रहेगी।

इसे संयोग कहें या कुछ और, देश के शीर्ष दो पदों पर विराजमान हस्तियों का नाता झारखंड से रहा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु देश के सर्वोच्च पद पर चुने जाने से पहले झारखंड की राज्यपाल रहीं और देश के उपराष्ट्रपति बनने जा रहे सीपी राधाकृष्णन भी इस राज्य के राज्यपाल रहे हैं। इन दिनों वे महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। वे झारखंड के साथ ही तेलंगाना के राज्यपाल और पुदुचेरी के उपराज्यपाल का भी अतिरिक्त कार्यभार संभाल चुके हैं। मोदी-शाह का उन पर भरोसा कितना है, इसे इससे समझा जा सकता है कि उन्हें एक समय एक साथ तीन-तीन राज्यों के राज्यपालों की जिम्मेदारी थमाई गई थी।

सीपी राधाकृष्णन उत्तर भारत के भाजपा के राजनीतिक गलियारे में राधा जी के नाम से जाने जाते हैं। तमिलनाडु की कोयंबटूर लोकसभा सीट से 1998 और 1999 के आम चुनावों में भाजपा के टिकट पर सांसद चुने गए सीपी राधाकृष्णन ने स्कूली जीवन से ही जनसंघ का दामन थाम लिया था। हालांकि एक दौर में वे तमिल राजनीति में अन्नाद्रमुक के करीब माने जाते थे। उनके तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं से मधुर संबंध हैं। उपराष्ट्रपति चुनाव में डीएमके भी उनकी उम्मीदवारी का विरोध करना कठिन हो सकता है।

इसका कारण तमिल अस्मिता की राजनीति है। तमिल अस्मिता की राजनीति करने वाले मुख्यमंत्री स्टालिन के लिए सीपीआर का विरोध करना आसान नहीं होगा। इस समय लोकसभा में डीएमके के 22 और राज्यसभा में 10 सदस्य हैं। हालांकि डीएमके ने केंद्र सरकार के खिलाफ भाषा, नई शिक्षा नीति और मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के खिलाफ जिस तरह मोर्चा खोल रखा है, उसकी वजह से इसमें संदेह है कि वह सीपीआर के पक्ष में खुलकर खड़ी होगी।

सीपीआर के पिता बताते थे कि उनके पूर्वज उत्तर भारत से ही मीनाक्षीपुरम में व्यापार के लिए आए और फिर वहीं के होकर रह गए। वे अपना संबंध उत्तर भारत के मारवाड़ी और वैश्य बिरादरी से जुड़ा बताते थे। इस नाते कह सकते हैं कि राधाकृष्णन का नाता उत्तर भारत से भी है। सीपी राधाकृष्णन के एक रिश्तेदार कांग्रेस के सांसद रहे। वह तमिलनाडु भाजपा के 2004 से 2007 तक अध्यक्ष भी रहे। इस दौरान उन्होंने पूरे राज्य का दौरा किया था। इसके जरिए उन्होंने तमिलनाडु भाजपा में नया उत्साह भरने की भरपूर कोशिश की थी।

वर्ष 2004 और 2014 के आम चुनावों में सीपी राधाकृष्णन को सफलता नहीं मिली, जबकि 2009 के आम चुनावों में उन्होंने हिस्सा नहीं लिया था। 2014 की प्रचंड मोदी लहर में उन्हें जीत का पूरा भरोसा था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। इसके बाद 2016 में उन्हें राष्ट्रीय केयर बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया। सांसद रहते वक्त स्टाक एक्सचेंज घोटाले की जांच करने वाली संसदीय समिति और प्रेस परिषद में लोकसभा के प्रतिनिधि सदस्य रहे राधाकृष्णन को भाजपा ने 2020 में केरल का प्रभारी बनाया था।

उन्होंने झारखंड का राज्यपाल रहते समय भी पूरे राज्य का दौरा किया था और जनता की समस्याएं सुनीं।

सीपीआर राज्य की कौंडर जाति से आते हैं, जो अन्य पिछड़ा समाज में आती है। इस जाति विशेष का बड़ा आधार तमिलनाडु में नहीं है, लेकिन राज्य में वह भाजपा का मजबूत वोटबैंक है। सीपीआर के जरिए भाजपा ने तमिलनाडु में अपने आधार वोटबैंक को संदेश देने की भी कोशिश की है। इसके अलावा तमिल नाडु की जनता को भी यह संदेश दिया गया है कि भाजपा राज्य को विशेष महत्व देती है। जब वह पहली बार राज्यपाल बनाए गए थे, तब सक्रिय राजनीति से दूरी का अंदेशा उन्हें निराश कर रहा था, लेकिन नियति ने कुछ और ही रच दिया है।

उनका उपराष्ट्रपति बनना लगभग तय है। उपराष्ट्रपति के साथ राज्यसभा के सभापति के रूप में उनके पास बड़ी जिम्मेदारी होगी। इस दायित्व में सक्रियता की खूब गुंजाइश है। ध्यान रहे कि वे ऐसे समय उपराष्ट्रपति बनेंगे, जब जगदीप धनखड़ ने अचानक इस्तीफा देकर भाजपा के लिए समस्या खड़ी करने का काम किया और उस विपक्ष को हमलावर होने का मौका दिया, जो सभापति के तौर पर उनके रुख-रवैये से नाखुश रहता था। एक बार तो उसने सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ महाभियोग लाने की पहल कर दी थी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)