विशाल सरीन। जब आप दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के सामने हों और आप पर कमजोर होने का ठप्पा लगा हो तो उत्कृष्टता हासिल करने के लिए दृढ़ संकल्प की जरूरत होती है। नागपुर की 19 वर्षीय किशोरी दिव्या देशमुख ने जार्जिया के बटुमी में विश्व महिला शतरंज कप जीतकर इसी की पुष्टि की। वह यह उपलब्धि हासिल करने वाली भारत की 88वीं ग्रैंडमास्टर और चौथी महिला खिलाड़ी बनीं।

बुडापेस्ट, हंगरी में आयोजित पिछले शतरंज ओलंपियाड में भारतीय महिला टीम को स्वर्ण पदक दिलाने में मदद करने वाली प्रमुख खिलाड़ियों में से एक दिव्या के लिए यह एक परीकथा जैसी कहानी रही है। वह देश की अगली ग्रैंडमास्टर बनने को तत्पर थीं, लेकिन सवाल यही था कि कब बनेंगी? ग्रैंडमास्टर बनने के लिए तीन ग्रैंडमास्टर मानदंड और 2500 की रेटिंग की आवश्यकता होती है। दिव्या के पास तब इनमें से किसी का भी बखान करने के लिए कुछ नहीं था, जब वह दूसरे राउंड से शुरू होने वाले अपने पहले मुकाबले में उतरीं।

जार्जिया की केसरिया मगेलाद्जे के खिलाफ दो गेम के मैच में आसान और अपेक्षित 1.5-0.5 से जीत हासिल करने के साथ ही शतरंज के इतिहास में दर्ज होने वाली एक कहानी की शुरुआत हो गई। सर्बिया की इंजाक टेओडोरा तीसरे राउंड में दिव्या के हाथों 0.5-1.5 से हारने वाली अगली खिलाड़ी थीं और चौथे राउंड में उनका मुकाबला चीन की जिनर झू से हुआ। यह शायद उनके जीवन का सबसे कठिन मैच था।

पहला गेम जीतने और दूसरा हारने के बाद दिव्या ने 15 मिनट के टाईब्रेकर में चीनी खिलाड़ी को फिर से 1.5-0.5 से हरा दिया और अब उनका मुकाबला हमवतन ग्रैंडमास्टर डी. हरिका से था। दिव्या ने फिर टाईब्रेकर में 2-0 से जीत हासिल की और हरिका को दौड़ से बाहर कर दिया। पूर्व महिला विश्व चैंपियन चीन की टैन झोंगयी ने बहुत कोशिश की, लेकिन उन्हें 0.5-1.5 से हार का सामना करना पड़ा। दिव्या इस महामुकाबले के फाइनल में पहुंचने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी बन गईं। यह कहानी एक और भारतीय खिलाड़ी कोनेरू हंपी के बिना पूरी नहीं होगी, जो दिव्या से दोगुनी उम्र की हैं और धीरे-धीरे तेजी से आगे बढ़ रही थीं। जब उन्होंने दूसरी चीनी खिलाड़ी टिंगजी लेई को हराया, तो एक अखिल भारतीय फाइनल के लिए मंच तैयार हो गया। दिव्या ने पहले दो गेम फिर से ड्रा करके टाईब्रेकर में जगह बनाई।

दूसरे मैच में हंपी का धैर्य जवाब दे गया। एक स्पष्ट ड्रा में उन्होंने जरूरत से ज्यादा जोर लगाया और हार गईं। अंततः शतंरज का विश्व कप 23 साल बाद भारत आया। पांच बार के विश्व चैंपियन विश्वनाथन आनंद ने 2000 (तब इसे नाकआउट विश्व चैंपियनशिप कहा जाता था) और 2002 में यह कप जीता था। हालांकि आनंद दोनों ही बार पसंदीदा खिलाड़ियों में से एक थे। 15वीं वरीयता प्राप्त दिव्या ने शीर्ष दस में चार खिलाड़ियों को हराकर अपनी बादशाहत कायम की।

परीकथाएं अक्सर लंबी कहानी होती हैं, जो अक्सर छोटी हो जाती हैं। दर्द, कड़ी मेहनत, फार्म में उतार-चढ़ाव और जीवन की कठोर सच्चाइयों के बीच अनगिनत सपने होते हैं। विडंबना यह कि केवल सफलता याद रहती है। दिव्या लंबे समय से माता-पिता के साथ टूर्नामेंट और प्रशिक्षण शिविरों में जाती रही हैं। हर दूसरे शतरंज खिलाड़ी की तरह उन्हें भी उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ा, पर उनकी प्रतिभा पर कभी संदेह नहीं हुआ। भारत में शतरंज के सर्वोत्तम प्रशिक्षण केंद्र के मक्का कहे जाने वाले चेन्नई में दिव्या ने ग्रैंडमास्टर आरबी रमेश के मार्गदर्शन में कई शिविरों में भाग लिया। \

रमेश में प्रतिभाओं को पहचानने और उन्हें निखारने की गहरी समझ है। दिव्या की प्रतिभा तब पहचानी गई, जब वह पिछले शतरंज ओलंपियाड में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाने वालों में से एक बनीं। दिव्या की सफलता कोई क्षणिक सफलता नहीं है। वे केवल पिछली पीढ़ी की सफलता दोहराने की कोशिश नहीं कर रही हैं, बल्कि एक ऐसा स्थायी प्रभाव छोड़ना चाहती हैं, जो भविष्य के इतिहास में उनका नाम दर्ज कराए।

जब दिव्या अपने गृहनगर नागपुर पहुंचीं तो वह क्षण बहुत भावुक कर गया, जब उन्होंने गर्व से अपने पहले कोच राहुल जोशी की तस्वीर पकड़ी और अपना ग्रैंडमास्टर खिताब उन्हें समर्पित किया। जोशी का निधन 40 वर्ष की आयु में हो गया था। दिव्या की आंखों में झलक रहा था कि और वह यहीं नहीं रुकने वाली हैं। भारत में एक ट्राफी की कमी खल रही थी और वह थी महिला विश्व शतरंज चैंपियन की। यह कमी पूरी होना इसलिए खास है, क्योंकि शतरंज फुटबाल के बाद दूसरा सबसे अधिक लोकप्रिय खेल है।

कहते हैं, ‘मुकुट भारी होता है।’

विश्व कप जीतने के बाद दिव्या के पहले शब्द थे: “मुझे अपने खेल में सुधार की जरूरत है।” इससे हमें यकीन हो जाता है कि पिक्चर अभी बाकी है। बीते कुछ समय में दिव्या जैसी शानदार सफलता अन्य महिला खिलाड़ियों ने भी हासिल की है। इस पर ध्यान दें कि हमारी लड़कियां क्रिकेट में हरमनप्रीत कौर की तरह अन्य खेलों में भी कमाल कर रही हैं, जैसे मनु भाकर, ज्योति याराजी, सिफ्त कौर...। इनकी प्रेरणा हैं पीटी उषा, कर्णम मल्लेश्वरी, मैरी काम, सायना नेहवाल, सानिया मिर्जा आदि।

(लेखक शतरंज के इंटरनेशनल मास्टर और फिडे के सीनियर ट्रेनर हैं)